केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल के अधिकारों को और मजबूत कर दिया है. नए फैसले के बाद अब उप-राज्यपाल के पास पुलिस और ऑल इंडिया सर्विसेज के अधिकारियों जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर निर्णय लेने और कई मामलों में प्रॉसिक्यूशन के लिए मंजूरी देने का अधिकार मिल गया है. वहीं विपक्ष ने केंद्र सरकार के इस कदम की आलोचना की है. विपक्ष का कहना है कि केंद्र सरकार का यह फैसला जम्मू-कश्मीर के लोगों को कमजोर करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है.
गृह मंत्रालय की तरफ से शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के तहत बनाए गए नियमों में संशोधन करके एलजी को और ताकतवर बना दिया है. पांच अगस्त 2019 को केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटा दिया था. इसके साथ ही राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया गया था. इससे पहले पुलिस, पब्लिक ऑर्डर, ऑल इंडिया सर्विसेज और एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) से जुड़े प्रस्तावों को एलजी तक पहुंचने से पहले जम्मू-कश्मीर के वित्त विभाग से मंजूरी लेनी पड़ती थी. लेकिन अब जो नियम बदले गए हैं उसमें, ऐसे प्रस्तावों को अब केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव के माध्यम से सीधे एलजी के सामने पेश किया जाना चाहिए. अभी एलजी का अधिकार एडवोकेट जनरल और बाकी कानून अधिकारियों की नियुक्ति तक है. सरकार की तरफ से पहले तय की गई इन नियुक्तियों के लिए अब एलजी की मंजूरी जरूरी होगी.
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केंद्र के इस कदम के बाद, प्रॉसिक्यूशन प्रतिबंधों और अपील दायर करने से संबंधित फैसले भी एलजी के अधिकार क्षेत्र में आएंगे. इसके अलावा, जेलों, अभियोजन निदेशालय और फोरेंसिक साइंस लैब से जुड़े मामलों को भी एलजी ही संभालेंगे. केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है, 'पुलिस, पब्लिक ऑर्डर, ऑल इंडिया सर्विसेज और एसीबी के संबंध में वित्त विभाग की पूर्व मंजूरी की जरूरत वाले किसी भी प्रस्ताव को तब तक स्वीकार या अस्वीकार नहीं किया जाएगा, जब तक कि इसे मुख्य सचिव के माध्यम से लेफ्टिनेंट गवर्नर के सामने नहीं रखा जाता.' नौकरशाही के मामलों में एलजी की भूमिका को भी बढ़ाया गया है. आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से संबंधित प्रशासनिक सचिवों की पोस्टिंग और तबादलों के प्रस्ताव एलजी के कार्यालय के माध्यम से भेजे जाएंगे.
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केंद्र के इस फैसले की जम्मू-कश्मीर के कुछ राजनीतिक दलों ने आलोचना की है. उन्होंने इस फैसले को निर्वाचित सरकार की शक्ति को कम करने का प्रयास बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर में 'जल्द से जल्द' राज्य का दर्जा बहाल करने और 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराने का निर्देश दिया है. शनिवार को कई राजनीतिक दलों ने पुलिस और ऑल इंडिया सर्विसेज के अधिकारियों से जुड़े मामलों में जम्मू-कश्मीर के एलजी को अतिरिक्त अधिकार देने के केंद्र के कदम पर अपनी असहमति जताई है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने इस फैसले को जम्मू-कश्मीर के लोगों को 'कमजोर' करने वाला कदम बताया, जबकि कांग्रेस ने इस कदम की निंदा करते हुए इसे 'लोकतंत्र की हत्या' बताया.एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने 'शक्तिहीन और रबर स्टैम्प' मुख्यमंत्री होने को लेकर चिंता जताई है , जिन्हें छोटी नियुक्तियों के लिए भी एलजी की मंजूरी की आवश्यकता होगी.
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