झारखंड में प्राकृतिक खेती को इस तरह से बढ़ावा दे रहा नाबार्ड, किसानों की कमाई बढ़ाने पर जोर

झारखंड में प्राकृतिक खेती को इस तरह से बढ़ावा दे रहा नाबार्ड, किसानों की कमाई बढ़ाने पर जोर

जीवा एक ऐसा मॉडल है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसान अपने खेत में इस तरह से खेती करें कि साल में कभी भी जब वो अपने खेत में जाए तो उसे कुछ ना कुछ मिल जाए. इसलिए किसान को मिश्रित खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके तहत किसान एक ही खेत में अलग-अलग सब्जियों और दाल की खेती करते हैं.

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झारखंड में प्राकृतिक खेती को इस तरह से बढ़ावा दे रहा नाबार्ड, किसानों की कमाई बढ़ाने पर जोरप्राकृतिक खेती से भी बढ़ सकती है बंपर कमाई

झारखंड के किसानों के लिए नाबार्ड की तरफ से एक बेहतरीन पहल की गई है. नाबार्ड की तरफ से झारखंड के दो जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. जीवा कार्यक्रम के तहत नाबार्ड की तरफ से यह पहल की गई है. इसके तहत फिलहाल झारखंड के दो जिलों को चुना गया है. राम और पश्चिमी सिंहभूम जिले में नाबार्ड की तरफ से यह योजना चलाई जा रही है. इस योजना का लाभ किसानों को मिल रहा है. इसके तहत किसानों को प्राकृतिक खेती करने के लिए इनपुट मुहैया कराया जा रहा है और साथ ही साथ उस उत्पाद को बेचने के लिए मार्केटिंग की भी व्यवस्था की गई है. इससे किसानों की सेहत के साथ साथ मिट्टी की सेहत में भी सुधार हो रहा है. 

नाबार्ड के अधिकारी उपेंद्र ने इस योजना की जानकारी देते हुए कहा कि जिन जिलों में फिलहाल यह योजना चल रही है और जिले के जिस प्रखंड के गांवों में यह योजना शुरू की गई है वहां के किसान सीधे आकर इस योजना से जुड़ सकते हैं. इसके लिए उन्हें आवेदन भरना होगा जिससे किसान से जुड़ी बेसिक जानकारी भरनी होगी. इसके अलावा जमीन से संबंधित जानकारी और सिंचाई की सुविधा से संबंधित जानकारी भरनी होगी. साथ ही किसान को यह बताना पड़ेगा कि वो अपने खेतों में रासायनिक खाद का इस्तेमाल नहीं करेंगे और पूरी तरह से प्राकृतिक खेती करेंगे. रामगढ़ जिले के पतरातू प्रखंड के किसान इससे जुड़े हैं और उन्हें अच्छी कमाई हो रही है. 

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किसान जब भी खेत में जाएगा उसे कुछ ना कुछ मिलेगा

जीवा एक ऐसा मॉडल है जिसके तहत यह सुनिश्चित किया जाता है कि किसान अपने खेत में इस तरह से खेती करे कि साल में कभी भी जब वो अपने खेत में जाए तो उसे कुछ ना कुछ मिल जाए. इसलिए किसान को मिश्रित खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसके तहत किसान एक ही खेत में अलग-अलग सब्जियों और दाल की खेती करते हैं. इससे हर समय किसान को खेत से कुछ ना कुछ मिल जाता है और मिट्टी का स्वास्थ्य भी बना रहता है. साथ ही इस प्रक्रिया में फसल विविधीकरण को भी बढ़ावा मिलता है. एक जगह पर अधिक किसान जुड़ने से अधिक उत्पादन होता है और उसे एफपीओ के जरिए आस-पास के शहरों में भेजा जाता है. इससे किसानों को अच्छे दाम भी मिलते हैं. 

कृषि में बाहरी इनपुट कम करने का प्रयास

उपेंद्र बताते हैं कि नाबार्ड की तरफ से संचालित इस कार्यक्रम में प्रमुख तौर पर आठ घटक हैं. यह पूरी तरह से एग्रो इकोलॉजी पर आधारित है. इसके जरिए यह प्रयास किया जाता है कि खेती में बाहरी इनपुट का इस्तेमाल कम से कम किया जाए और पर्यावरण को इसके दुष्प्रभाव से बचाया जा सके. इसमें उन जगहों को चुना गया है जहां पर रासायनिक खाद का इस्तेमाल कम से कम हुआ है. जहां के किसान अभी भी गोबर खाद का इस्तेमाल करते हैं. पतरातु प्रखंड के 10 गांवों में फिलहाल यह कार्यक्रम चल रहा है. 

किसानों की कैपेसिटी बिल्डिंग

जीवा कार्यक्रम से जुड़ने पर किसानों को प्राकृतिक खेती के बारे में बताया जाता है. उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए उन्हें एक्सपोजर विजिट पर ले जाया जाता है. इसके जरिए फसल विविधीकरण को बढ़ावा मिलता है. साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखने की पहल की जाती है. जैविक खाद के निर्माण और उपयोग को बढ़ावा दिया जाता है. अधिक से अधिक किसान इससे जुड़ सकें, इसके लिए पंपलेट वितरण और दीवार लेखन जैसी चीजें की जाती हैं. अधिक उपज के लिए सघन खेती को बढ़ावा दिया जाता है. देसी किस्मों के बीज के संरक्षण और खेती को बढ़ावा दिया जाता है. साथ ही खेत में अलग-अलग प्रकार के फसलों की खेती की जाती है. किसानों को गोबर खाद आसानी से उपलब्ध हो, इसके लिए पशुपालन को बढ़ावा दिया जाता है और हरे चारे की खेती कराई जाती है. 

मिट्टी की गुणवत्ता में होता है सुधार

मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार लाने और इसकी नमी बनाए रखने के लिए गोबर खाद का अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाता है. हरी खाद का इस्तेमाल किया जाता है और सालों भर खेत में कुछ ना कुछ लगा रहता है. इससे खेत की नमी बनी रहती है. साथ की फसलों के अवशेष जैसे पुआल से मल्चिंग करने के लिए कहा जाता है. इससे खेत की नमी बनी रहती है. किसानों की आय बढ़े इसके लिए मछली पालन और देसी पॉल्ट्री पालन को बढ़ावा दिया जाता है. साथ ही वैक्सीनेशन सेंटर, पशु शेड का निर्माण और कस्टम हायरिंग सेंटर भी स्थापित किए जाते हैं ताकि किसानों को आसानी से कृषि इनपुट मिल सके. 

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सामुदायिक बायो रिसोर्स सेंटर से लाभ

हर गांव या दो तीन गांवों को मिलाकर एक सामुदायिक बायो रिसोर्स सेंटर की स्थापना की जाती है, जिसमें गैर किसान भी शामिल होते हैं. जहां पर किसानों को जैविक खाद और बीज मिल जाता है. इससे गांवों में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. इस कार्यक्रम में इस बात का खास खयाल रखा गया है कि किसान और खेत दोनों ही स्वस्थ रहें. इसलिए मल्टी क्रॉपिंग प्रणाली अपनाई जाती है. इतना ही नहीं, किसानों को गांव में एक पिक अप वैन भी दिया जाता है जिससे आसानी से वे अपने उत्पाद शहरों तक ले जाते हैं. वे खुद बताते हैं कि उनके उत्पाद प्राकृतिक हैं और अच्छी कीमत भी उन्हें मिलती है क्योंकि वे खुद से इसकी गारंटी लेते हैं. इसके अलावा एफपीओ के जरिए उन्हें मार्केटिंग में सहयोग मिलता है.

 

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