चंडीगढ़ में गुरुवार रात किसान संगठनों और सरकार के बीच हुई बैठक बेनतीजा रही. किसान संगठ अपनी कुछ ऐसी मांगों पर अड़े रहे, जिसे सरकार ने मानने से इनकार कर दिया. इस बैठक में 15 किसान संगठनों में हिस्सा लिया था. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल, अर्जुन मुंडा और नित्यानंद राय उपस्थित थे. ऐसे में आम जनता जानना चाहती है कि आखिर किन मांगों पर सरकार और किसान संगठनों के बीच बात नहीं बन पाई. तो आइए जानते हैं, किसानों की वो मांगें, जिनकी वजह से बातचीत बेनतीजा रही.
सूत्रों के अनुसार, किसानों की तीन मांगें ऐसी हैं, जसकी वजह से सरकार और उनके बीच बातचीत मुकाम पर नहीं पहुंच पा रही है. इसमें एमएसपी गारंटी कानून, एमएसपी = सी2+50 प्रतिशत फॉर्मूला और किसान आंदोलन 1.0 के दौरान किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जानें की मांगें शामिल हैं.
सूत्रों ने कहा कि सरकार कह रही है कि उसे एमएसपी गारंटी कानून की आर्थिक व्यवहार्यता का विश्लेषण करने की जरूरत है. वहीं, किसानों ने सरकार से कहा कि एमएसपी गारंटी कानून पिछले 2 साल से लंबित मुद्दा है. एमएसपी सी2+50 फॉर्मूला एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है. जब तक C2+50 फॉर्मूला लागू नहीं होता, हमें एमएसपी गारंटी दें. वहीं, अब सरकार औऱ किसानों के बीच अगली बैठक रविवार को होगी.
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एमएसपी पर रूपरेखा के साथ आएं किसान नेताओं ने सरकार से कहा कि सरकार ऋण माफी की मांग को लेकर उत्सुक नहीं है. ऋण माफी की मांग पर किसान लचीले हैं. लाल किला मामले को मौजूदा बातचीत से दूर रखा गया है. एसकेएम (अराजनीतिक) और केएमएम किसान आंदोलन 1.0 के दौरान किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों की सूची प्रदान करेंगे, भारत सरकार इन मामलों को वापस लेने पर विचार करने के लिए तैयार है, क्योंकि ऐसे कई मामले पहले ही विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा वापस ले लिए गए हैं.
वहीं, बिजली संशोधन विधेयक पर सरकार ने कृषि संगठनों को बताया कि किसानों को बिजली विधेयक में छूट दी गई है. किसानों के लिए पेंशन की मांग जैसे मुद्दे मुख्य मुद्दा नहीं हैं. बातचीत पर बिल्कुल भी असर नहीं डालेंगे.
अगर बात शंभू बॉर्डर के ग्राउंड जीरो की करें तो यहां एक बदलाव देखने को मिला है. किसान प्रोटेस्टर और हरियाणा के जवानों के बीच में किसान संगठन की तरफ से एक मोटे पाइप की रस्सी बांध दी गई और कहा गया है की प्रोटेस्टर इसके आगे न बढ़ें. इसके आगे बढ़ते ही आंसू गैस का गोला छोड़ा जाता है. सरकार और किसानों के बीच तीसरे दौर की बातचीत में यही मामूली बदलाव देखने को मिला है. दूसरी तरफ पुलिस पर जहां हरियाणा पुलिस के जवान खड़े हैं, वहां बड़ी संख्या में पत्थर पड़े हुए हैं जो बताते हैं कि किस कदर पथराव हुआ है.
किसानों द्वारा बुलाए गए भारत बांद का पंजाब को छोड़कर अन्य राज्यों में भी असर देखा जा रहा है. सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं होने के कारण श्रमिक वर्ग, मजदूरों और छात्रों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है. स्थानीय और अंतरराज्यीय बस सेवाओं को निलंबित कर दिया गया है क्योंकि प्रदर्शनकारी वाहनों की आवाजाही की अनुमति नहीं देंगे. किसानों के विरोध प्रदर्शन और सड़कों की रुकावट के कारण हिमाचल और जम्मू-कश्मीर सहित पड़ोसी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के सैकड़ों लोग विभिन्न स्थानों पर फंसे हुए हैं. (रिपोर्ट- अमित भारद्वाज)
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