सरल शब्दों में कहें तो एफआरपी वह न्यूनतम मूल्य है जिस पर चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदना होता है. कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) हर साल एफआरपी की सिफारिश करता है. सीएसीपी गन्ना समेत प्रमुख कृषि उत्पादों की कीमतों को लेकर सरकार को अपनी सिफारिशें भेजती है. सरकार इस पर विचार करने के बाद इसे लागू करती है. सरकार गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत एफआरपी तय करती है.
अब सवाल यह उठता है कि इससे किसानों को क्या फायदा होता है? एफआरपी बढ़ने से किसानों को सीधा फायदा होता है. गन्ना बेचने पर किसानों को अधिक दाम मिलते हैं.
एफआरपी के बाद अब जानिए एसएपी के बारे में- केंद्र सरकार के अलावा कई गन्ना उत्पादक राज्य अपने हिसाब से कीमतें तय करते हैं. इसे राज्य सलाहकार मूल्य (एसएपी) कहा जाता है. उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा अपने राज्य के किसानों के लिए अपना SAP तय करते हैं. आम तौर पर SAP केंद्र सरकार की FRP से अधिक होती है.
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पेराई सत्र 2023-24 के लिए गन्ना मूल्य निर्धारण पर उच्च स्तरीय सहमति बन गई है, जल्द ही राज्य सरकार राज्य सलाहित मूल्य (एसएपी) की घोषणा करेगी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की व्यस्तता को देखते हुए इस प्रस्ताव को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन के जरिए ही मंजूरी दी जा सकती है. एसएपी में 20 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की जा सकती है. केंद्र सरकार द्वारा गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की तर्ज पर राज्य सरकार द्वारा तय किये जाने वाले राज्य सलाहित मूल्य (एसएपी) की प्रक्रिया सभी स्तरों पर पूरी हो चुकी है और अब केवल औपचारिकताएं बाकी हैं. पिछले साल भी किसान संगठनों की मांग के बावजूद राज्य सरकार ने कीमतें नहीं बढ़ाई थीं. गन्ना किसान पिछले साल से राज्य सरकार से गन्ना मूल्य 50 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. इसको लेकर किसानों का प्रदर्शन लगातार जारी है. किसानों का कहना है की जल्द सरकार उनकी मांगों को पूरी करे नहीं तो वो आंदोलन के लिए तैयार हैं.
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