बंगाल का संदेशखाली इन दिनों जबरदस्त सुर्खियों में है. यहां हम उन किसानों की चर्चा करेंगे जिनकी जमीन जबरदस्ती हड़प ली गई थी. हालांकि अब जब यह मामला सामने आया है और दबाव बढ़ा है तो किसानों की जमीन वापस की जा रही है. गांव में लगभग 250 से अधिक ऐसे ग्रामीण हैं जिनके चेहरे पर अब खुशी है क्योंकि उनकी जमीन उन्हें वापस मिल गई है. ग्रामीणों की यह जमीन टीएमसी नेता शाहजहां शेख, शिबाप्रसाद हाजरा और उत्तम सरदार ने जबरदस्ती हड़प ली थी. अब ग्रामीणों को उनकी पुश्तैनी जमीन वापस मिलने की खुशी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार माया कंदार ने कहा कि आरोपी नेताओं ने उनकी आठ बीघा जमीन छीन ली थी जो अब उन्हें वापस मिल गई है. उन्होंने बताया कि उस जमीन में वो धान की खेती करते थे. उपज इतनी होती थी जो उनके भरण-पोषण के लिए पर्याप्त थी. वो इस जमीन को छोड़ने के तैयार नहीं थे, पर उन्हें डरा धमका कर जमीन छीन ली गई और उसे झींगा पालन के लिए मछली फार्म में बदल दिया गया.
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हालांकि जब यह मामला सामने आया तो उन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की गई और उनकी जमीन वापस करने का काम चल रहा है. एक अधिकारी ने कहा कि गांव में जमीन हड़पने की लगभग 300 से अधिक शिकायतें सामने आई हैं. इसके अलावा एक और शिविर लगाया गया था, वहां भी शिकायतें मिली हैं. शिकायतों का सत्यापन करने के बाद जो भी दस्तावेज सही पाए गए, उनको जमीन वापस किया जा रहा है. अब तक 500 बीघा से अधिक जमीन ग्रामीणों को वापस मिल चुकी है. ग्रामीण खुश हैं पर उनकी खुशी लंबे समय तक के लिए नहीं है क्योंकि जो जमीन उन्हें वापस की जा रही है, वह अब कृषि के लायक नहीं बची है. झींगा मछली पालन करने के लिए उस जमीन में खारा पानी भर दिया गया था जिससे जमीन खराब हो चुकी है.
लंबे समय तक खारे पानी में डूबे रहने के कारण मिट्टी की ऊपरी परत को नुकसान पहुंचा है. उसके ऊपर नमक की एक परत जम गई है. इसके कारण उस जमीन पर अगले 10 वर्षों के लिए कृषि कार्य नहीं हो सकता है. पश्चिम बंगाल में बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति चित्तरंजन कोले बताते हैं कि जितनी अधिक देर तक कोई भूमि खारे पानी के नीचे रहेगी, उसे पुनर्जीवित होने में उतना ही अधिक समय लगेगा.
सामान्य नियम यह है कि यदि कोई भूमि एक वर्ष तक पानी में डूबी रहती है, तो उसे पुनर्जीवित होने में दो वर्ष लगेंगे. इसमें दोगुना समय लगता है. विशेषज्ञों का मानना है कि खारे पानी के कारण ऊपरी मिट्टी में मौजूद कार्बन कंटेंट और सूक्ष्म जीव नष्ट हो चुके हैं. इसे बदलने की जरूरत है. उन्होंने कहा कहा कि पहले जमीन से नमक हटाना पड़ेगा, फिर दो से तीन फीट तक खेत को खोदना पड़ेगा. उसमें ताजी मिट्टी डालनी होगी. इसके बाद इसमें नमक को बर्दास्त करने वाली धान की किस्मों की खेती की जा सकेगी. लेकिन इसमें कुछ साल लग जाएंगे.
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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पूर्व उप महानिदेशक (फसल) स्वपन कुमार दत्ता ने कहा कि इन जमीनों पर खेती के बजाय मछली पालन एक अच्छा विकल्प हो सकता है. वो कहते हैं कि इन ज़मीनों को फिर से कृषि के लिए उपयुक्त बनाने में समय, प्रयास और पैसा लगेगा. इसके बजाय, मछली पालन एक आर्थिक रूप से अच्छा विकल्प होगा. लेकिन इसके लिए सरकार को सकारात्मक पहल के साथ हस्तक्षेप करने की जरूरत होगी. यहां अधिकांश किसान ऐसे हैं जिन्हें मछली पालन के बारे में बेहद कम जानकारी है या जानकारी नहीं है. इसके साथ ही नहरों और तालाबों को खोदने की योजना बनाई जा रही है ताकि बारिश का पानी जमा किया जा सके, जिसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जा सके.
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