महाराष्ट्र में चीनी मिलों के नीलामी की खबर अब तेज़ होती नजर आ रही है. आपको बता दें महाराष्ट्र में लगभग आठ चीनी मिलें ऐसी हैं जिनका दिवालिया निकाल चुका है या फिर घाटे में चल रही है. ऐसे चीनी मिलों की जल्द ही नीलामी की जाएगी और राज्य सरकार नीलामी में भाग ले सकती है. खबर यह भी है कि इस नीलामी में निजी खिलाड़ियों को खरीद की अनुमति नहीं दी जाएगी. मिलों को चलाने की जिम्मेदारी सरकार अपने पास रख सकती है. हालांकि, विशेषज्ञों ने राज्य के रुख पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि सहकारी मिलों को बर्बाद करने के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा.
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में राज्य विधानसभा में घोषणा की थी कि लगभग 7-8 चीनी मिलों को बाजार में कम कीमतों पर नीलाम किया जाना है. जिस वजह से एक बार फिर, राज्य को नुकसान उठाना पड़ रहा है और इसे रोकने के लिए, सरकार ने एक संपत्ति पुनर्गठन कंपनी (एआरसी) का गठन किया है. ऐसा नहीं है कि सरकार किसी चीनी मिल का अधिग्रहण करने जा रही है. राज्य का मकसद उन चीनी मिलों का फिर से चालू करना है जो बैंकों के माध्यम से कम कीमतों पर बेची जा रही हैं. ये हमारे राज्य की संपत्ति हैं. राज्य 90 प्रतिशत राशि मिल को शुरू करने के लिए और साथ ही गारंटी बैंकों को दी है.
एआरसी के माध्यम से, राज्य सरकार दिवालिया सरकारी, निजी, सार्वजनिक और अर्ध-सरकारी प्रतिष्ठानों को भी कवर कर सकती है. महाराष्ट्र आरबीआई की मंजूरी के साथ एआरसी स्थापित करने वाला पहला राज्य है. राज्य ने राज्य आकस्मिकता निधि से ₹111 करोड़ की प्रारंभिक पूंजी के साथ एआरसी को शामिल किया है.
पिछले कुछ वर्षों में, महाराष्ट्र में एक के बाद एक सहकारी चीनी मिलों की नीलामी हो रही है, और किसानों और किसान नेताओं ने बार-बार सहकारी मिलों को एक निजी उद्यम में बदलने के लिए "साजिश" का आरोप लगाया है ताकि मिलों पर कब्जा किया जा सके. महाराष्ट्र स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक (एमपीसीबी) पिछले कुछ सालों से कर्ज की वसूली के लिए घाटे में चल रही चीनी मिलों की नीलामी कर रही है. हालांकि, नीलामी प्रक्रिया सवालों के घेरे में आ गई है.
बंद पड़े चीनी मिलों के फिर से चलाने के लिए सरकार आगे आ रही है. ऐसे में अब राज्य सरकार पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं. लोगों का कहना है कि राज्य सरकार बंद पड़े चीनी मिल को बचा लेगी और दोषियों को मुक्त कर दिया जाएगा. राज्य सरकार द्वारा इन मिलों को बचाए जाने के बाद, विपक्षी नेताओं के बजाय सत्ताधारी दल के नेताओं को इन मिलों का प्रभार दिया जाएगा.
विशेषज्ञों का कहना है कि निदेशकों द्वारा बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार ने सहकारी चीनी मिलों को बर्बाद कर दिया है जो वित्तीय संकट में आ गई हैं. एक बार जब मिलें कर्ज चुकाने में विफल हो जाती हैं, तो MSCB फिर मिलों की नीलामी करता है और वही राजनेता नीलामी में इन मिलों को सबसे कम कीमत पर खरीदते हैं.
नाबार्ड की रिपोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2019 में अपने फैसले में ज्यादातर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस से चीनी बैरन के इस तौर-तरीके की पुष्टि की है.
अब, शिवसेना के बागी नेता और मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके डिप्टी देवेंद्र फडणवीस बंद चीनी मिलों को अपने कब्जे में लेकर और सरकारी धन से कर्ज चुकाकर चीनी क्षेत्र पर नियंत्रण रखना चाहते हैं.
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