गेहूं की कीमतों ने उपभोक्ताओं की परेशानी बढ़ा रखी है. बीते करीब 2 माह से कीमतों में उछाल जारी है. ताजा आंकड़ों के अनुसार गेहूं की वर्तमान कीमत 2966 रुपये प्रति क्विंटल दर्ज की गई है, जो एमएसपी से 30 फीसदी अधिक चल रही है. जबकि, एक साल पहले से तुलना करें तो भाव 53 फीसदी चढ़ा हुआ है. ट्रेड एनालिस्ट के अनुसार आगामी कुछ सप्ताह तक गेहूं के भाव पर दबाव बना रहेगा.
केंद्रीय खाद्य आपूर्ति एवं वितरण विभाग के अनुसार गेहूं का मंडी भाव सप्ताह भर में 20 रुपये प्रति क्विंटल चढ़ गया है. वर्तमान में गेहूं का भाव 2966 रुपये प्रति क्विंटल है, जो बीते माह दिसंबर की तुलना में 3.53 फीसदी अधिक है. जबकि, साल भर पहले की कीमतों से 17 फीसदी दाम अधिक चल रहा है. इसी तरह 3 साल पहले की कीमतों से तुलना करें तो वर्तमान में गेहूं का दाम 53 फीसदी से भी अधिक चढ़ा हुआ है.
रबी सीजन 2024-25 में 20 जनवरी तक गेहूं की बुवाई 320 लाख हेक्टेयर में की गई, जो बीते साल के क्षेत्रफल की तुलना में 2 फीसदी से भी अधिक है. जबकि, सामान्य बुवाई की तुलना में करीब 8 लाख हेक्टेयर अधिक में किसानों ने गेहूं की खेती की है. गेहूं की बुवाई लगभग पूरी हो चुकी है और अब बुवाई की संभावना नहीं है, क्योंकि फिर गर्मी बढ़ने पर बालियों तक आने से पहले ही पौधा झुलसकर सूख जाएगा. गेहूं की बंपर बुवाई की वजह एमएसपी में 150 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोत्तरी 2425 रुपये प्रति क्विंटल करने की घोषणा है.
ट्रेड एनालिस्ट के अनुसार गेहूं की कीमतों में उछाल की वजह ऑफ सीजन है. क्योंकि, किसानों के पास से गेहूं का स्टॉक बाजार में नहीं पहुंच रहा है, वे अगली कटाई से पहले अपने स्टॉक को खाली नहीं करना चाहते हैं. जबकि, गेहूं से बिस्किट, ब्रेड समेत दूसरी खाद्य वस्तुएं बनाने वाली एफएमसीजी कंपनियों ने गेहूं की बंपर खरीद की है. सरकार के स्टॉक लिमिट लगाने के पहले तक भी ट्रेडर्स के पास ज्यादा स्टॉक नहीं बचा. वहीं, केंद्र के लिए गेहूं का स्टॉक और वितरण करने वाली नोडल एजेंसी एफसीआई ने सरकारी स्टॉक से गेहूं आपूर्ति की बाजार में करने में देरी दिखाई है.
केंद्र ने एफसीआई के जरिए 25 लाख मीट्रिक टन गेहूं की आपूर्ति ई-नीलामी के जरिए बाजारों में शुरू जरूर कर दी है, लेकिन प्रक्रिया धीमी होने की वजह से बड़ी राहत नहीं दिख रही है. ऐसे में गेहूं की तेज आपूर्ति नहीं हो पा रही है. एक्सपर्ट का अनुमान है कि जब तक एफसीआई से पूरा 25 लाख मीट्रिक टन बाजार में नहीं पहुंचता है तब कीमतों में राहत की कम उम्मीद है. ऐसे में अप्रैल तक कीमतों पर ऊपर जाने का दबाव बना रहेगा.
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