पिछले साल संतोषजनक बारिश और रबी के सीजन में प्याज की फसल को मिली अच्छी कीमत के चलते इस साल किसानों ने ज्यादा से ज्यादा मात्रा में फसल बोई. वहीं जहां प्री-मॉनसून की वजह से प्याज की बुवाई प्रभावित हुई थी. इस साल रिकॉर्ड फसल हुई है क्योंकि किसानों ने दोगुनी नर्सरी बोई और प्याज की फसल ज्यादा हो गई. अब किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है मजदूरों की कमी और इस वजह से उन्हें फसल की कटाई में काफी दिक्कतें आ रही हैं. महाराष्ट्र के नासिक में प्याज की खेती करने वाले किसान मजदूरों की कमी से जूझ रहे हैं और उन्हें नहीं मालूम की इन हालातों में फसल कैसे कट सकेगी.
प्याज की कटाई का सीजन शुरू हो चुका है और मजदूरों की कमी इसे प्रभावित कर रही है. इस कमी की वजह से कटाई की लागत में 30 से 40 फीसदी का इजाफा हो गया है. वहीं स्थानीय मजदूर इस बार नहीं मिल रहे हैं और इस बार कटाई प्रवासी मजदूरों पर निर्भर है. स्थानीय स्तर पर खेती का काम करने वाले मजदूरों की कमी पिछले कुछ समय से बड़ी चुनौती बनी हुई है. मजदूरी भी बड़ गई और ज्यादा मजदूरी अदा करने के बाद भी काम नहीं हो पा रहा है. नासिक में प्याज की कटाई इस बार मध्य प्रदेश औद गुजरात से आने वाले मजदूरों पर निर्भर है. जिले में मजदूर इन दोनों राज्यों से अपने परिवार से साथ पहुंचे हैं.
ये मजदूर स्थानीय मजदूरों की तुलना में ज्यादा मजदूरी मांग रहे हैं. किसानों को प्रति एकड़ 12 हजार से 16 हजार तक अदा करने पड़ रहे हैं. ऐसे में उन पर दोहरी मार पड़ रही है क्योंकि बाजार में प्याज की कोइ कीमत नहीं मिल रही है. प्रवासी मजूदर 8 से 10 घंटे तक काम कर सकते हैं. किसानों को इन मजदूरों को छाया, पानी से लेकर कभी-कभी खाना तक मुहैया कराना पड़ता है. किसान इस बार इस समस्या से काफी परेशान हैं.
कुछ किसान मजदूरों के संकट के लिए राज्य में जारी योजनाओं को दोष देते हैं. उनका कहना है कि गरीब परिवारों के लिए मुफ्त खाद्यान्न, आंगनवाड़ी भोजन और लड़की बहिन योजना जैसी योजनाओं ने खेती में मजदूरी के संकट को और बढ़ा दिया हे. चूंकि इन परिवारों को भोजन और आर्थिक मदद मिल रही है इसलिए अब स्थानीय मजदूर खेतों पर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों का कहना है कि पहले मजदूर करीब एक महीने तक काम करते थे. लेकिन अब वो सिर्फ हफ्ते में एक ही बार नजर आते हैं.
किसानों का दावा है कि इन योजनाओं के कारण पुरुष श्रमिकों में शराब की खपत बढ़ गई है. उन्होंने कहा कि कम वित्तीय दबाव के कारण कई लोग काम करने के बजाय घर पर रहना, मोबाइल वीडियो देखना या शराब पीना पसंद करते हैं. एक और किसान ने भी इसी तरह की चिंता जताई है. उन्होंने कहा कि कृषि में मजदूरी का खर्च करीब दोगुना हो गया है. किसान संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि पुरुष श्रमिक काम करने से इनकार कर रहे हैं. इससे हमें महिलाओं को काम पर रखना पड़ रहा है या फिर दूरदराज के इलाकों से मजदूरों को लाना पड़ रहा है.
प्रमुख कृषि क्षेत्रों खास तौर पर नासिक में, जहां प्याज मुख्य फसल है, किसानों को उत्पादन को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. किसानों का कहना है कि कमी के कारण मजदूरी की लागत बढ़ गई है. मजदूरों को लाने के लिए ट्रैक्टर या गाड़ियां भेजनी पड़ रही हैं और फिर भी, कोई गारंटी नहीं है कि वे आएंगे. किसानों की मानें तो पहले, किसान और मजदूर दोनों ही खेतों में कड़ी मेहनत करते थे. अब, जमीन के मालिक ही मेहनत कर रहे हैं और कई मजदूर घर पर रहना पसंद करते हैं.
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