तमिलनाडु विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पहले विधायक थिरु सी. वेलायुथम का बुधवार को निधन हो गया. वह 73 साल के थे. उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुख जताया है. पीएम मोदी ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा कि ये उनके जैसे लोग ही हैं जिन्होंने तमिलनाडु में बीजेपी को बनाया और लोगों को पार्टी के विकास का एजेंडा समझाया. पीएम मोदी ने लिखा कि वह थिरु सी. वेलायुथम के निधन से दुखी हैं. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी उनके निधन पर अफसोस जताया है. वहीं, तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने वेलायुथम को राज्य में पार्टी का लीडर बताया.
अन्नामलाई ने एक्स पर लिखा कि तमिलनाडु में बीजेपी के पहले विधायक वेलायुथम ने कड़ी मेहनत की. उन्होंने तमिलनाडु में पार्टी के विकास के लिए भरोसे के बीज बोए. अन्नामलाई के अलावा पार्टी के कई नेताओं ने उनके निधन पर अफसोस जताया है. वेलायुथन ने पहली बार 1989 में कन्याकुमारी के पद्मनाभपुरम विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा था. 18.26 प्रतिशत वोट के साथ चौथा स्थान हासिल किया था.
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कन्याकुमारी में बीजेपी के सीनियर लीडर्स को याद है कि कैसे एक गरीब परिवार से आने वाले वेलायुथम ने चुनाव के खर्चों को पूरा करने के कर्ज लिया था. पद्मनाभपुरम में वह लोकल लोगों के बीच काफी मशहूर थे. वेलायुथम यहां के एक लोकप्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी थे. बीजेपी के नेता सजयन ने बताया कि पहले चुनाव के लिए और खर्चों को पूरा करने के लिए वह अपनी जमीन बेचने और कर्ज हासिल करने में कामयाब रहे थे.
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सन् 1991 में उन्होंने दूसरी बार चुनाव लड़ा और 23 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. सन् 1996 में वह 31.76 प्रतिशत वोट के साथ सीट जीतने में सफल रहे और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के उम्मीदवार बाला जनाथिपति को दूसरे स्थान पर धकेल दिया. विशेषज्ञों की मानें तो कन्याकुमारी में बीजेपी इस जीत ने उस दौर में पार्टी के अंदर विश्वास भरने का काम किया था. कन्याकुमारी हमेशा से राष्ट्रीय पार्टियों के लिए फायदेमंद रहा है क्योंकि वहां अल्पसंख्यक आबादी बहुत ज्यादा है. ऐसे में बीजेपी की जीत चौंकाने वाली थी.
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वेलायुथन ने सन् 1996 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. उनकी जीत को आज तक याद किया जाता है. इस जीत ने न केवल बीजेपी ने विधानसभा में अपना खाता खोला, बल्कि उन्हें यह जीत तब मिली थी जब द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अन्नाद्रमुक को हराकर चुनाव जीता था. वेलायुथन ने पद्मनाभपुरम में ही आखिरी सांस ली. वह आरएसएस से जुड़े सामाजिक सेवा संगठन, सेवाभारती से जुड़े थे. उन्होंने 1975 से 1977 तक इमरजेंसी के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी हिस्सा लिया था.
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