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Colours of Holi : ब्रज ही नहीं, बुंदेलखंड के इस गांव में भी खेली जाती है लट्ठमार होली

Colours of Holi : ब्रज ही नहीं, बुंदेलखंड के इस गांव में भी खेली जाती है लट्ठमार होली

रंगों के त्योहार होली को देश के अलग अलग इलाकों में विविध अंदाज से मनाया जाता है. इनमें यूपी के ब्रज क्षेत्र में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली दुनिया भर में मशहूर है. Holi Celebration का यह अंदाज ब्रज से सटे बुंदेलखंड इलाके में भी प्रचलित है.

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बुंदेलखंड के डगरवाहा गांव में भी खेली जाती है लट्ठमार होली बुंदेलखंड के डगरवाहा गांव में भी खेली जाती है लट्ठमार होली

भारत के उत्सवधर्मी समाज में लोकपर्व मनाने की समृद्ध परंपरा है. इनमें होली सबसे ज्यादा लोकप्रिय Social Festival है. सामाजिक जीवन की शुरुआत से जुड़े पर्व होली को दुनिया के अलग अलग हिस्सों में विभिन्न नामों से मनाया जाता है. वहीं, भारत में होली का सबसे अनूठा अंदाज यूपी के ब्रज क्षेत्र में देखने को मिलता है. ब्रज की लट्ठमार होली देखने के लिए दुनिया भर के सैलानी मथुरा वृंदावन पहुंचते हैं. मगर, ब्रज के अलावा बुंदेलखंड भी लट्ठ मार होली की परंपरा से जुड़ा है. यह बात दीगर है कि बुंदेलखंड में सिर्फ एक गांव है, जिसमें लट्ठ मार होली बड़े धूमधाम से मनाई जाती है. कम लोगों को ही मालूम है कि सदियों से झांसी जिले के डगरवाहा गांव में लट्ठ मार होली की परंपरा को सुचारु रखा गया है. इस गांव में लट्ठ मार होली के अपने कुछ अलग ही नियम हैं और इन नियमों का पालन करते हुए हाेली की इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है.

कैसे जुदा है ब्रज की होली बुंदेलखंड से

बुंदेलखंड में होली को स्थानीय भाषा में 'फाग' कहा जाता है. लोक संगीत के लिहाज से भी होली के अवसर पर बुंदेलखंड में 'फाग' नामक Folk Song भी गाए जाते हैं. इन्हीं लोकगीतों की धुन पर डगरवाहा गांव की महिलाएं लट्ठ मार होली खेलती हैं. यह बात दीगर है कि ब्रज की लट्ठमार होली का अंदाज बुंदेलखंड की होली से कुछ अलग होता है. इसके नियम कायदे भी अलग हैं.

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एक हजार साल पुरानी परंपरा

डगरवाहा गांव में लट्ठ मार होली की परंपरा लगभग 1100 साल पुरानी है. गांव की प्रधान अंजली यादव के पति रहीस चंद्र यादव ने बताया कि इस गांव में दसवीं सदी में एक परिवार मथुरा से आकर गांव में बस गया था. उस परिवार ने ही गांव में लट्ठ मार होली की शुरुआत की थी.

उन्होंने पूर्वजों के हवाले से बताया कि जिस परिवार ने बुंदेलखंड के इस गांव में ब्रज की यह परंपरा शुरू की थी, उस परिवार की पहचान तो इतिहास में कहीं गुम हो गई, लेकिन गांव वालों ने अब तक इस परंपरा को जिंदा रखा है. यादव ने बताया कि ब्रज की ही तर्ज पर उनके गांव में भी होली का पर्व छह दिनों तक मनाया जाता है. इसमें रंग, गुलाल की होली से लेकर फाग के लोकगीतों की धुन पर फूलों की होली भी मनाई जाती है.

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ये हैं नियम

यादव ने बताया कि गांव के खाती बाबा मंदिर में होली का आयोजन होता है. इसमें होली के अवसर पर मंदिर के बाहर 50 फीट ऊंचे एक खंभे पर कपड़े की एक पोटली बांधी जाती है. इसमें गुड़ और कुछ पैसे बंधे होते हैं. गांव के पुरुषों की टोलियां होली के बाद दूज के दिन इस पोटली को हासिल करने की कोश‍िश करते हैं और उन्हें रोकने के लिए महिलाएं उन पर लट्ठ बरसाती हैं. हुरियारों की जिस टोली को पोटली उतारने में कामयाबी मिलती है, उसे इनाम के तौर पर पोटली में बंधे पैसे मिलते हैं.

मगर, लट्ठ मार के बीच इस पोटली को उतारना इतना आसान नहीं होता है. इसलिए हुरियारों की टोली, पोटली उतारने के लिए एक दिन में कामयाबी न मिलने पर पंचमी के दिन तक लगातार कोशिश करती रहती है.

इस होली का एक और खास नियम यह है कि इसमें सिर्फ डगरवाहा गांव की महिलाएं ही हिस्सा ले सकती हैं. जबकि पुरुषों के मामले में नियम है कि पड़ोसी गांवों के पुरुष भी पोटली उतारने की कोश‍िश कर सकते हैं. होली में हिस्सा लेने वाली महिलाओं को गांव के पुरुष ही लट्ठ तैयार करके देते हैं. हर महिला के पास दर्जन भर तक लट्ठ दिए जाते हैं. जिससे एक लट्ठ टूटने पर महिलाएं दूसरा लट्ठ इस्तेमाल कर सकें.