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Mukhtar Ansari : चुनावी सीजन में मुख्तार की मौत और पूर्वांचल की सियासत पर असर

Mukhtar Ansari : चुनावी सीजन में मुख्तार की मौत और पूर्वांचल की सियासत पर असर

लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच यूपी के Mafia Don मुख्तार अंसारी की जेल में मौत के मामले पर सियासी रंग चढ़ने लगा है. ऐसे में यूपी और बिहार के पूर्वांचल इलाके में चुनावी राजनीति का भी करवट लेना लाजिमी है. जानकारों की राय में मुख्तार की मौत चुनाव में अपना असर तो छोड़ेगी.

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Mukhtar Ansari (file photo) Mukhtar Ansari (file photo)

गंभीर आपराधिक मामलों में सजायाफ्ता मुख्तार की मौत बुंदेलखंड में बांदा की जेल में हुई, लेकिन इसका असर पूर्वांचल की सियासी तस्वीर पर पड़ना तय माना जा रहा है. इसकी वजह वे हालात हैं, जिनके चलते मुख्तार की मौत हुई. आधिकारिक तौर पर अंसारी की मौत के पीछे Heart Attack काे वजह बताया गया है. इसके बरक्स पिछले कुछ समय से मुख्तार द्वारा जेल के खाने में उसे Slow Poison दिए जाने की शिकायत की जा रही थी. मुख्तार के सांसद भाई अफजाल अंसारी और विधायक बेटे अब्बास अंसारी ने इस शिकायत पर शासन प्रशासन द्वारा कोई ध्यान न देने का भी आरोप बार बार लगाया. इसी बीच 28 मार्च को मुख्तार की तबियत बिगड़ने पर बेहोशी की हालत में बांदा मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया, जहां कुछ समय बाद ही उसकी मौत हो गई. इसके साथ ही बनारस से लेकर गाजीपुर, मऊ और बलिया सहित पूर्वांचल में की राजनीति में आए खालीपन पर चर्चा भी शुरू हो गई है.

अतीक कांड की यादें ताजा हुई

मुख्तार की मौत के बाद यूपी सहित हिंदी पट्टी के राज्यों में Criminalisation of Politics के दौर की यादें ताजा करते हुए राजनीति से अपराधियों का सफाया होने तक की कवायद चर्चा का विषय बन गई. मुख्तार की मौत ने अतीक अहमद हत्याकांड की यादें ताजा कर दी.

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पिछले साल अप्रैल में राजू पाल हत्याकांड मामले में आरोपी अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. इसके दो दिन पहले ही अतीक के बेटे असद अहमद को पुलिस ने झांसी में एक खूनी मुठभेड़ में मार गिराया था. इसके बाद से ही अंसारी परिवार ने भी मुख्तार की हिरासत में हत्या करवाने की आशंका जताना शुरू कर दिया था.

दरअसल यूपी और बिहार सहित उत्तर भारत के अन्य राज्यों में इस तरह के अपराधियों को पहले Robin Hood की छवि से लैस किया जाता है. इनके आपराधिक कारनामों पर  जनता चटखारे लेकर चर्चा करती है और जन विमर्श का मुद्दा बनने के बाद ही, धर्म एवं जाति की सियासी गलियों में उलझे यूपी तथा बिहार जैसे राज्यों में इस तरह के लोगों को राजनीति में भी धीमे से एंट्री दे दी जाती है. इसी रास्ते पर चलकर अतीक और मुख्तार जैसे लोग जेल से भी राजनीति की सेवा सहज भाव से करते रहते हैं.

जेल से जीता चुनाव

इसे पूर्वांचल की माटी का ही असर माना जाएगा कि इस इलाके की राजनीति को अपराध का खाद पानी खूब सुहाता है. इसीलिए अतीक और मुख्तार के अलावा बृजेश सिंह से लेकर धनंजय सिंह तक, इस इलाके ने आपराधिक किस्म के तमाम कथित नेताओं को पाला पोसा. 

मुख्तार का अतीत बताता है कि वह 1996 से लगातार 5 बार मऊ से विधायक बना. 2005 से वह ताउम्र जेल में रहा और इस दौरान 3 चुनाव उसने जेल में रहकर ही जीते. इससे उसके राजनीतिक रसूख का अंदाजा लगाया जा सकता है. इसी के बलबूते मुख्तार ने अपने भाई अफजाल अंसारी को 2019 में बसपा के टिकट पर गाजीपुर से सांसद और बेटे अब्बास अंसारी को 2022 में मऊ सीट से विधायक बनवाया.

साल 2017 में वक्त ने कुछ इस तरह पलटी मारी क‍ि जिस मुख्तार की वजह से संसद में योगी आदित्यनाथ को आंसू बहाने पड़े, उसी मुख्तार की मौत, योगी के यूपी में सीएम बनने पर राजनीति के सफाई अभियान का एक पड़ाव मात्र बन कर रह गई. मुख्तार ने अपने सियासी सफर में भी खौफ की राजनीति को अपना टूल बनाया.

यूपी कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष अजय राय के भाई अवधेश राय हत्याकांड से लेकर विधायक कृष्णानंद राय की हत्या तक, कई ऐसे मामले हैं, जो सीधे तौर पर नेताओं को निशाना बनाने से जुड़े थे. इनमें 2005 के बहुचर्चित मऊ दंगा मामले में योगी आदित्यनाथ से भी मुख्तार की अदावत के किस्से यूपी के लोग भूले नहीं हैं. योगी से यही अदावत मुख्तार को मौत के मुंह तक‍ ले आई.

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तीन सीटें पर असर

मुख्तार अंसारी की मौत ने पूर्वांचल की सियासत में उथल पुथल मचा दी है. जानकारों की राय में लोकसभा चुनाव के समय मुख्तार की जेल में मौत होना सीधे तौर पर Vote Polarisation की प्रक्रिया को तेज करेगा. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव पूर्वांचल के पूरे इलाके में देखा जा सकता है. इसके अलावा मुख्तार का गृह‍ जनपद गाजीपुर, कर्मस्थली मऊ और आसपास के जिलों में लोकसभा चुनाव में पूरी तरह से दो तरफा होने की बात कही जा रही है.

मतलब साफ है कि बलिया, जौनपुर, मऊ, गाजीपुर और सोनभद्र तक मुख्तार की जबरदस्त Fan following को देखते हुए इन इलाकों में लोकसभा चुनाव की तस्वीर त्रिकोणीय होने की संभावना अब खत्म हाे चुकी है. ऐसे में इन सीटों पर भाजपा, इस घटना के हवाले से राजनीति में अपराधीकरण को खत्म करने की योगी सरकार की मुहिम काे जनता के बीच पेश करेगी. वहीं दूसरे दल अतीक और मुख्तार की मौत के मामले को वर्ग विशेष में खौफ पैदा करने की राजनीति बताकर भाजपा विरोधी मतों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश करेंगे.

चुनाव के चलते इस कवायद की शुरुआत भी हो चुकी है. मुख्तार की मौत के तुरंत बाद सबसे पहले सपा ने सोशल मीडिया पर शोक संवेदना जताकर इस मामले में सरकारी तंत्र की मंशा पर सवाल उठाए थे. इसके बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस घटना की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग कर डाली. शुक्रवार को सपा के अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव और शिवपाल यादव ने भी मुख्तार की मौत पर दुख जताकर जेल में जहरखुरानी की जांच कराने की मांग की है.

यह बात दीगर है कि कांग्रेस ने इस मामले में कोई तत्परता दिखाने के बजाय फिलहाल चुप्पी बना कर रखी है. कुल मिलाकर इतना तय है कि आगामी चुनाव में मुख्तार की माैत का मामला मतदाताओं पर असर तो छोड़ेगा.