Crop Disease: दलहन फसलों को तबाह कर सकते हैं ये पांच कीट और रोग, जानिए कैसे होगी रोकथाम?

Crop Disease: दलहन फसलों को तबाह कर सकते हैं ये पांच कीट और रोग, जानिए कैसे होगी रोकथाम?

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि दलहन फसलों में कौन-कौन से रोग लगते हैं और उनका क्या निदान है. अरहर की खेती वैसे तो देश के अधिकांश राज्यों में होती है, लेकिन दो प्रमुख उत्पादकों महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है. पिछले साल रोग लगने से फसलों को काफी नुकसान हुआ था.

दाल की फसल में कौन-कौन से लगते हैं रोग (Photo-Kisan Tak).दाल की फसल में कौन-कौन से लगते हैं रोग (Photo-Kisan Tak).
सर‍िता शर्मा
  • Noida,
  • Oct 16, 2023,
  • Updated Oct 16, 2023, 11:08 AM IST

दलहन फसलें भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसे हम लोग आयात करते हैं. खासतौर पर अरहर या तुअर दाल की बहुत कमी है. पिछले साल भी हमने बड़े पैमाने पर दालों का आयात किया. महाराष्ट्र और कर्नाटक दो प्रमुख अरहर उत्पादक हैं और दोनों में बिल्ट रोग के कारण इसकी फसल बहुत खराब हुई थी. इस साल बुवाई कम हुई है. इसलिए जो फसल है उस रोगों से बचाना बहुत जरूरी है.

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया है कि दलहन फसलों में कौन-कौन से रोग लगते हैं और उनका क्या निदान है. अरहर की खेती वैसे तो देश के अधिकांश राज्यों में होती है, लेकिन दो प्रमुख उत्पादकों महाराष्ट्र और कर्नाटक के किसानों को विशेष ध्यान देने की जरूरत है.आइए जानते हैं कि दलहन फसलों में कौन-कौन से प्रमुख रोग लगते हैं और कृषि वैज्ञानिकों ने उनका क्या समाधान बताया है. इस पर अमल करेंगे तो किसान फायदे में रहेंगे.

अरहर की फलीबेधक मक्खी

उत्तरी भारत में यह कीट अरहर की फसल को काफी पहुंचाता है. इस कीट द्वारा अरहर की फसल को प्रतिवर्ष 20-25 प्रतिशत तक नुकसान होता है.  इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल नामक दवा का छिड़काव करना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें.

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फली बग

इस कीट के प्रौढ़ एवं निम्फ पत्तियों कलियों, फूलों तथा फलियों के रस को चूसते हैं. इससे फलियां सिकुड़ जाती हैं और सही तरीके से नहीं बन पाती हैं.  इसके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत घोल) या डाइमिथोएट (0.03. प्रतिशत घोल) का छिड़काव करना चाहिए. 

चना फली भेदक

इसके नियंत्रण के लिये सबसे पहले फेरोमैन ट्रैप द्वारा नियमित निगरानी करते रहें. जैसे ही 24 घंटे में 5-6 नर कीट ट्रैप के अन्दर मिलना शुरू हो जाएं, उनके नियंत्रण की तकनीक अपनाएं. इसके लिए एनपीवी 250 के छिड़काव की सलाह दी गई है. इसके नियंत्रण के लिए इंडोक्साकार्ब 1 मि.ली./लीटर या मोनोक्रोटोफॉस (0.04 प्रतिशत) प्रति लीटर पानी का छिड़काव भी कर सकते हैं. लेकिन नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के किसी वैज्ञानिक से जरूर संपर्क कर लें.

ब्लिस्टर बीटल

इसे फूलों का टिट्ठा भी कहा जाता है.  यह फूलों को खाता है और फलियों की मात्रा को कम करता है. वयस्क कोट काले रंग के होते हैं. जिनके अगले पख पर लाल धारियां होती हैं. इस कीट की रोकथाम के लिए डेल्टामैथरीन 2.8 ई.सी. 200 मि.ली. या इंडोक्साकार्ब 14.5 एस.सी. 200 मि.ली. प्रति एकड़ 100-125 लीटर पानी में डालकर छिड़काव करें.  छिड़काव शाम के समय करें और 10 दिनों के फासले पर करें. 

पीला मोजैक

यह रोग मूंग की रोगग्राही प्रजातियों में अधिक व्यापक होता है. जिन पत्तियों में इसका असर दिखाई देता है, उनके आकार छोटे रह जाते हैं.  ऐसे पौधों में बहुत कम व छोटी फलियां होती हैं.  ऐसी फलियों का बीज सिकुड़ा हुआ और मोटा व छोटा होता है. यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है. इसके नियंत्रण के लिए खेत में ज्यों ही रोगी पौधे दिखाई दें, डायमेथाक्साम या इमिडाक्लारोप्रिड 0.02 प्रतिशत मेटासिस्टॉक्स 0.1 प्रतिशत का छिड़काव कर दें.  छिड़काव को 15-20 दिनों के अन्तराल पर दोहरायें और कुल 3-4 छिड़काव करें.  प्रति हैक्टर 800 लीटर में बना घोल पर्याप्त होता है.  

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि वर्षा ऋतु में जब पौधों की अधिकतर फलियां पककर काली हो जाती हैं, तो फसल काटी जा सकती है. जब 50 प्रतिशत फलियां पक जाएं, फलियों की पहली तुड़ाई कर लेनी चाहिए.  इसके बाद दूसरी बार फलियों के पकने पर कटाई की जा सकती है. फलियों को खेत में सूखी अवस्था में अधिक समय तक छोड़ने से ये चटक जाती हैं और दाने बिखर जाते हैं.  इससे उपज की हानि होती है. फलियों से बीज को समय पर निकाल लें.

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