Kisan Diwas : छत्तीसगढ़ में बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाने की 9 सितंबर से होगी शुरुआत

Kisan Diwas : छत्तीसगढ़ में बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाने की 9 सितंबर से होगी शुरुआत

भारत में खेती का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है. पौराण‍िक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में ही Systematic Farming की शुरुआत हो गई थी. इस काम में कृष्ण और उनके भाई बलराम की अहम भूमिका रही. बलराम की पहचान हलधर के रूप में थी. यही वजह है कि बलराम की जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाने की पहल अब Chhattisgarh Govt ने की है.

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Kisan Diwas : छत्तीसगढ़ में बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाने की 9 सितंबर से होगी शुरुआतबीकेएस ने एमपी के बाद अब छत्तीसगढ़ में बलराम जयंती को किसान दिवस के रूप में मनाने की पहल की (फाइल फोटो)

पौराण‍िक कथाओं में दावा किया गया है कि हल, कुदाल, खुरपी और फावड़ा सहित खेती के सभी प्रमुख यंत्रों का आविष्कार महाभारत काल में हो गया था. इसका प्रमाण खुद बलराम हैं, जिनकी पहचान के साथ हल अमिट रूप से जुड़ा है. इसीलिए उत्तर भारत में Kharif Season की फसलों के काम की शुरुआत भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की षष्ठी के दिन हलछठ पर्व को मनाते हुए की जाती है. इस दिन हल की पूजा करते हुए बलराम की भी पूजा की जाती है. पौराणि‍क कालक्रम की गणना के आधार पर हलधर बलराम की जयंती भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन होती है. इस साल यह तिथि‍ 9 सितंबर को है. इसके मद्देनजर Chhattisgarh Govt ने 9 सितंबर को किसान दिवस के रूप में मनाने की पहल की है. इस दिन राज्य की राजधानी रायपुर में राज्यस्तरीय मुख्य समारोह आयोजित किए जाने के अलावा सभी कृष‍ि विज्ञान केंद्रों पर भी किसानों को प्राकृतिक खेती में पारंपरिक तरीकों से की जाने वाली कृष‍ि के महत्व को लेकर जागरूक किया जाएगा.

सीएम करेंगे किसान दिवस का आगाज

छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से जारी बयान के अनुसार रायपुर स्थ‍ित इंदिरा गांधी केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में राज्य स्तरीय समारोह आयोजित किया जाएगा. इसमें राज्य के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और कृष‍ि मंत्री रामविचार नेताम श‍िरकत करेंगे.

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पूरे राज्य में मनेगी बलराम जयंती

सरकार की ओर से बताया गया कि बलराम जयंती का आयाेजन पूरे राज्य में किया जाएगा. इस दिन छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में संचालित हो रहे 27 कृषि विज्ञान केन्द्रों (KVK) में भी किसान दिवस के रूप में बलराम जयंती का आयोजन किया जाएगा.

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उल्लेखनीय है कि भारतीय संस्कृति में आदिकाल से ही खेती में गोबर और गौमूत्र जैसे गौ उत्पादों का प्रयोग होता रहा है. गौ आधारित खेती पूरी तरह से Chemical Free रही है. इसमें परम्परागत तरीके से प्रकृति के नियमों का अनुसरण करते हुए देसी गाय पर आधारित खेती को अपनाया गया है.

प्राकृतिक खेती से Soil Nutrientsकी वृद्धि के साथ-साथ जैविक गतिविधियों का विस्तार होता है. इससे soil fertility बढ़ती है और खेती की लागत खुद ब खुद कम हो जाती है. कार्यशाला में किसानों को महाभारत काल से प्रचलित रही खेती की इस पद्धति का इस्तेमाल किए जाने के प्रमाणों से अवगत कराते हुए इनका प्रयोग करने की विध‍ि बताई जाएगी.

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