Jharkhand: अब 'पहाड़' पर भी पैदा होगा परवल, तीन नई किस्में विकसित

Jharkhand: अब 'पहाड़' पर भी पैदा होगा परवल, तीन नई किस्में विकसित

झारखंड के किसानों को परवल की खेती से जोड़ने के लिए रांची की नामकुम स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूर्वी प्रक्षेत्र पलांडू के वैज्ञानिकों ने परवल की तीन नई किस्में विकसित की है. इनके नाम स्वर्ण अलौकिक और स्वर्ण रेखा और स्वर्ण सुरुचि है.

झारखंड में होगी परवल की खेती            फोटोः किसान तकझारखंड में होगी परवल की खेती फोटोः किसान तक
पवन कुमार
  • Ranchi,
  • May 16, 2023,
  • Updated May 16, 2023, 6:59 PM IST

परवल एक स्वादिस्ट सब्जी है और इसे अधिकांश लोग खाना पसंद करते हैं. इसकी कीमतें कभी कम नहीं होती है. इस सब्जी पर पहले सिर्फ बिहार और उत्तर प्रदेश का दबदबा था. पर अब झारखंड के किसानों द्वारा उगाए गए परवल देश के बाजारों में उपलब्ध होंगे. जी हां अब झारखंड में भी बड़े पैमाने पर परवल की खेती की जाएगी. इसकी शुरुआत पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर राज्य के 11 जिलों में की जा रही है. इस तरह से मैदानी इलाकों में होने वाली सब्जी की खेती अब झारखंड के पहाड़ी इलाकों में भी होगी. राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत इसका संचालन किया जाएगा. 

झारखंड के ल‍िए तीन नई क‍िस्में

झारखंड के किसानों को परवल की खेती से जोड़ने के लिए रांची की नामकुम स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र पूर्वी प्रक्षेत्र पलांडू के वैज्ञानिकों ने परवल की तीन नई किस्में विकसित की है. इनके नाम स्वर्ण अलौकिक और स्वर्ण रेखा और स्वर्ण सुरुचि है, इसके अलावा एक और किस्म हैं, जो झारखंड समेत देश के पूर्वी राज्यों के लिए विकसित की गई है.

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परवल के इस किस्म की खेती झारखंड के अलावा ओडिशा और छत्तीसगढ़ के किसान भी कर सकते हैं. इस तरह से यह अब गंगा के तटीय इलाकों से निकल कर झारखंड के पठारी क्षेत्रों में पहुंच गया है. 

लंबे समय तक खराब नहीं होगी उपज

आईसीएआर पलांडू में इस परवल की इस वेरायटी को लेकर कार्य करने वाले वैज्ञानिक डॉ धनंजय बताते हैं कि परवल की इस वेरायटी से झारखंड के किसानों की तकदीर बदल सकती है. क्योंकि इसे लगाने में एक ही बार खर्च होता है. प्रति एकड़ इसे लगाने में जुताई, खाद और बीज मिलाकर लगभग पचास हजार रुपये का खर्च आता है, लेक‍िन इसके बाद किसान पांच साल तक इससे सब्जी ले सकते हैं. गंगा के तटीय इलको में फलने वाले परवल की बात करें तो यह जमीन में फलता है, जबकि नई विकसित वेरायटी कद्दू की तरह लटका हुआ रहता है. इसके कारण इसमें सड़न नहीं होती है और यह लंबे समय तक हरा रहता है. इसलिए इसे दूर के बाजारों में भी आराम से पहुंचाया जा सकता है. 

प्रति एकड़ होगी इतनी पैदावार

रांची के ओरमांझी प्रखंड में परवल की सफलतापूर्वक खेती करने वाले किसान सचिन बताते हैं कि वो पिछले दो साल से परवल की खेती कर रहे हैं. आईसीएआर ने जो नई वेरायटी विकसित की है, उसका ट्रायल दो साल तक उनके ही फार्म में हुआ है. इसके बाद अब राज्य के 11 जिले रांची, रामगढ़, हजारीबाग, कोडरमा, खूंटी, गुमला, लोहरदगा समेत चाईबासा में परवल की खेती से किसानों को जोड़ा जाएगा. उन्होंने बताया कि इस वेरायटी से किसान प्रति एकड़ 6-7 टन की पैदावार हासिल कर सकते हैं. साथ ही कहा की परवल के दाम कभी भी कम नहीं होते हैं ऐसे में इसकी खेती किसानों के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकती है. 

 

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