
मध्य प्रदेश में पटवारी भर्ती परीक्षा में गड़बड़ी का मामला न केवल सूबे की शिवराज सरकार के लिए गले की हड्डी बन गया है, बल्कि इस मुद्दे ने उन मेधावी छात्रों के भविष्य पर भी असमंजस पैदा कर दिया है, जिन्होंने अपनी मेहनत से परीक्षा उत्तीर्ण की है. एमपी हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जब इस प्रकरण से जुड़े तथ्य पेश किए गए उनसे साफ हो गया इस परीक्षा में गड़बड़ियों का दायरा किसी एक जिला या संभाग तक सीमित नहीं है, बल्कि इस नेटवर्क के तार पूरे प्रदेश में फैले हैं.
इस मामले में हाईकोर्ट के समक्ष जनहित याचिका दायर करने वाले वकील उमेश बोहरे ने कहा कि जिस प्रकार से पटवारी परीक्षा में गड़बड़ियां होने के तथ्य उजागर हो रहे हैं, उससे साफ है कि तकनीक की आड़ में व्यापक पैमाने पर हुए फर्जीवाड़े के तार ऊपर तक जुड़े हैं और अभी इसकी तमाम परतों को उधेड़ा जाना बाकी है. बोहरे ने कहा कि बेशक इस परीक्षा में मुठ्ठी भर छात्र फर्जीवाड़े के निशाने पर हैं, लेकिन इसका खामियाजा उन अधिकांश मेधावी छात्रों को भी भुगतना पड़ रहा है, जो पढ़ाई करके इस परीक्षा में सफल घोषित हुए हैं और नियुक्ति पाने का जिनका कानूनी अधिकार भी है. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों के भ्रष्टाचार की कीमत निर्दोष छात्रों को चुकानी पड़ रही है, इससे न्याय व्यवस्था के प्रभाव पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है.
बोहरे ने कहा कि उन्होंने निर्दोष छात्रों के साथ हो रहे अन्याय का मुद्दा भी अदालत के समक्ष रखा है. इस पर अदालत ने सहमति जताते हुए इस प्रकरण से जुड़े तथ्यों की यथाशीघ्र जांच कराने के लिए कमेटी गठित करने का आदेश पारित किया है. पटवारी भर्ती परीक्षा मामले में सत्ता, समाज और सियासी गलियारों में मचे घमासान के बीच 'किसान तक' ने उन छात्रों की पीड़ा जानने की कोशिश की जो पटवारी परीक्षा में तो पास हो गए लेकिन शासन तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की चुनौती के आगे नाकाम साबित होते दिख रहे हैं.
ग्वालियर के आनंद नगर निवासी विकास यादव ने किसान तक के साथ अपनी पीड़ा साझा करते हुए बताया कि पटवारी परीक्षा में सफल होने से पहले वह स्टेट सिविल सेवा परीक्षा यानी पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में सफल हो चुका है. अभी पीएससी की मुख्य परीक्षा की तैयारी का समय है. उसने सोचा था कि पटवारी की नौकरी मिलने पर पीएससी मुख्य परीक्षा की तैयारी दोगुने उत्साह के साथ की जाएगी, लेकिन ऐसा कुछ होने के बजाए उसके हाथ सिर्फ हताशा और दिमागी तनाव ही आया. विकास का कहना है कि पीएससी परीक्षा कठिन मानी जाती है और इसमें पास होने पर पटवारी परीक्षा के लिए उसका आत्मविश्वास बढ़ गया था.
उसे पटवारी परीक्षा पास करने में इसका लाभ भी मिला, लेकिन इस परीक्षा में भ्रष्टाचार की आंच ने उसे भी समाज की नजरों में शक के घेरे में ला खड़ा किया है. विकास ने बताया कि वह अवसाद का सामना कर रहा है और इसी से परेशान होकर वह बीते रविवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिलकर अपनी पीड़ा साझा करने के लिए अपने कुछ साथियों को लेकर भोपाल गया था. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री तो नहीं मिले, मगर उनके सचिव ने ज्ञापन लेकर आश्वासन दिया है कि मेधावी छात्रों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा.
पटवारी परीक्षा में सबसे ज्यादा गड़बड़ी के आरोप चंबल संभाग के ग्वालियर, मुरैना और भिंड जिलों में लगे हैं. इन जिलों में फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवाकर परीक्षा में उत्तीर्ण होने की शिकायतें सामने आई हैं. इसी तरह के आरोपों की जद में मुरैना जिले के जौरा निवासी रमाकांत त्यागी भी आ गए. त्यागी ने किसान तक को बताया कि उनका एक पैर जन्म से ही पोलियोग्रस्त है और दिव्यांग का दंश झेलते हुए उन्होंने पीएससी की मुख्य परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली, मगर पटवारी परीक्षा में गड़बड़ी की आंच ने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया है. त्यागी ने कहा कि उनका नाम भी फर्जी दिव्यांग सर्टिफिकेट बनवा कर परीक्षा पास करने वालों की फेहरिस्त शामिल कर सोशल मीडिया पर वायरल किया जा रहा है, यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.
त्यागी ने पूरी परीक्षा रद्द करने की कांग्रेस की मांग को गलत बताते हुए कहा कि उनके जैसे हजारों छात्रों ने अपनी मेहनत के बलबूते परीक्षा पास की है, कुछ मुट्ठी भर लोगों की गलती का खामियाजा निर्दोष छात्र क्यों भुगतें. उन्होंने कहा कि सरकार को पूरी परीक्षा रद्द करने के बजाए गड़बड़ी की हर शिकायत की जांच करना चाहिए, लेकिन इसके साथ ही नियुक्ति प्रक्रिया को भी जारी रखना चाहिए, जिससे दोषियों को सजा और निर्दोष छात्रों को अन्याय से बचाया जा सके.
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