कमॉडिटी के सामानों के दाम पहले से अधिक रहेंगे और संभावना है कि दरें कोविड से पहले के स्तर पर पहुंच जाएंगी. ऐसा इसलिए होगा क्योंकि चीन से डिमांड तेजी से बढ़ने वाली है. पूरी दुनिया में कोविड महामारी लगभग खत्म हो गई है. चीन में थोड़ा असर बचा है जो धीरे-धीरे खात्मे की ओर है. ऐसे में कहा जा रहा है कि कमॉडिटी के दाम तेजी से बढ़ेंगे. क्रिसिल की एक रिपोर्ट में कहा गया है, पिछले साल स्टील के दाम में 50 परसेंट की तेजी आई थी. इसकी वजह थी कुकिंग कोल के दाम में वृद्धि. रिपोर्ट कहती है कि वित्त वर्ष 2024 में स्टील के दाम ऊपर बने रहेंगे.
क्रिसिल की रिपोर्ट के हवाले से 'बिजनेसलाइन' ने लिखा है, घरेलू बाजारों में स्टील के दाम एक बार फिर बढ़ सकते हैं क्योंकि ऑस्ट्रेलिया से सप्लाई में दिक्कत आ सकती है. सप्लाई रुकने से दाम में इजाफा संभव है. पिछले साल दाम बढ़ने के साथ इसमें कुछ नरमी दिखी थी, लेकिन 2019 की तुलना में इसमें 1.3 परसेंट का उछाल आ सकता है. पिछले वित्त वर्ष में सीमेंट के दाम में चार परसेंट का उछाल आया और मौजूदा वर्ष में तीन फीसद की तेजी देखी जा चुकी है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पेट कोक और कोल के दाम में 150 से 170 परसेंट तक तेजी आई है.
पिछले वित्त वर्ष में एल्युमिनियम के दाम में 52 परसेंट की तेजी आई थी. कोयले के दाम बढ़ने से यह महंगाई देखी गई. इस वित्त वर्ष में पॉवर और ऑटोमोबाइल सेक्टर से अच्छी डिमांड आने से एल्युमिनियम के दाम बढ़े रहने की संभावना है. हालांकि चीन से एल्युमिनियम की सप्लाई लगातार बनी हुई है, इसलिए कीमतों में एकसाथ बहुत बड़ा उछाल होता नहीं दिख रहा है. संभावना है कि 2019 की तुलना में एल्युमिनियम के दाम में 20 परसेंट तक तेजी बनी रहेगी.
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कॉपर की सप्लाई में इस साल बाधा आने की आशंका है जिससे इस मेटल के दाम में कोविड से पहले की दर से 1.5 गुना अधिक उछाल आ सकता है. इस साल कच्चे तेल के दाम 82 से 87 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर रह सकते हैं. दाम में उछाल या गिरावट इस बात पर निर्भर करेगी कि ओपेक अगला कदम क्या उठाता है. अगर ओपेक सीमित सप्लाई करता है तो आने वाले समय में कच्चे तेल के भाव में तेजी देखी जा सकती है.
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अगर दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं धीमी रहती हैं, तो तेल के दाम में भी नरमी देखी जाएगी. यूरोपीय देशों में ऐसी स्थिति देखी जा रही है क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वहां की अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है. अर्थव्यवस्था धीमी पडऩे से मांग कम होती है जिससे तेल की खपत भी कम होती है. ऐसे में दाम नीचे रहने की संभावना है. पिछले दो साल से देखें तो कोयले के दाम में तेजी है क्योंकि गैस रूस युद्ध के बाद गैस की सप्लाई घटी है और कोयला एक विकल्प बन कर उभरा है. आगे भी इसके दाम बढ़े रहने की संभावना है.
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