महाराष्ट्र के डेयरी किसान आजकल अजीब सी दुविधा में फंसे हुए हैं. आगे कुंआ है तो पीछे खाई है. आरोप है कि पड़ोसी राज्य के डेयरी किसानों के मुकाबले उनके साथ दोयम दर्जे का बर्ताव किया जा रहा है. दूध के लिए भैंस पाली थी कि मुनाफे के तौर पर चार पैसे मिल जाएंगे तो हिस्सें में आ रहा है गोबर. कई बार सड़क पर दूध फैलाकर किसान अपना विरोध जता चुके हैं, बावजूद हालात जस के तस हैं. डेयरी कंपनियां बाजार में तो दूध के दाम बढ़ा रही हैं, लेकिन किसानों से खरीदे जाने वाले दूध के दाम दो रुपये कम कर दिए.
कहने को महाराष्ट्र में दर्जनों कोऑपरेटिव हैं, लेकिन किसानों को अपना मानना के लिए कोई तैयार नहीं है. महाराष्ट्र के लाखों डेयरी किसानों को कोऑपरेटिव से मिलने वाले फायदे भी नहीं मिल रहे हैं. बहती गंगा में हाथ धोने के लिए आसपास की डेयरी कंपनियों ने भी महाराष्ट्र में डेरा डाल दिया है. वो किसानों से ससता दूध खरीदकर ले जा रही हैं.
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इंडो डेयरी फार्मर एसोसिएशन के अध्यक्ष रविन्द्र नवाले ने किसान तक को बताया कि आज डेयरी किसान के एक लीटर दूध पर 25 रुपये लागत आ रही है. हरा-सूखा चारा हो या मिनरल्स सभी बाजार में बहुत महंगे हैं. लेकिन डेयरी कंपनियां किसान से 26 से 27 रुपये लीटर के हिसाब से खरीद रही हैं. किसान ने गाय-भैंस तो पाली थीं कि दूध पर मुनाफा मिलेगा, लेकिन मुनाफे के तौर पर हिस्से में आ रहा है सिर्फ गोबर. आज महाराष्ट्र में लाखों किसानों के सामने यही हालात हैं. लेकिन उसी दूध को आज बाजार में 66 रुपये लीटर से भी ज्यादा दाम पर बेचा जा रहा है.
अध्यक्ष रविन्द्र ने आरोप लगाते हुए किसान तक से कहा कि महराष्ट्र के किसानों संग दोहरा बर्ताव किया जा रहा है. जो डेयरी कंपनियां महाराष्ट्र और गुजरात में काम कर रही हैं वो गुजरात में किसानों से 36 से 37 रुपये लीटर दूध खरीद रही हैं. जिस फैट और एसएनएफ पर गुजरात में खरीदा जा रहा है उसी फैट और एसएनएफ पर महाराष्ट्र के किसानों से 26 रुपये लीटर खरीदा जा रहा है. गुजरात में कोऑपरेटिव सोसाइटी किसानों से दूध खरीद रही हैं.
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किसानों को अपना सदस्या भी बनाती हैं. समय-समय पर किसानों को बोनस देती हैं, सोसाइटी से मिलने वाले दूसरे लाभ भी किसानों को दिए जाते हैं. लेकिन महाराष्ट्रं में मौजूद डेयरी कंपनियों से जुड़ी वही कोऑपरेटिव सोसाइटी वहां किसानों को अपना सदस्यै नहीं मानती हैं, उन्हें बोनस नहीं देती हैं और सोसाइटी से मिलने वाले दूसरे लाभ भी नहीं दिए जाते हैं.इतने कम दाम में भी किसान दूध इसलिए भी बेचने को मजबूर हैं कि हर रोज दूध का आखिर करें भी तो क्या.