कड़वे करेला के रेट ने किसान को खून के आंसू रुलाया, 10 रुपये किलो भी नहीं मिल रहा भाव

कड़वे करेला के रेट ने किसान को खून के आंसू रुलाया, 10 रुपये किलो भी नहीं मिल रहा भाव

नूंह में इस बार सब्जी उत्पादक किसान हताश और निराश हैं. उनकी निराशा की वजह करेला और घीया इत्यादि बेल की सब्जियों का मंडी में अच्छा भाव नहीं मिलना है. रही- सही कसर बिजली की कटौती और सब्जी फसलों में डाले जाने वाली नकली दवाई पूरा कर रही है. इस बार नगीना खंड के दर्जन भर से अधिक गांवों के किसानों ने करेला, घीया, टमाटर आदि सब्जी की फसलें लगाई थी. लेकिन करेला का भाव महज 9 - 10 रुपये प्रति किलो मंडी में किसानों को मिल रहा है.

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क‍िसान तक
  • Nuh,
  • Apr 30, 2025,
  • Updated Apr 30, 2025, 7:11 PM IST

हरियाणा के नूंह जिले के नगीना और फिरोजपुर झिरका, पिनगवां खंड में बेल वाली सब्जियां बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं. भाव अच्छा मिले तो इन्हीं सब्जियों की वजह से किसानों के चेहरे से लेकर घरों में खुशहाली दिखाई देती है. मगर भाव अच्छा न हो तो किसानों के चेहरे पर मायूसी छा जाती है. कुछ ऐसा ही हाल नूंह जिले के कई इलाकों में देखा जा रहा है. यहां कई सब्जियों के रेट इतने नीचे चले गए हैं कि किसान अपनी फसल को खेत में ही छोड़ रहे हैं. इन फसलों को बाजार तक पहुंचाने का खर्च इतना अधिक होगा कि किसान उसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे. 

नूंह में इस बार सब्जी उत्पादक किसान हताश और निराश हैं. उनकी निराशा की वजह करेला और घीया इत्यादि बेल की सब्जियों का मंडी में अच्छा भाव नहीं मिलना है. रही- सही कसर बिजली की कटौती और सब्जी फसलों में डाले जाने वाली नकली दवाई पूरा कर रही है. इस बार नगीना खंड के दर्जन भर से अधिक गांवों के किसानों ने करेला, घीया, टमाटर आदि सब्जी की फसलें लगाई थी. लेकिन करेला का भाव महज 9 - 10 रुपये प्रति किलो मंडी में किसानों को मिल रहा है और घीया को कोई किसी भाव भी  नहीं पूछ रहा है. यही वजह है कि किसान सब्जी मंडी में ले जाने के बजाय खेत में ही घीया को छोड़ रहे हैं. 

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खून के आंसू रोने को मजबूर किसान

सिंचाई नहीं होने और दवाइयां नकली होने की वजह से अगर फसल में किसी प्रकार का रोग या दाग लग जाता है तो सब्जी मंडी में उस फसल को नहीं खरीदा जाता. कुल मिलाकर किसान कड़वे करेला के कम भाव मिलने के कारण खून के आंसू रोने को मजबूर हैं. सबसे ज्यादा दिक्कत उस किसान को हो रही है, जिसने पट्टे पर 70 - 80 हजार प्रति एकड़ के हिसाब से जमीन को लिया था. लेकिन इस बार उनकी लागत भी पूरी नहीं हो रही है. किसानों का कहना है कि लगभग सवा लाख रुपये की लागत प्रति एकड़ करेला की फसल पर आती है. भाव अच्छा होता है तो अच्छा खासा मुनाफा किसान को हो जाता है. मगर इस बार भाव भी नहीं है और सिंचाई कम होने से रोग लगने के कारण फसल खराब हो रही है. 

कमजोर हुई किसानों की आर्थिक स्थिति

किसानों की इस बार आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बजाय कमजोर हुई है. किसानों ने सरकार से मांग की है कि उन्हें मुआवजा दिया जाए ताकि वे कर्ज के बोझ से आजाद हो सकें. दरअसल, सरकार किसानों की आय को दोगुना करने का हर बार दम भरती है, लेकिन जब उनकी फसल सब्जी मंडी या अनाज मंडी में पहुंचती है तो कई बार फसल के उचित दाम नहीं मिल पाते हैं. इसकी वजह से किसानों की आय बढ़ना तो दूर उल्टा वे कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं. सारे दिन भीषण गर्मी में किसान अपनी सब्जी फसलों में जुटा रहता है. जब लोग तापमान 42 डिग्री से पार होने के बाद घरों से बाहर नहीं निकलते हैं. तब किसान इस गर्मी में अपनी फसलों में काम करता हुआ दिखाई पड़ जाता है.

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खेती की लागत निकालना भी मुश्किल

क्या महिला, क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग, क्या नौजवान सारा दिन पूरे परिवार के लोग इन्हीं फसलों में सिंचाई करने, तुडाई करने और छंटनी करने में सारा दिन व्यस्त रहते हैं. किसान मोहम्मद आबिद बताते हैं कि मेहनत के बावजूद उनकी कमाई नहीं हो रही है. इसी तरह की राय किसान मोहम्मद दिलशाद जाहिर करते हैं. वे बताते हैं कि सब्जियों के भाव इतने गिर गए हैं कि लागत निकालना भी मुश्किल है. किसान मुस्तकीम कहते हैं कि ऐसी स्थिति में सरकार को किसानों की मदद करनी चाहिए. (कासिम खान की रिपोर्ट)

 

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