महाराष्ट्र में महायुति की नई सरकार बनने वाली है. उससे पहले मौजूदा महायुति सरकार पर सोयाबीन और कपास की गिरती कीमतों के कारण किसानों को तत्काल राहत देने के लिए काफी दबाव है. ये दबाव इसलिए है क्योंकि चुनाव प्रचार में बड़े-बड़े नेताओं ने सोयाबीन और कपास किसानों को बंपर रेट देने का वादा किया है. इसमें 6,000 रुपये प्रति क्विंटल तक रेट देने का वादा है. इस तरह का वादा करने वाले नेताओं में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं. अब जब नई सरकार बनेगी तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती इन वादों को पूरा करने का होगा. ऐसे में सरकार दो तरीकों पर विचार कर सकती है जिससे किसानों को राहत दी जा सके.
इन दो तरीकों पर बात करने से पहले सोयाबीन और कपास की कीमतों के बारे में जान लेते हैं. सोयाबीन की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे चली गई हैं. सरकार नई कैबिनेट के गठन की तैयारी कर रही है, ऐसे में उसकी एक बड़ी चुनौती इस संकट से निपटना होगी. 20 नवंबर तक लातूर मंडी में सोयाबीन की कीमत 4200 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई, जो 4892 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से करीब 14 फीसदी कम है. इसी तरह अकोला मंडी में देसी कपास की कीमत 7396 रुपये प्रति क्विंटल पर थी, जो 7521 रुपये प्रति क्विंटल के MSP से थोड़ा कम है. प्याज की कीमत में भी भारी गिरावट आई है. लासल गांव में तीन हफ्तों में 26 फीसदी की गिरावट के साथ प्याज की कीमत 4000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई है.
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चुनावों से पहले महाराष्ट्र में सोयाबीन के लिए 6000 रुपये प्रति क्विंटल एमएसपी तय करने के प्रधानमंत्री के वादे को किसानों ने गंभीरता से लिया है. यही वजह है कि हाल में बीते चुनाव में किसानों ने महायुति और बीजेपी को जमकर वोट दिया है. दूसरी ओर बाजार में कीमतों में गिरावट के साथ सोयाबीन किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है. खासकर तब जब सरकार ने खाने के तेलों पर आयात शुल्क 20 परसेंट बढ़ा दिया, जिससे तेल की कीमतों में उछाल आया लेकिन सोयाबीन की कीमतों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. इसे देखते हुए महाराष्ट्र में बनने वाली महायुति की सरकार दो विकल्पों पर गौर कर सकती है.
सरकार महाराष्ट्र में किसानों से 6000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सोयाबीन खरीद सकती है, जिससे उन्हें उचित मूल्य मिल सके. इससे किसानों की मांग भी पूरी हो जाएगी जिसमें वे एमएसपी को लेकर गहरी चिंता जता रहे हैं. उनकी मांग एमएसपी की है जो कि 4892 रुपये प्रति क्विंटल है. ऐसे में सरकार अगर 6,000 रुपये के रेट से सोयाबीन खरीदती है तो किसानों को बहुत फायदा होगा.
यह योजना किसानों को तब मुआवजा देती है जब बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे चला जाता है. इससे भाव के अंतर को पाटने और उनकी आय को बचाने में मदद मिलती है. इसमें सरकार किसान को वह राशि दे सकती है जो मंडी से कम रेट पर खुले बाजार में मिल रही है. इससे किसानों की एमएसपी की मांग पूरी हो जाएगी. इस तरह की योजना हरियाणा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में चलाई जाती है.
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हालांकि, चुनौती महाराष्ट्र से आगे तक फैली हुई है. अगर सरकार महाराष्ट्र में 6000 रुपये प्रति क्विंटल पर सोयाबीन खरीदती है, तो मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे अन्य प्रमुख सोयाबीन उगाने वाले राज्यों में किसान इसी तरह की कीमतों की मांग करेंगे, जिससे सरकार पर दबाव और बढ़ जाएगा.
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