महाराष्ट्र में छोटे मछुआरों को इन दिनों काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनके पास अधिक पूंजी और संसाधन नहीं है. आज भी वो पारंपरिक तरीकों को अपना कर जाल से मछली पकड़ते हैं. जबकि अब बड़े मछली पकड़ने वाले दूसरी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके मछली पकड़ते हैं. उनके पास संसाधन अधिक है और वो अधिक मछली पकड़ रहे हैं. इसके कारण छोटे मछुआरों को पास अब रोजी रोजगार का संकट आ गया है. वो अधिक समय पानी में बीताकर भी कम मछली पकड़ रहे हैं. इससे उन्हें कमाई नहीं हो पा रही है और अब वो इस व्यवसाय को छोड़ने का मन बना रहे हैं.
गोविंद परब भी एक ऐसे ही मछुआरे हैं जो पिछले दो दशकों से मछली पकड़ने का काम करते हैं. इस काम के जरिए वो अपनी आजीविका चलाते हैं और परिवार का भरण-पोषण करते हैं. लेकिन अब वो इस पेशे को छोड़ने के बारे में विचार कर रहे हैं. क्योंकि अब पहले की तरह वो मछलियां नहीं पकड़ पा रहे हैं. हिंदू बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने बताया कि करीब दो घंटे तक समुद्र में मछली पकड़ने के बाद भी वो एक भी मछली नहीं पकड़ पाए हैं. गोविंद के पास मछली पकड़ने के लिए बड़ा नाम नहीं है. उनके पास एक छोटी नाव है और सिर्फ एक छोटा सा जाल है जिससे वो मछली पकड़ते हैं और रत्नागिरी के बाजार में बेचते हैं.
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गोविदं परब के जैसी ही रघुनाथ सांवत की भी कहानी है. रघुनाथ के पास मछली पकड़ने के लिए एक नाव है जो पूरी तरह से जर्जर हो चुकी है. उन्होंने कहा कि बड़े मछुआरे एलइडी लाइट तकनीक का इस्तेमाल करते हैं जो सभी मछलियों को पकड़ कर ले जाते हैं. रधुनाथ जैसे छोटे मछुआरों के हिस्से में कुछ नहीं आता है. इसके कारण अब उनके सामने आजीविका का संकट पैदा हो गया है. छोटे मछुआरों को अब जिंदा रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
मछली पकड़ने के लिए एलईडी लाइट्स और आधुनिक जाल के इस्तेमाल के कारण कोंकण समुद्री क्षेत्र में मछली पकड़ने का काम काफी प्रभावित हुआ है. हालांकि छोटे किसान मछली पकड़ने के इस तरीके का विरोध कर रहे हैं. क्योंकि इस तरीके को बड़े मछुआरे इस्तेमाल करते हैं, यह छोटे मछुआरों की पहुंच से बाहर है. एलईडी लाइट रात के समय फाइटोप्लांकटन को आकर्षित करते हैं. फाइटोप्लांकटन के पीछे बड़ी संख्या में मछलियां आती है. उन्हें पकड़े के लिए नाव में ही जाल बंधी रहती है जो 2000 मीटर लंबा और250 फीट की गहराई तक जाती है. यह एक ही बार में बड़ी संख्या में मछलियों को पकड़ती है.
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बड़े और अमीर मछुआरे इस तकनीक का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे हैं जबकि सरकार इनके खिलाफ किसी प्रकार का कोई एक्शन नहीं ले रही है. क्योंकि नियम के अनुसार इन मछुआरों पर सरकार जुर्माना भी करती है. जिसे वो मछुआरे मौके पर ही चुका देते हैं और फिर से अवैध तरीके से मछली मारने का सिलसिला चलता रहता है. इस मुद्दे पर विधानसभा में बोलते हुए विधायक नितेश राणे ने कहा कि सरकार को या तो इन मछुआरों पर अधिक जुर्माना लगाना चाहिए, या फिर इसे पूरे तरीके से बंद कर देना चाहिए, ताकि छोटे मछुआरों के हितों की रक्षा हो सके.
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