महाराष्ट्र में किसानों काे उपज का सही दाम नहीं मिल पाने का संकट लगातार गहराता जा रहा है. राज्य में पहले कपास के किसान आंदोलन के रास्ते पर गए, फिर प्याज के किसानों ने लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बीजेपी को सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अब सोयाबीन के किसान उपज का दाम नहीं मिल पाने को लेकर खासे नाराज हैं. महाराष्ट्र के सीमावर्ती राज्य एमपी में भी अब यह समस्या किसानों को परेशान कर रही है. एक तरफ सरकार किसानों को उपज का वाजिब दाम दिलाने की अपनी जिम्मेदारी को निभाने में नाकाम साबित हो रही है, वहीं, किसान अपनी मेहनत से सरकार के खाद्यान्न भंडार को भरने की अपनी जिम्मेदारी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. यही वजह है कि एमपी में सोयाबीन के किसानों ने उपज का सही दाम न मिल पाने के बावजूद अपने राज्य को देश का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य के तमगे से वंचित नहीं होने दिया है. राज्य के किसानों की मेहनत के बलबूते एमपी ने 5.47 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन कर सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य का रुतबा दो साल बाद फिर से हासिल कर लिया है.
भारत सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक Crop Year 2023-24 के दौरान पूरे देश में हुए सोयाबीन के कुल उत्पादन में एमपी का योगदान 41.92 प्रतिशत रहा. एमपी के किसानों ने पिछले फसली सीजन में कुल 5.47 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन किया था. इसके बलबूते एमपी देश का Biggest Soybean Producing State बन गया है.
ये भी पढ़ें, Farmers Crisis : एमपी में 12 साल पुरानी कीमत पर सोयाबीन बेचने को मजबूर हुए किसान
इसकी वजह केंद्र सरकार द्वारा Latin American countries में सोयाबीन का उत्पादन बहुत ज्यादा होने के कारण Import Duty में भारी कटौती करना बताया जा रहा है. आलम यह है कि विदेशी किसानों को अधिक उत्पादन करने का भरपूर लाभ भारत सरकार दे रही है. वहीं, देश के अपने ही किसानों को अधिक उत्पादन करने की कीमत घाटा सहकर उपज बेचने के रूप में चुकानी पड़ रही है. Agriculture Experts इस त्रासदी पूर्ण स्थिति के लिए सरकार की गलत नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. ऐसे में एमपी के किसानों को अब महाराष्ट्र की ही तर्ज पर सरकार की Anti Farmers Policy के खिलाफ आंदोलन करने पर मजबूर होना पड़ा है.
पिछले कुछ सालों से सोयाबीन के उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र और एमपी के बीच कांटे का मुकाबला रहता है. फसली सीजन 2023-24 में महाराष्ट्र के किसानों ने 5.23 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन किया. यह पूरे देश में सोयाबीन के कुल उत्पादन का 40.01 प्रतिशत है.
इसी प्रकार 1.17 मिलियन टन उत्पादन के साथ राजस्थान देश का तीसरा सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य बना है. सोयाबीन के कुल उत्पादन में राजस्थान की भागीदारी 8.96 प्रतिशत रही है.
इससे पहले के दो फसली सीजन में महाराष्ट्र पहले पायदान पर था. सरकार के आंकड़ों के मुताबिक फसली सीजन 2022-23 में महाराष्ट्र में 5.47 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था. वहीं 5.39 मिलियन टन उत्पादन के साथ एमपी दूसरे स्थान पर था. इससे पहले फसली सीजन 2021-22 में महाराष्ट्र में 6.20 मिलियन टन और एमपी में 4.61 मिलियन टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था.
वहीं, फसली सीजन 2020-21 में 5.15 मिलियन टन सोयाबीन उत्पादन के साथ एमपी पहले स्थान पर और महाराष्ट्र, 4.6 मिलियन टन उत्पादन के साथ दूसरे स्थान पर था. स्पष्ट है कि एमपी को दो साल बाद किसानों की मेहनत के बलबूते सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य का दर्जा मिला है.
ये भी पढ़ें, Forest Fire : जंगल की आग का दायरा पहुंचा एमपी तक, खंडवा और बैतूल के जंगल है खतरे की जद में
जानकारों की राय में महाराष्ट्र के किसानों ने पिछले 2 सालों में सोयाबीन का सही दाम न मिल पाने के कारण इसकी उपज का रकबा कम कर दिया है. इसके बावजूद पिछले दो फसली सीजन से महाराष्ट्र ने एमपी के साथ कांटे के मुकाबले के बीच लगातार दो बार सबसे बड़े सोयाबीन उत्पादक राज्य का तमगा हासिल किया है. वहीं, एमपी में किसानों ने बेहतर उपज मिलने के कारण सोयाबीन का रकबा बढ़ा दिया है.
सरकार के आंकड़ों के मुताबिक एमपी में किसानों ने साल 2022-23 की तुलना में साल 2023-24 में सोयाबीन के रकबे में 1.7 प्रतिशत का इजाफा किया है. वहीं महाराष्ट्र में उपज का सही दाम न मिल पाने के कारण वहां के किसानों ने सोयाबीन की बुआई कम कर दी है.
एमपी में किसानों को इस साल सोयाबीन की कीमत भले ही न मिल पा रही हो, लेकिन सूबे के किसानों ने एमपी को सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक राज्य होने का तमगा फिर से दिला कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर दी है. अब, किसानों के हित सुरक्षित करने के मामले में गेंद सरकार के पाले में है. अब देखना होगा कि एमपी की मोहन यादव सरकार किसानों के हित संरक्षण की दिशा में कितनी कामयाब साबित हो पाएगी. यह बात दीगर है कि राज्य के किसान अब सूबे की सरकार से नाउम्मीद होकर आंदोलन के रास्ते पर आने को मजबूर हुए हैं.