इस वक्त पूरे देश में भीषण गर्मी का प्रकोप देखने के लिए मिल रहा है. अप्रैल के पहले सप्ताह से ही कई शहरों में हीटवेव की स्थिति देखी जा रही है. तापमान 40 डिग्री के पार दर्ज किया जा रहा है. मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस साल सामान्य तापमान से ज्यादा तापमान देखने को मिलेगा. यही नहीं, आने वाले कुछ सालों में तापमान के और बढ़ने की उम्मीद है. इस बढ़ती गर्मी का असर सीधे तौर फसलों की पैदावार पर पड़ता है. इस तरह लगातार बढ़ते तापमान के कारण फसलों की पैदावार में गिरावट ना आए, इसके लिए कृषि वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं.
इस बीच भारत की सबसे पुरानी और बड़ी एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में से एक सीएसए यूनिवर्सिटी ने गेहूं की ऐसी किस्म विकसित की है जिसकी खेती के लिए बेहद कम पानी की आवश्यकता होती है. सामान्य गेहूं की खेती की तुलना में उससे 70 फीसदी कम पानी में इसकी खेती हो जाती है. सीएसए यूनिवर्सिटी के आनंद कुमार सिंह ने बताया कि गेहूं की खेती भारतीय कृषि का आधार है जो देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन में 33 फीसदी से अधिक का योगदान देता है. 2023 में इसका उत्पादन 11 मिलियन टन था. उन्होंने कहा कि 2023 तक भारत में प्रति व्यक्ति गेहूं की खपत 74 किलोग्राम तक बढ़ने की उम्मीद है.
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आनंद कुमार सिंह ने कहा कि बढ़ती आबादी के साथ गेहूं की मांग भी बढ़ रही है. 2050 तक गेहूं की मांग बढ़कर 140 मिलियन टन होने की उम्मीद है. पर उत्पादन के इस लक्ष्य को पाना भी एक बड़ी चुनौती है क्योंकि तापमान लगातार बढ़ रहा है और सिंचाई के लिए पानी की कमी हो रही है. इसलिए हम लगातार ऐसी किस्मों को विकसित करने के लिए कार्य कर रहे हैं जो कम पानी और अधिक तापमान में भी बेहतर उत्पादन दे सके. इसी क्रम में गेहूं की एक ऐसी किस्म विकसित की गई है जो मात्र दो सिंचाई में ही तैयार हो जाती है. इस तरह से इसमें 70 फीसदी कम पानी लगता है.
गेहूं की इस किस्म को उगाने के लिए पारंपरिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि बीज की ब्रीडिंग खास वैरियेंट से कराई ताकि यह एक आदर्श बीज बन सके. गेहूं की यह किस्म K0307 और K 9162 को क्रॉस करके तैयार किया गया है. इन दोनों को क्रॉस कराकर एक अलग से किस्म तैयार की गई है जो गर्मियों के मौसम के लिए एक आर्दश बीज बन कर उभरी है. इस बीज की परिपक्व होने की अवधि 120-128 दिनों की होती है. साथ ही इसकी उपज 5.5 टन प्रति हेक्टेयर है जबकि गेहूं की उपज का राष्ट्रीय औसत 3.5 टन प्रति हेक्टेयर है. गेहूं की इस नई किस्म में प्रोटीन की मात्रा 12.5 प्रतिशत और 43.8 पीपीएम आयरन की मात्रा है. यह लोगों में आयरन की कमी दूर करने में बहुत सहायक साबित होगी.
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गेहूं की किस्म K 1317 की खेती किसानों के लिए काफी फायदेमंद होगी क्योंकि इसकी उपज अधिक होती है. साथ ही इसकी खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है. इसकी खेती में कम नाइट्रोजन के इस्तेमाल से भी किसान अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं जो अन्य गेहूं की किस्मों से इसे अलग बनाती है. इसके अलावा, केवल दो सिंचाई की आवश्यकता होने के कारण, यह किस्म पानी की लागत को काफी कम कर देती है, जो गेहूं की खेती में पानी की कुल लागत का लगभग 20 फीसदी है. इसकी एक और खासियत यह होती है कि बारिश और ओलों का इन पर कम असर पड़ता है क्योंकि यह मजबूती के साथ खड़ी रहती है. (सिमर चालवा की रिपोर्ट)
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