महाराष्ट्र में का बीड जिला गन्ना कामगारों की वजह से मशहूर है. यहां गन्ने की भी भरपूर खेती होती है जिससे लोगों की आजीविका चलती है. इसी बीड जिले के ग्रामीण इलाकों में रहने वाले संतोष खाड़े ने कड़ी मेहनत करके अपने मां-बाप का नाम रोशन किया है. संतोष ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग में बड़ी सफलता हासिल की है. संतोष के माता-पिता गन्ना काटने वाले कामगार हैं. उनका सारा खर्च गन्ना काटने और उससे होने वाली कमाई से चलता है. लेकिन उनके बेटे ने आज नाम रोशन कर दिया है. वह भी पढ़ाई-लिखाई में. संतोष खाड़े की मेहनत रंग लाई है उसके रिजल्ट की चर्चा आज पूरे महाराष्ट्र में हो रही है.
बीड के पाटोदा तालुका में राष्ट्रीय संत भगवान बाबा की जन्मस्थली भगवान भक्ति गढ़ सावरगांव घाट आज ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं और अन्य लोगों को दृढ़ संकल्प के साथ प्रेरित कर रहा है. उसी की माटी से संतोष खाड़े ने भी अपना नाम रोशन किया है. आज संतोष खाड़े का नाम सर्खियों में हैं जबकि यहां के बच्चे गरीबी और कम उम्र में ही कामगारी के लिए जाने जाते हैं. पढ़ाई से नाता बहुत कम दिखता है. लेकिन खाड़े ने इस पहचान को समाप्त कर दिया है.
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कहा भी गया है कि अपने बच्चे की तारीफ सुनकर माता-पिता को जो संतुष्टि मिलती है, वह कड़वे गन्ने की मीठी कहानी की तरह होती है. संतोष अजीनाथ खाड़े ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफलता हासिल कर अपने माता-पिता की मेहनत का बखूबी साथ दिया है. रिजल्ट की घोषणा होते ही पूरे बीड जिले में संतोष की खबर फैल गई और उस बच्चे की मां आनंद गगना भी सुर्खियों में आ गई. जिले भर के लोग आज कह रहे हैं कि संतोष खाड़े के माता-पिता का 30 साल का गन्ना पेराई का काम वाकई काबिले तारीफ रहा. मीठे गन्ने के खेत की संघर्ष भरी और कड़वी कहानी आखिरकार सार्थक हो गई है. यह कहानी इसलिए संघर्षभरी है क्योंकि भारी मुसीबतों के झेलते हुए गन्ना काटकर घर का गुजारा करना और किसी बच्चे को पढ़ाना वाकई बहुत मुश्किल काम है.
संतोष अजीनाथ खाड़े ने महाराष्ट्र लोक सेवा आयोग की परीक्षा 2020 में भी पास कर ली थी, लेकिन कट ऑफ से 0.75 अंक कम मिले. इसलिए उन्हें अंतिम समय में लोक सेवा आयोग के मैदान से हटना पड़ा. इस असफलता के बाद उन्होंने हार नहीं मानी और छह दिन बाद 2021 में तुरंत दूसरी परीक्षा दी और मेहनत रंग लाई. अतीत में अगर असफलता मिली हो तो बाद में उसके संघर्ष का फल मीठा लगने लगता है. यही बात संतोष के साथ साबित हुई.
संतोष खाड़े की शिक्षा स्लम स्कूल, आश्रम स्कूल, तकली काजी अहमदनगर, 6वीं, 7वीं, भामेश्वर विद्यालय, पाटोदा, 8वीं, 10वीं, भगवान बाबा विद्यालय, सावरगांव घाट, बीड, मुंबई, पुणे, अहमदनगर से शुरू हुई और इसके बाद उन्होंने सफलता हासिल की.
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अपने हालात के बारे में संतोष खाड़े कहते हैं, मैंने कोई नौकरी या अच्छी पोस्ट के लिए स्टडी नहीं की बल्कि मेरे अक्का-बापू के हाथों से चलने वाला कोयता (गन्ना काटने का औजार) बंद करना था. इसलिए मैंने मेहनत करके पढ़ाई की. संतोष कहते हैं, मेरे पिता विकलांग होते हुए भी गन्ना काटने का काम करते थे. बारहवीं के बाद एक ओर मैंने अपनी डिग्री के लिए अध्ययन किया और दूसरी ओर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी भी करता रहा. दूसरी ओर मेरे माता-पिता का संघर्ष भी चलता रहा. मैंने दिन-रात दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के साथ परीक्षा पास की. मैं इस मुकाम तक पहुंचने के लिए अपने माता-पिता और गरीबी के खिलाफ उनके संघर्ष को पूरा श्रेय देता हूं.
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