पिछले साल जहां कपास की कीमतें आसमान छू रही थीं, किसानों की जमकर कमाई हुई थी. वहीं इस साल कपास की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिल रही है. कपास की कीमतों में 7000 रुपये तक की गिरावट आई है. दरअसल, विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में कपास की कीमतों में बढ़ोतरी के कोई संकेत नहीं मिलने की वजह से किसान इनदिनों काफी चिंतित हैं. पिछले साल यहां, जहां कपास की कीमतें 12 से 14 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई थीं. वहीं इस साल कपास की कीमतें 7 से 8 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है. इसके अलावा, विदर्भ, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र के कुछ जिलों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की वजह से 40 फीसदी फसल बर्बाद होने से कपास की खेती करने वालों किसानों का संकट और बढ़ गया है.
वही कृषि मंत्री अब्दुल सत्तार ने किसानों को मदद का आश्वासन दिया है. उन्होंने कहा कि पंचनामा के माध्यम से बारिश और ओलावृष्टि से हुए नुकसान के आकलन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. मुआवजे की प्रक्रिया चल भी रही है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विदर्भ क्षेत्र के एक किसान नेता, विजय जावंडिया ने बताया कि राज्य में 80 लाख से अधिक किसान कपास की खेती में लगे हुए हैं. पिछले साल जब रुई की कीमतें 14,000 रुपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गई थीं तो रिकॉर्ड 102 लाख हेक्टेयर में कपास की खेती हुई थी. हालांकि, इस साल सीजन के शुरुआत में ही लगभग 40 प्रतिशत कपास की फसल बेमौसम बारिश में नष्ट-क्षतिग्रस्त हो गई. इससे इस साल एक बड़ा कृषि-संकट पैदा हो गया.
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तब भी इस साल, कपास की कीमतों में लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह 14,000 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर अब मुश्किल से 7,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गई है. यही नहीं, कपास का निर्यात भी 60 लाख गांठों से गिरकर सिर्फ 20 लाख गांठों पर आ गया है, जिससे पूरे देश में कपास की खेती करने वाले कर्ज के नए जाल में फंस गए हैं.
जावंडिया ने कहा, 'राज्य सरकार को कपास के लिए 5,000 रुपये प्रति क्विंटल की सब्सिडी देनी चाहिए. जब तक सरकार वित्तीय सहायता नहीं देगी, तब तक किसानों को वित्तीय संकट से बाहर निकालना मुश्किल होगा.”
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उन्होंने कहा किसानों ने काफी धैर्य दिखाया था. कीमतें बढ़ने की उम्मीद में उन्होंने अपना स्टॉक रोक लिया. लेकिन मूल्य वृद्धि के कोई संकेत नहीं होने के कारण, किसान बाजार में स्टॉक लाने और मजबूरी में बिक्री करने के लिए मजबूर हैं. कई मामलों में, वे लागत भी नहीं निकाल पाते हैं, क्योंकि 40 प्रतिशत तक फसलें खराब हो जाती हैं या निम्न श्रेणी की हो जाती हैं.
एक अन्य किसान नेता किशोर तिवारी ने कहा, 'सरकार की गलत नीतियों के कारण किसानों का संकट है. कपास कृषि क्षेत्र का समर्थन करने के लिए केंद्र और राज्य का हस्तक्षेप आवश्यक है. कीमतों में गिरावट के अलावा कम निर्यात से भी कीमतों पर असर पड़ा है. पिछले साल किसानों ने 60 लाख गांठ कपास का निर्यात किया था. इसके विपरीत इस वर्ष निर्यात केवल 20 लाख गांठ था. इसके अलावा, अन्य देशों से 10 लाख कपास गांठों के आयात से भी कीमतों में गिरावट आई है.
विदर्भ और मराठवाड़ा के पिछड़े इलाकों में सोयाबीन के बाद कपास लोकप्रिय फसल है, जिस पर किसान आजीविका के लिए निर्भर हैं. यहां के 115 तहसीलों को कपास उत्पादक क्षेत्रों के रूप में चिन्हित किया गया है. वहीं कपास उगाने वाली 115 तहसीलें राज्य के औरंगाबाद, जालना, परभणी, हिंगोली, नांदेड़, बीड, बुलढाणा, अमरावती, नागपुर, अकोला, यवतमाल, वर्धा, चंद्रपुर, नासिक, धुले, नंदुरबार, जलगाँव और अहमदनगर जिलों में हैं.
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