वैसे तो गधी के दूध की वैल्यू बहुत है. खासतौर से कॉस्मेटिक आइटम में इसका खूब इस्तेमाल होता है. पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पशु प्रेमी मेनका गांधी खुद कई बार गधी के दूध की तारीफ कर चुकी हैं. कुछ खास नस्ल की गधी का दूध तो बहुत मुश्किल से और महंगा मिलता है. लेकिन एक परेशान करने वाली बात ये है कि देश में गधों की संख्या घट रही है. शायद इसी को देखते हुए अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार (हरियाणा) ने गधी के दूध को फूड आइटम में शामिल करने की अनुमति मांगी है.
लेकिन एक साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद भी गधी का दूध लाइसेंस का इंतजार कर रहा है. अश्व अनुसंधान केन्द्र ने बीते साल जून में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) को एक पत्र लिखा था. लेकिन अभी तक अथॉरिटी की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है. डेयरी एक्सपर्ट की मानें तो गधी का दूध गाय-भैंस और भेड़-बकरी के दूध के मुकाबले गुणकारी होता है. और शायद इसी के चलते और डिमांड के मुताबिक ये महंगा भी बिकता है.
ये भी पढ़ें: Goat Meat: अगर आप बकरों को खिला रहे हैं ये खास चारा तो बढ़ जाएगा मुनाफा, जाने वजह
अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार (हरियाणा) के निदेशक टीके भट्टाचार्य का कहना है कि हमने FSSAI को लाइसेंस के लिए पत्र लिखा था. हम चाहते हैं कि गधी के दूध को फूड आइटम में शामिल किया जाए. उत्पादन की बात करें तो दिनभर में एक गधी अधिकत्तम डेढ़ लीटर तक दूध देती है. हमारा प्लान है कि अनुमति मिलते ही हम इस रिसर्च पर काम शुरू कर देंगे कि दूध को कहां-कहां इस्तेमाल किया जा सकता है.
क्योंकि दूध पीने के शौकीन ऐसे बहुत सारे लोग होते हैं जिन्हें गाय-भैंस के दूध से एलर्जी होती है. ज्यादातर लोग गाय-भैंस का दूध आसानी से पचा नहीं पाते हैं या फिर और दूसरी तरह की परेशानी होने लगती है. अगर गधी के दूध की बात करें तो इसे गाय-भैंस के दूध से बेहतर माना गया है. इतना ही नहीं छोटे बच्चों के लिए तो यह मां के दूध जैसा है. इसमे वसा की मात्रा सिर्फ एक फीसद तक ही होती है. जबकि गाय-भैंस और मां के दूध में वसा की मात्रा तीन से छह फीसद तक होती है.
ये भी पढ़ें: A2 Ghee Ban: A2 दूध का दावा कर घी बेचने के बैन को FSSAI ने लिया वापस
घोड़ों, खच्चर और गधों पर रिसर्च करने वाले निदेशक टीके भट्टाचार्य ने बताया कि बोझा ढोने के काम आने वाले गधों की जगह अब छोटे-बड़े वाहनों ने ले ली. इसी के चलते लोगों ने गधों को पालना या तो बंद कर दिया या फिर कम कर दिया. पशुगणना के मुताबिक साल 2012 में 3.20 लाख गधे थे, जबकि 2019 में इनकी संख्या सिर्फ 1.20 लाख ही बची है.