नई आवक के दबाव में घरेलू बाजार में मक्के के भाव धड़ाम से गिर गए हैं. इन दिनों रबी सीजन वाले मक्के की बिहार, महाराष्ट्र, तेलंगाना आदि उत्पादक राज्यों में आवक हो रही है और इसकी पैदावार बढ़ने का अनुमान है. जिससे इसके भाव गिरकर न्यूनतम समर्थन मूल्य 1962 रुपये से भी नीचे आ चुके हैं. वही व्यापारियों और निर्यातकों का कहना है कि पिछले एक महीने में कीमतों में 15 डॉलर प्रति टन की गिरावट के बावजूद वैश्विक बाजार में भारतीय मकई (मक्का) की मांग में कमी बनी हुई है. एक अप्रैल से निर्यात के लिए मक्का की कीमतों में करीब 15 फीसदी की गिरावट आई है.
बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली स्थित एक विश्लेषक ने कहा, "हालांकि भारतीय मक्के के लिए निर्यात मांग अभी सुस्त है, इसमें जल्द ही तेजी आने की संभावना है, क्योंकि अल नीनो की संभावना के कारण देश मोटे अनाज की मांग कर सकते हैं."
मुंबई स्थित मुबाला एग्रो कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक मुकेश सिंह ने कहा कि, चूंकि कीमतें एमएसपी से नीचे हैं, कई बड़े खिलाड़ी स्टॉक जमा कर रहे हैं. कीमतें 1,800 रुपये के स्तर तक गिर जाने के बाद से प्रोसेसर और स्टार्च निर्माता भी स्टॉक कर रहे हैं. वर्तमान में, देश में विभिन्न कृषि उपज विपणन समिति (APMC) यार्डों में मक्के का भारित औसत मूल्य 1,715 रुपये है. एक साल पहले इसी अवधि के दौरान, कीमतें 2,123 रुपये थीं.
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मक्के की कीमतों के एमएसपी से नीचे रहने का एक प्रमुख कारण यह है कि इस फसल वर्ष में जून तक मोटे अनाज का उत्पादन कृषि मंत्रालय द्वारा रिकॉर्ड 34.61 मिलियन टन रहने का अनुमान लगाया गया है. पिछले साल उत्पादन 33.73 मिलियन टन था. नई दिल्ली स्थित निर्यातक राजेश पहाड़िया जैन ने कहा, "इस साल फसल का आकार काफी अच्छा रहा है और हमें बेहतर गुणवत्ता के साथ 3.3-3.4 करोड़ टन उत्पादन की उम्मीद है."
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पिछले साल मकई की कीमतों में वृद्धि का एक और कारण यूक्रेन युद्ध था जिसने टॉप निर्यातक देश से सप्लाई को बाधित कर दिया था. निर्यातकों के लिए कीमतें 22,000 रुपये से घटकर 19,000 रुपये प्रति टन हो गई हैं. मौजूदा भारतीय कीमतें 280-285 डॉलर प्रति टन लागत और कंटेनरों में माल ढुलाई है.
अमेरिकी कृषि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इस साल भारत का मकई निर्यात एक साल पहले के 4 मिलियन टन से घटकर 3.6 मिलियन टन रहने की संभावना है. वित्त वर्ष 2022-23 के लिए, मकई का निर्यात लगभग 35 लाख टन रहने का अनुमान है. इसमें कहा गया है कि आने वाले वर्ष में फसल कम हो सकती है, क्योंकि कम कीमतें मकई की खेती करने वाले किसानों के प्रोत्साहन को कमजोर कर सकती हैं.
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