बागवानी आजीविका का एक बेहतर जरिया हो सकती है और कम जमीन होने पर भी यह किसानों को बेहतर कमाई दे सकती है. अमरूद की खेती करने वाली महिला किसान सावित्री ने इसे साबित करके दिखाया. क्योंकि बागवानी को अपना कर ना सिर्फ इनकी कमाई बढ़ी है बल्कि इनके अंदर आत्मविश्वास भी आया और आज वो बेहतर जीवन जी रही है. सावित्री के जीवन में यह बदलाव आर्ट ऑफ लिविंग के प्राकृतिक खेती और कृषि वानिकी विशेषज्ञ महादेव गोमारे की वजह से आया है. उन्होंने सावित्री की हर संभव मदद की और आज सावित्री को एक सफल किसान बनाया है.
सावित्री बताती हैं कि महादेव गोमारे ने ही बताया कि घर में प्राकृतिक खाद बनाकर खेती की जा सकती है और अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है. इसके साथ ही उन्होंने सावित्री को अमरूद के 350 पौधे भी दिए. उनसे प्रशिक्षण मिलने के बाद वो दाल, मटर और बैंगन की खेती करती है. इसके अलावा पानी की उपलब्धता और बाजार की मांग को देखते हुए समय-समय पर अन्य सब्जियों की खेती करती हैं. प्राकृतिक तरीके से खेती करने पर उन्हें फायदा होता है. इससे उन्हें अच्छी कमाई भी हो रही है.
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पर इससे पहले हालात आज जैसे अच्छे नहीं थे. आज जिन 0.75 एकड़ जमीन पर वह सब्जी और अमरूद की खेती करती है उस जमीन पर पहले सिर्फ ज्वार और गेहूं की खेती करती थी. इससे उन्हें साल में लगभग 25,000 रुपये की कमाई होती थी. खेती के साथ-साथ सिलाई का भी काम करती थी. पति रिक्शा चलाते थे. घर का खर्च चलाने के लिए कई बार कर्ज लेना पड़ता था. बच्चों की शिक्षा के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ता था. पर आज सभी बच्चें 12वीं तक की पढ़ाई कर चुके हैं.अब सावित्री बताते हैं कि उनके पति पिछले तीन महीनों से बीमार हैं और अस्पताल का चक्कर लगा रहे हैं. पर इसके बावजूद वो इन खर्चों को उठाने में सक्षम है.
सावित्री के जीवन में यह बदलाव खेती के पैर्टन को बदलने के आया है, जिसकी शिक्षा उन्हें आर्ट ऑफ लिविंग की तरफ से मिली थी. सावित्री बताती है कि अमरूद की खेती करने से पहले वह सिर्फ 25000 रुपये की कमा पाती थी, पर अब अमरूद की खेती करने के बाद उनके घर में दो लाख रुपये हैं.वह पिछले चार सालों से अमरूद की खेती कर रही है. उन्होंने बताया कि इसकी खेती में अधिक रख-रखाव की आवश्यकता नहीं होती है और रोपाई के बाद ज्यादा काम भी नहीं होता है. इसका फल आने में 1 वर्ष का समय लगता है। उसके अगले वर्ष ही मैंने 2 लाख रुपये कमा लिए.यही कारण है कि मैं खर्चों के बारे में ज्यादा चिंता किए बिना अपने पति को अस्पताल ले जा सकती हूं.
उन्होंने कहा कि अब उन्हें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है साथ ही किसी से ऋण मांगने की जरुरत भी नहीं पड़ती है. वह बताती है कि सब से उन्होंने कृषि वानिकी की शुरुआत की है तब से अतिरिक्त काम करना छोड़ दिया है. केवल 0.75 एकड़ भूमि के द्वारा आत्मनिर्भर बन गये हैं. हालांकि उनकी बेटी अभी भी सिलाई का काम करती है क्योंकि वो सभी ग्राहकों को भगवान का रूप मानती हूँ और मैं उन्हें निराश लौटते हुए नहीं देख सकती.सावित्री ने बताया कि उनका बेटा भी अब शहर से वापस लौट आया है.
एन.सी.आर.बी के आंकड़ों के अनुसार, भले ही भारत में हर घंटे एक किसान आत्महत्या से मर जाता है, लेकिन सविता जैसी कहानियां भारत में किसानों के भविष्य के लिए अत्यंत प्रेरणा और आशा का स्रोत बन गई हैं, जो इस मिथक को तोड़ रही है कि सीमांत किसान प्राकृतिक कृषि तकनीकों को अपनाकर मुनाफा नहीं कमा सकते हैं. या उनसे लाभ नहीं उठा सकते अथवा बिना किसी लागत वाले इन परिवर्तनों को अपनाने से वित्तीय रूप से स्वतंत्र नहीं हो सकते. सावित्री ने अपने बेटों को भी प्राकृतिक खेती के बारे में पूरी जानकारी दी है, ताकि उनकी अनुपस्थिति में भी पौधौं की सही तरीके से देख-भाल की जा सके.
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42 वर्षीय सावित्री बताती है कि किस तरह से स्वतंत्र खेती उनके अंदर शांति और स्थिरता लाती है. उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में बहुत सी परेशानियां देखी है. पर जब वो खेत में समय बीताती है और बाग में फलों को उगते हुए देखती है तब उन्हें स्थितरता का अहसास होता है और आत्मविश्वास मिलता है. वह पूर समय खेतों में ही बिताती है. उन्हें यह अच्छा लगता है. इसके साथ ही उन्होंने एक देशी गाय भी रखा है जिसका दूध पीकर वो स्वस्थ रहती है. उन्होंने कोई बैंक लोन भी नहीं लिया है. वह खेती से ही पूरे परिवार का खर्च चलाती है, इस तरह से वो एक खुशहाल जीवन जी रही है.
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