हिमालय हमेशा से ही पर्वतों और जड़ी बूटियों के लिए जाना जाता है. यहां पाई जाने वाले पौधे अपने औषधीय गुणों के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं, लेकिन हाल ही में किए गए आकलन में हिमालय में पाई जाने वाली तीन औषधीय पौधों की प्रजातियों को IUCN रेड लिस्ट में शामिल कर दिया गया है. जिन औषधियों को रेड लिस्ट यानि विलुप्ति के कगार पर पहुंचने वाले औषधियों पौधों के सूची में रखा गया है उनका नाम मीज़ोट्रोपिस पेलिटा, फ्रिटिलोरिया सिरोहोसा और डैक्टाइलोरिज़ा हैटागिरिया मीज़ोट्रोपिस पेलिटा है. मीज़ोट्रोपिस पेलिटा,जिसे आमतौर पर पटवा के नाम से भी जाना जाता है. यह एक बारहमासी झाड़ी है जो ज़्यादातर उत्तराखंड में पाया जाता है.
अध्ययन में कहा गया है, "इन प्रजातियों को सीमित क्षेत्र (10 वर्ग किमी से कम) में खेती करने के आधार पर 'लुप्तप्राय' के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. वहीं ये प्रजातियां वनों की कटाई, आवास विखंडन और जंगल में आग लगने की वजह से विलुप्ति की कगार पर हैं." आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इन प्रजातियों की पत्तियों से निकाले गए तेल एंटीऑक्सिडेंट होते हैं जोकि दवा उद्योगों में सिंथेटिक एंटीऑक्सिडेंट के लिए एक बेहतर प्राकृतिक विकल्प है.
फ्रिटिलारिया सिरोसा (हिमालयन फ्रिटिलरी) एक बारहमासी बल्बनुमा जड़ी बूटी है. "आकलन अवधि (22 से 26 वर्ष) में इसकी खेती में लगभग 30% की गिरावट दर्ज की गई है. गिरावट की दर, खराब अंकुरण क्षमता, उच्च व्यापार मूल्य, व्यापक रूप से पेड़ों की कटाई और अवैध व्यापार को ध्यान में रखते हुए, इस प्रजाति को सूचीबद्ध किया गया है.
चीन में इन प्रजातियों का उपयोग ब्रोन्कियल विकारों और निमोनिया के इलाज के लिए किया जाता है. IUCN के आकलन में कहा गया है कि यह पौधा पारंपरिक चीनी चिकित्सा में खांसी और कफ निस्सारक दवाओं का स्रोत भी है.
तीसरी सूचीबद्ध प्रजाति, डैक्टाइलोरिज़ा हटगिरिया (सलामपंजा) को पशुधन चराई, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से खतरा है, इस प्रजाति का उपयोग पेचिश, जठरशोथ, जीर्ण ज्वर, खांसी और पेट दर्द को ठीक करने के लिए आयुर्वेद और चिकित्सा की अन्य वैकल्पिक प्रणालियों में इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है. अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के हिमालय पर्वतमाला की एक बारहमासी कंद प्रजाति है.
IUCN में शामिल प्रजाति उत्तरजीविता आयोग और औषधीय पादप विशेषज्ञ समूह के सदस्य हर्ष सिंह चौहान के मुताबिक, "हिमालयी क्षेत्र एक जैव विविधता हॉटस्पॉट है लेकिन यहां कई प्रजातियों पर डेटा की कमी है. इन पौधों का मूल्यांकन हमारी संरक्षण प्राथमिकताओं को निर्धारित करेगा और प्रजातियों की रक्षा में मदद करेगा” इससे पहले, कुमाऊं विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ. चौहान ने हिमालयन ट्रिलियम गोवैनियानम (हिमालयन ट्रिलियम) और ट्रिलियम त्सोनोसकी (क्यून-योन-योंग-चो) सहित औषधीय मूल्यों वाली छह प्रजातियों का मूल्यांकन किया था, जिन्हें 'लुप्तप्राय' के रूप में चिह्नित किया गया है, उन्होंने कहा कि हिमालय औषधीय पौधों का एक समृद्ध भंडार है और 1998 में किए गए अध्ययनों ने बताया था कि इस क्षेत्र में ऐसी प्रजातियों की संख्या 1,748 है.
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