कृषि क्षेत्र में महिलाएं भी अब पुरुषों को पीछे छोड़ने के लिए तैयार हैं. यूपी की महिला किसान अब खेती में नवाचार को अपना कर पुरुषों से आगे निकल रही है. महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही अपने आसपास की महिलाओं को भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रही हैं. सरकार भी इन महिलाओं को अब खुलकर सहयोग कर रही है.
लखनऊ की ऐसी ही महिला किसान है सुमित्रा जिनके पास नाम मात्र 0.60 हेक्टेयर जमीन है लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 2 साल में मछली के बीज को तैयार करके 17 लाख रुपए की कमाई कर डाली जबकि उन्होंने केवल ₹3.5 लाख ही लगाए थे. आज सुमित्रा की हेचरी में तैयार हो रहे मत्स्य बीज की डिमांड पूरे प्रदेश में है. ऐसे ही दूसरी महिला किसान गोरखपुर की मालती हैं जिन्होंने बहु फसली खेती के जरिए न सिर्फ अपनी किस्मत बदली बल्कि दूसरे किसानों को भी रास्ता दिखाया हैं. मालती आज 7 एकड़ क्षेत्र में गौरजीत किस्म के आम और बीज रहित लीची की बागवानी करती है. बाग के नीचे जिमीकंद और नर्सरी शुरू की है. पशुओं के गोबर से जैविक खाद और वर्मी कंपोस्ट को तैयार करके भी वह बिक्री करती हैं. उनके बागवानी पशुपालन और सब्जी की खेती से हर साल 10 लाख रुपए की आमदनी हो रही है. इस आमदनी से आज वो बच्चों को शहर में अच्छी शिक्षा दिला रही हैं बल्कि उन्हें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी उन्हें सम्मानित कर चुके हैं.
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इटावा के नगला भीखन की रहने वाली मंत्रवती आर्थिक तंगी से इस कदर परेशान थी कि वह मजदूरी करने के लिए निकल गई, फिर उनका मन बदला और उन्होंने श्री अन्न के तहत रागी के उत्पादन शुरू किया. खाद की जगह पशुओं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट खाद को तैयार किया. कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर उन्होंने लाइन से बुवाई करना शुरू किया. फसल काटी तो प्रति हेक्टेयर 20.80 क्विंटल का रिकॉर्ड उत्पादन किया. जिस फसल को कभी किसानों के लिए घाटे का सौदा माना जाता था उसे मंत्रवती ने फायदें में बदल दिया. आज रागी उत्पादन का सबसे बड़ा केंद्र उनका गांव बन चुका है. आज श्री अन्न की खेती करके न सिर्फ मंत्रवती ने अपना पक्का मकान बनवाया है बल्कि अपने बच्चों को कानपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी करवा रही हैं. मंत्रवती बताती है कि रागी की फसल करने के बाद वो स्ट्रॉबेरी और गेहूं की खेती भी करती हैं. इस तरह प्रतिवर्ष उन्हें 3 से 4 लाख रुपए की आमदनी हो रही है. वर्मी कंपोस्ट को तैयार करके आसपास की महिलाओं को रोजगार भी दे रही हैं.
बुंदेलखंड के महोबा जिले की रहने वाली कमला त्रिपाठी ने प्राकृतिक खेती के जरिए अपनी अलग पहचान बनाई है. उनकी खेती से परिवार के लोग नाराज थे लेकिन उन्होंने गोबर ,गोमूत्र से बीजामृत, जीवामृत को तैयार किया. इस मिश्रण को सब्जी की खेती प्रयोग किया जिससे न सिर्फ सब्जी का उत्पादन भरपूर हुआ बल्कि मटर, मूंगफली और अरहर के उत्पादन में भी सफलता मिली. आज बुंदेलखंड के किसान गौ आधारित खेती की तकनीक सीखने के लिए कमला त्रिपाठी के पास आते हैं.
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