
स्वाति नक्षत्र में ओस की बूंदें खुले मुंह के अंदर पड़ें, तो वो मोती बन जाती हैं. इस पुरानी कहावत का मतलब यही है कि पूरी योजना और युक्ति के साथ अगर काम किया जाए, तो छोटी जगह में भी बड़ा काम किया जा सकता है. अगर आप कुछ नया करने का सोचते हैं, तो संभावनाएं हमेशा मौजूद हैं. खेती किसानी में भी नए और यूनिक उपायों की तलाश करनी चाहिए जो सामृद्धि और सशक्तीकरण की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करे. मोती की खेती यानी पर्ल फार्मिग आमतौर पर तालाब में की जाती है. जयपुर के रेलवाल कस्बे के निवासी नरेंद्र कुमार गर्वा दूसरे काम के साथ छोटी जगह में टैंकों में मोती की खेती करके लाखों की आमदनी कमा रहे हैं.
नरेंद्र कुमार गर्वा ने किसान तक को बताया कि मोती की खेती का एक वीडियो देखा, जिससे उन्हें एहसास हुआ कि मोती को कृत्रिम रूप से उगाया जा सकता है. इसके बाद उन्होंने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेशवाटर एक्वाकल्चर (CIFA), भुवनेश्वर में 'उद्यमिता विकास पर ताजा पानी मोती की खेती' पर 5 दिवसीय ट्रेनिग ली. नरेंद्र ने 10×10 फीट के क्षेत्र में मोती की खेती करने के लिए 40,000 रुपये का निवेश किया. अभी हर दूसरे काम के साथ हर साल लगभग 04 लाख रुपये की आय हासिल कर रहे हैं.
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नरेंद्र ने सबसे पहले सीप पालन के लिए गड्ढा खुदवाया, जिसमें बारिश का और घरेलू इस्तेमाल किया हुआ पानी इकट्ठा किया. शुरुआत दो हजार सीप से की और उनके चारे पानी की व्यवस्था की जिससे कि सारे सीप ज़िंदा रहें. जब पहला प्रयोग सफल रहा तो इसके बाद टंकियों के साफ पानी में सीप छोड़ने के बाद उनको भोजन दिया. फिर 24 घंटे के बाद उनका माइनर ऑपरेशन कर उनके अंदर डिजायनर मोती के फ्रेम यानी बीड डाले. इसके बाद इन सीपों को एक खास जाल के अंदर सेट कर पानी के बड़े हौज में डाल दिया. उस समय पानी का तापमान 15-30 रहना चाहिए. इसके बाद 10-15 दिनों पर एक बार सबका निरीक्षण करना होता है. मरे हुए सीपों को हटा लिया जाता है क्योंकि इससे बाकी के जीवित सीपों पर बुरा असर पड़ता है.
नरेंद्र ने बताया कि सीप को टैंक में रखने के बाद, उन्हें 15 दिनों तक खाना खिलाया जाता है. सीपों का भोजन तैयार करने का बिल्कुल अलग इंतज़ाम किया जाता है. सीमेंट की छोटी छोटी टंकी में पानी भरकर इनमें यूरिया, गाय का गोबर और सिंगल सुपर फॉस्फेट सबको मिला कर डालते हैं. इससे कुछ ही दिनों में इस टंकी में एल्गी यानी शैवाल बन जाता है, जो सीपों का प्रमुख भोजन है. इस तरह सीपों को 10-12 महीने तक पाला जाता है. तब तक इनके अंदर मोती बन कर तैयार हो जाते हैं.
सीप पालन के लिए कृत्रिम सीमेंट की टंकी, सर्जरी के औजार, दवाएं, अमोनिया मीटर, पीएच मीटर, थर्मामीटर, दवाएं, एंटीबायोटिक्स, मुंह खोलने वाला मशीन, मोती न्यूक्लियस जैसे उपकरण की जरूरत होती है. मोती के लिए गाय के गोबर, यूरिया और सुपरफॉस्फेट से शैवाल के लिए भोजन तैयार किया जाता है. सीपों के मृत्यु दर से बचने के लिए पीएच स्तर को 7-8 के बीच रखने की सलाह होती है. अगर अमोनिया मात्रा शून्य नहीं है, तो 50 प्रतिशत पानी बदलें या अमोनिया को कम करने के लिए चूना मिलाना चाहिए.
नरेंद्र बताते हैं कि एक सीप लगभग 50 से 55 रुपये में आती है और प्रति सीप लगभग 50 रुपये व्यवस्था में खर्च हो जाते हैं. इस तरह एक सीप पर कुल खर्च लगभग 100 रुपये आता है जबकि प्रति सीप दो बीड डाले जाते हैं, जिससे दो मोती मिलता है. अगर मोती के बाज़ार रेट की बात करें तो ऐसे डिजायनर मोती के भाव बाजार में 300 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक मिल जाते हैं. नरेंद्र हर साल 3000 मोतियो का पालन कर रहे हैं. वे बेहद छोटी जगह में सालाना लगभग 04 लाख की आमदनी ले रहे हैं.
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नरेंद्र ने दूसरे किसानों को सलाह दी कि अगर अगर किसी के पास कम जगह है, पानी-बिजली की भी दिक्कत रहती है,.तो आप मोती की खेती जैसे कई दूसरे व्यवसाय अपना सकते हैं और अच्छा लाभ कमा सकते हैं. उन्होंने कहा कि अगर परंपरागत खेती में लाभ नहीं मिल रहा है तो उसके साथ कुछ नई योजना बनानी चाहिए.
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