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ओडिशा में मुर्गीपालन से बदली गांवों की तस्वीर, महिला किसानों ने किया कमाल

ओडिशा में मुर्गीपालन से बदली गांवों की तस्वीर, महिला किसानों ने किया कमाल

ओडिशा के मयूरभंज और क्योंझर जिले के गांवों में मुर्गीपालन के जरिए ग्रामीण महिलाओं के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव आ रहा है. इसमें गांव की महिलाएं अहम भूमिका निभा रही हैं. मुर्गीपालन के जरिए यहां पर ग्रामीण महिलाओं की आय बढ़ी है.

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मुर्गीपालन (सांकेतिक तस्वीर) मुर्गीपालन (सांकेतिक तस्वीर)

ओडिशा के क्योंझर और मयूरभंज जिले के ग्रामीण इलाकों में मुर्गीपालन का व्यवसाय बहुत जोर पकड़ रहा है. यहां प्रत्येक घर में मुर्गीपालन किया जा रहा है. इससे ग्रामीण महिलाओं की आजीविका का स्त्रोत बढ़ा और वे आर्थिक निर्भरता की ओर कदम बढ़ा रही हैं. मुर्गीपालन से ग्रामीणों की मदद करने के लिए स्थानीय महिलाओं की नियुक्ति की गई है. सबिता मोहंती एक ऐसी महिला हैं जो ग्रामीण मुर्गीपालकों को उनके गांव में और घर में जाकर मदद करती हैं. इस तरह से ओडिशा के गांवों में अब सकारात्मक बदलाव आ रहा है. साथ ही सबिता मोहंती जैसी अन्य महिलाओं को भी एक रोजगार मिल गया है. 

मयूरभंज जिले के मितुआनी गांव की रहनेवाली सबिता मोहंती की आज अपनी पहचान है. वह 200 सामुदायिक एग्रो-वेट उद्यमी दीदियों में से एक हैं. इन महिलाएं को केव दीदी के नाम से जाना जाता है. क्योंझर और मयूरभंज जिले में मुर्गीपालन कर रही महिलाओं के जीवन में क्रांति लाने में केव दीदियों का बहुत बड़ा योगदान है. केव दीदी बनकर 12वीं तक की पढ़ाई करने वाली 37 वर्षीय सबिता मोहंती को ना केवल एक नई पहचान मिली है, बल्कि आज वे इलाके में महिला सशक्तिकरण का एक मजबूत उदाहरण बनकर उभरी हैं. 

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मुर्गीपालन को लेकर जागरूक नहीं थे लोग

पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक सबिता मोहंती बताती हैं कि मुर्गीपालन शुरू से ही उनके समुदाय का हिस्सा रहा है. पर इस बारे में उनके समुदाय के लोगों के बीच जागरूकता का अभाव था. पर इस बीच उनके गांव में कई लोग आए और उन्होंने सुझाव दिया कि वे खुद केव दीदी बनकर दूसरी महिलाओं की मदद कर सकते हैं. इसके बाद से महिलाएं लोगों की मदद कर रही हैं. उन्होंने बताया कि फिलहाल वो वह 80 से अधिक मुर्गियों के झुंड की देखरेख करती हैं. इसमें उनकी अपनी मुर्गियां और दूसरों की मुर्गियां शामिल हैं. इन दो जिलों के गांवों में हेफ़र इंटरनेशनल द्वारा चलाया जा रहा हैचिंग होप ग्लोबल इनिशिएटिव की ओर से मुर्गीपालन को बढ़ावा दिया गया है.

मुर्गियों की मुत्यु दर में आई कमी

केव दीदी के नाम से मशहूर ये दीदियां इन गांवों में परिवर्तन की वाहक बन रही हैं. सबिता बताती हैं कि एक वक्त था जब लोगों को मुर्गियां बीमार पड़ने पर दवा के अभाव में मुर्गियों की मौत हो जाती थी. इसके कारण मुर्गीपालकों को खूब नुकसान होता था. पर अब तस्वीर बदल चुकी है. अब जब भी मुर्गियां बीमार पड़ती हैं तो एक कॉल पर केव दीदियां पहुंच जाती हैं जिससे मुर्गियों की मृत्यु दर में काफी कमी आई है. मुर्गियों की मृत्यु दर में कमी आने के कारण अब मुर्गीपालकों की कमाई भी बढ़ी है. 

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33.31 फीसदी तक बढ़ा अंडा उत्पादन

इन गांवों में पिछले पांच सालों में हैचिंग होप पोल्ट्री की स्थापना किए जाने के बाद से अंडा का उत्पादन 33.31 फीसदी तक बढ़ा है. हैचिंग होप के राज्य समन्वयक अक्षय बिस्वाल बताते हैं कि 2018 में शुरू की गई यह परियोजना तीन साल से चल रही है, जिससे ओडिशा में लगभग 30,000 आदिवासी परिवारों को लाभ हुआ है. अंडा उत्पादन में आंध्र प्रदेश देश में अग्रणी है, जहां कुल उत्पादन का 20.13 प्रतिशत उत्पादन होता है. साथ ही कहा कि केव दीदियों को टीकाकरण के बारे में भी बताया गया है.