एमपी में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी जोरों पर है. इस बीच सूबे की राजधानी भोपाल से सटे रायसेन जिले की सांची विधानसभा सीट पर चुनावी हवा का रुख कुछ अलग ही तस्वीर पेश कर रहा है. भोपाल से महज 40 किमी दूर सांची के मतदाताओं ने यह सुनिश्चित कर लिया है कि इस बार भी उनका विधायक कोई डाक्टर ही होगा. ग्रामीण आबादी की बहुलता वाले सांची विधानसभा क्षेत्र के मतदाता ऐसा पहली बार नहीं कर रहे हैं. पिछले 4 दशक से यहां के मतदाता किसी डाक्टर को ही अपना विधायक चुन रहे हैं. इसी का नतीजा है कि सांची विधानसभा सीट से पिछले 11 चुनाव में डाक्टर उम्मीदवार ही विधायक चुना गया है. इतना ही नहीं 12वीं बार भी इस सीट से डाक्टर का ही चुना जाना लगभग तय है.
सांची विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पिछले 18 साल से एमपी की सत्ता में काबिज भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इस सीट पर डाक्टर उम्मीदवार को चुनाव के मैदान में उतार कर, किसी डाक्टर को ही विधायक बनाने के सांची के रिकॉर्ड को बरकरार रखने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है.
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सांची, सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए बौद्ध स्तूपों के लिए दुनिया भर में मशहूर है. सांची विधानसभा सीट के मतदाता पिछले 46 साल से किसी न किसी डाक्टर को ही अपना विधायक चुन रहे हैं. इस सीट का चुनावी इतिहास बताता है कि इस सीट पर यह 12वां विधानसभा चुनाव होगा, जिसमें कोई डाक्टर ही इस सीट से विधायक बनेगा. इस सीट से एक संयोग और भी जुड़ा है, जिसके मुताबिक पिछले 12 चुनाव में भाजपा या कांग्रेस ने जब जब किसी गैर डाक्टर को उम्मीदवार बनाया, उसकी हार हुई.
कांग्रेस ने 1990, 2003 और 2020 में गैर डाक्टर को उम्मीदवार बनाया और तीनों ही चुनाव में कांग्रेस को भाजपा के डाक्टर उम्मीदवार ने हरा दिया. इसी तरह 2018 में भाजपा ने गैर डाक्टर मुदित शेजवार को टिकट दिया था. नतीजा कांग्रेस की जीत के रूप में सामने आया.
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सांची सीट पर डाक्टर के विधायक बनने का सिलसिला 1977 से शुरू हुआ और यह अब तक जारी है. उस समय जनसंघ के टिकट पर डा गौरीशंकर शेजवार सांची से विधायक बने थे. उन्होंने 1980 में भी चुनाव जीता, लेकिन 1985 में वह कांग्रेस के युवा चिकित्सक डा प्रभुलाल चौधरी से चुनाव हार गए. इसके बाद 1990 में कांग्रेस ने डा चौधरी की जगह गैर डाक्टर गज्जू मलैया को टिकट दिया और वह डा शेजवार से हार गए.
इसके बाद 1993 और 1998 में डा शेजवार एवं डा चौधरी, चुनाव के मैदान में फिर आमने सामने आए. डा शेजवार ने 1993 और डा चौधरी ने 1998 में जीत दर्ज की. कांग्रेस द्वारा 2003 में डा चौधरी का टिकट काटने के बाद डा शेजवार फिर चुनाव जीत गए. मगर 2008 में डा चौधरी ने डा शेजवार को और 2013 में डा शेजवार ने डा चौधरी को हरा दिया.
पिछले चुनाव में भाजपा ने शेजवार के बेटे मुदित को उम्मीदवार बनाया, मगर वह कांग्रेस के डा चौधरी से हार गए. इसके बाद डा चौधरी ने 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत में साथ देकर भाजपा का दामन थाम लिया. इस कारण हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने डा चाैधरी के सामने गैर डाक्टर मदन लाल चौधरी काे उम्मीदवार बनाया, मगर जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया. अब कांग्रेस ने इस चुनाव में डा गौतम को और भाजपा ने डा चौधरी को उम्मीदवार बनाया है. इनमें से किसी न किसी डाक्टर का चुना जाना तय है.
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