बकरियों को बीमारी से बचाना है तो दवाई-टीके के इस चार्ट का करें पालन 

बकरियों को बीमारी से बचाना है तो दवाई-टीके के इस चार्ट का करें पालन 

सीआईआरजी, मथुरा के मुताबिक खुरपका, बकरी की चेचक, बकरी की प्‍लेग जैसी बीमारियों समेत पैरासाइट से बकरियों को बचाया जा सकता है. जरूरत बस वक्‍त रहते अलर्ट होने की है. जरा सी भी लापरवाही होने पर एक बकरी में हुई बीमारी पूरे फार्म पर फैल सकती है.

चराई कराने के बाद बकरियों के रेवड़ को लेकर लौटता पशुपालक.चराई कराने के बाद बकरियों के रेवड़ को लेकर लौटता पशुपालक.
नासि‍र हुसैन
  • Noida ,
  • Dec 07, 2022,
  • Updated Dec 07, 2022, 5:01 PM IST

बकरियों को बीमारी से बचाना है तो दवाई-टीके के इस चार्ट का करें पालन गाय-भैंस और पोल्‍ट्री के मुकाबले बकरियां जल्‍दी बीमार नहीं होती हैं. उन्‍हें बीमारियां भी जल्‍दी नहीं लगती हैं. लेकिन अगर बकरियों के लिए थोड़ा सा और अलर्ट हो जाएं तो बाकी बचे जोखिम को भी कम किया जा सकता है. वक्‍त से बकरियों की जांच करना, उन्‍हें तय वक्‍त पर टीके लगवाना और बीमार होने पर सही दवा दिला दी जाए तो बकरियों में मृत्‍यु दर न के बराबर रह जाती है. इस विषय पर बकरी पालकों को जागरुक करने के लिए केन्‍द्रीय बकरी अनुसंधान संस्‍थान (सीआईआरजी), मथुरा समय-समय पर जागरुकता कार्यक्रम भी चलाता रहता है.

सीआईआरजी, मथुरा के मुताबिक खुरपका, बकरी की चेचक, बकरी की प्‍लेग जैसी बीमारियों समेत पैरासाइट से बकरियों को बचाया जा सकता है. जरूरत बस वक्‍त रहते अलर्ट होने की है. जरा सी भी लापरवाही होने पर एक बकरी में हुई बीमारी पूरे फार्म पर फैल सकती है.

बीमारी

बकरियों में खासतौर पर तीन तरह की बीमारी देखी जाती है. जिसमे खुरपका, बकरी चेचक और गलघोंटू मुख्य है. इसमे से कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं है. इलाज और वक्त से कराए गए टीकाकरण से यह बीमारियां रोकी जा सकती हैं. 

खुरपका- 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्‍टर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. 6 महीने बाद दोबारा.

बकरी चेचक- 3 से 5 महीने की उम्र पर. बूस्‍टर डोज पहले टीके के एक महीने बाद. हर साल लगवाएं.

गलघोंटू- 3 महीने की उम्र पर पहला टीका. बूस्‍टर डोज पहले टीके के 23 दिन या 30 दिन बाद.

पैरासाइट

खासतौर पर बारिश के मौसम में बकरियां और उनके मेमने पैरासाइट से प्रभावित होते हैं. कई बार बारिश के दौरान खाए जाने वाले हरे चारे के चलते भी बकरियों की आंत में पैरासाइट पनपने लगते हैं. 

कुकडिया रोग- दो से तीन महीने की उम्र पर दवा पिलाएं. 3 से 5 दिन तक पिलाएं. 6 महीने की उम्र पर दवा पिलाएं.

डिवार्मिंग- 3 महीने की उम्र में दवाई दें. बरसात शुरू होने और खत्‍म होने पर दें. सभी पशुओं को एक साल दवा पिलाएं.

डिपिंग- दवाई सभी उम्र में दी जा सकती है. सर्दियों के शुरू में और आखिर में दें. सभी पशुओं को एक साल नहलाएं.

रेग्‍यूलर जांच

पशु हों या इंसान अगर नियमित जांच करवाते रहें तो कई तरह की बीमारियों से बचे रहते हैं. वहीं जांच कराने का एक बड़ा फायदा यह भी है क‍ि वक्त रहते अंदर ही अंदर पनपने वाली बीमारियों का इलाज हो जाता है. 

ब्रुसेल्‍लोसिस- 6 महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराएं. जो पशु संक्रमित हो चुका है उसे गहरे गड्डे में दफना दें.  

जोहनीज (जेडी)- 6 महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराएं. संक्रमित पशु को फौरन ही झुंड से अलग कर दें.

टीकाकरण कार्यक्रम

पशुओं के टीकाकरण कार्यक्रम को लेकर सरकार भी कई तरह के जागरुकता कार्यक्रम चलाती है. यहां तक की सरकारी केन्द्रों पर पशुओं को टीके मुफ्त में लगाए जाते हैं.  

पीपीआर (बकरी प्‍लेग)- 3 महीने की उम्र पर. बूस्‍टर की जरूरत नहीं है. 3 साल की उम्र पर दोबारा लगवा दें.

इन्‍टेरोटोक्‍समिया- 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्‍टर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. हर साल एक महीने के अंतर पर दो बार. 

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