यूपी में बुंदेलखंड के बीहड़ पट्टी की बदहाल तस्वीर को ढो रहा जालौन जिला, तरक्की से कोसों दूर रहा है. कोरोना काल में, जबकि दुनिया महामारी के चंगुल में फंसी थी, तभी जालौन जिले का मलकपुरा गांव एक नई तरह की Positive Energy के साथ अचानक सुर्खियों में आया. यूपी में साल 2021 का पंचायत चुनाव, इस गांव के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीदों से भरी ऊर्जा का वाहक बना. चुनाव में इस गांव को युवा सोच वाला एक ऐसा प्रधान मिला, जिसने गांव के बच्चों काे इसरो तक पहुंचने का सपना दिखाया और किसानों में उन्नत खेती सीखने की ललक पैदा कर दी. सरकार के Corrupt System ने अब इस गांव के सपनों के साथ जंग तेज कर दी है.
साल 2021 में प्रधान बनने के बाद अमित ने गांव के हित में सोशल मीडिया का भरपूर लाभ उठाते हुए गांव की तरक्की का रोडमैप तय किया. इस पर उन्होंने Time Bound Manner में काम करना शुरू कर दिया. बेहतर भविष्य के सपनों की उड़ान भर चुका यह गांव रातों रात चर्चा में आ गया. मगर यह सिलसिला महज 10 महीने तक ही चल सका.
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एक समय था, जब जालौन जिले की बीहड़ पट्टी की पहचान कुख्यात डाकुओं से होती थी. इलाके की इस पहचान को बदलने का वक्त साल 2021 में आया, जब दिल्ली में टीवी पत्रकारिता का सुनहरा करियर छोड़ कर गांव का रुख करने वाले युवा पत्रकार अमित को मलकपुरा वालों ने अपना प्रधान चुना.
इसके कुछ समय बाद ही गांव के स्कूल में बच्चों को Mid Day Meal में डीलक्स थाली परोसे जाने की तस्वीरों ने खूब सुर्खियां बटोरीं. सरकार से लेकर हर किसी ने इसकी जमकर तारीफ की. अमित ने 'किसान तक' को बताया कि मिड डे मील में एक बच्चे के खाने पर 5 से 7 रुपये ही खर्च करने का प्रावधान है. ऐसे में प्रधानों के लिए इतनी कम राशि में बच्चों को पौष्टिक भोजन कराना गंभीर चुनौती साबित होता है.
अमित ने इसके लिए Crowd Funding का फंडा अपनाया. सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने लोगों से स्कूली बच्चों के लिए एक दिन के मिड डे मील का Sponsor बनने की पेशकश की. लोगों ने इस पेशकश को हाथों हाथ लिया और अपने जन्मदिन या त्योहार पर बच्चों के लिए मिड डे मील में पूड़ी, पनीर, मिठाई और फल से युक्त डीलक्स थाली परोसने के प्रयोग को कारगर बना दिया.
इसके साथ ही शुरू हुए इस सफर का अगला पड़ाव वृक्षारोपण और जल संरक्षण अभियान बने. अमित ने Online Crowd Funding के जरिए गांव में खेतों के किनारे फलदार पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की. इसमें अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों के अनिवासी भारतीयों (NRIs) की मदद से सैकड़ों पेड़ लगाए गए. इन पेड़ों पर दानदाताओं के नाम की पट्टी भी चस्पा की गई. सोशल मीडिया पर मलकपुरा गांव की यह मुहिम भी छा गई.
प्रधान के रूप में अपने 33 महीनों के कार्यकाल का तजुर्बा साझा करते हुए अमित ने बताया कि उन्होंने गांव के पुराने तालाब को पुनर्जीवित करने के लिए अनूठा प्रोजेक्ट बनाकर तालाब में साफ पानी की सप्लाई सुनिश्चित कर दी. अमित ने बताया कि स्कूल में उन्होंने पानी को साफ करने के लिए विज्ञान में तलछटीकरण यानी Sedimentation Process पढ़ी थी. तालाब में गांव से आने वाले गंदे पानी को तीन अलग अलग गहराई वाले पक्के गड्ढे बनाकर पानी को साफ करने का प्रयोग सफल होने के बाद जल शक्ति मंत्रालय ने अमित को वॉटर हीरो अवार्ड भी दिया.
अमित ने बताया कि बतौर प्रधान, इतना सब कुछ शुरुआती 10 महीनों में होने के बाद सिस्टम में समाया भ्रष्टाचार जाग गया. इसकी पहली मार गांव के तालाब पर पड़ी, जिसे अमृत सरोवर योजना के तहत संवारा जाना था. उन्होंने बताया कि अब तक क्राउड फंडिंग से हो रहे कामों के कारण विभाग के कर्मचारी और ठेकेदारों के कमीशन पर कोई असर नहीं पड़ रहा था, इसलिए ये सब चुप थे.
तालाब को संवारने जैसे बड़े काम में लाखों रुपये का कमीशन पाने की चाहत पर प्रधान ने जब ब्रेक लगा दिया, तो भ्रष्ट तंत्र ने पूरी परियोजना को ही फाइलों की गहराई में दबा दिया. दो साल बाद भी तालाब की बदहाली जस की तस है. तालाब को सिर्फ प्रधान के सफल प्रयोग के कारण साफ पानी मिल पा रहा है.
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अमित ने बताया कि क्राउडफंडिंग से गांव के बच्चों को कंप्यूटर सिखाने के लिए सोलर कंप्यूटर सेंटर शुरू हुआ. इसमें दर्जन भर बच्चों काे कंप्यूटर सिखाने के लिए जालौन से एक टीचर आने लगा. इससे पहले बैच के दर्जन भर बच्चे ही कंप्यूटर सीख पाए हैं. इसके बाद पंचायत कर्मियों की कानूनी बाधाओं के कारण टीचर ने आना बंद कर दिया. फिलहाल कंप्यूटर की क्लास बंद हैं और अब इस सेंटर में बच्चों को प्रोजेक्टर पर प्रेरणादायक फिल्में दिखाई जा रही हैं.
स्कूल में भी अमित ने क्राउड फंडिंग से विज्ञान के अनूठे प्रोजेक्ट बनवाए. इससे बच्चों में इसरो तक पहुंचने की हसरत पैदा हुई. इस हसरत काे पूरा करने के लिए प्रधान द्वारा राज्य एवं केंद्र सरकार के स्तर पर पूरा करने के प्रयास भी शुरू किए गए.
अमित ने बताया कि प्रधान बनने के बाद शुरू के 10 महीनों तक पूरे जोश के साथ काम शुरू हुए. इनमें गांव में नया पंचायत भवन, सामुदायिक भवन और शौचालय बनवाने की कवायद भी शामिल रही. मगर, कमीशन के खेल ने तरक्की की स्पीड पर ब्रेक लगाने का काम कर दिया.
वह बताते हैं कि पिछले दो साल से गांव की तरक्की के काम सुस्त पड़ गए हैं. सरकारी तंत्र, गांव के कामों में अपने तरीके से बाधक बन रहा है. आलम यह है कि प्रधान को पंचायत सचिव के साथ अभद्रता करने की शिकायत का भी सामना करना पड़ रहा है. गांव वाले भी इस हाल से चिंतित हैं.
गांव के पूर्व प्रधान प्रेम नारायण पटेल ने बताया कि न केवल मलकपुरा, बल्कि पूरे जिले में किसी गांव को इतना शालीन, मेहनती और ईमानदार प्रधान पहले नहीं मिला. इसके बावजूद सरकारी तंत्र में जमी भ्रष्टाचार की गहरी जड़ें युवा प्रधान की राह रोक रही हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को प्रधान का कार्यकाल पूरा होने का इंतजार है. जिससे उन्हें अगले दो साल तक इसी तरह की झंझटों में उलझा कर रखने की रणनीति अपनाई गई है.
पटेल ने दलील दी कि अमित के लिए यह कार्यकाल अंतिम है, क्योंकि आरक्षण के आधार पर अगली पंचायत में उनके गांव के प्रधान का पद कम से कम सामान्य वर्ग के पुरुष को नहीं मिलेगा. ऐसे में गांव वाले भी नाउम्मीद हो रहे हैं. कुल मिलाकर गांव के सपनों की उड़ान में भी अब थकान का असर साफ तौर पर देखा जा सकता है. 'किसान तक' ने इस मामले में ग्राम विकास एवं पंचायती राज विभाग के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की, मगर अधिकारी इस मामले में बात करने से बचते नजर आए.
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