लोकतंत्र में जनता अपना रोष चुनाव में वोट की चोट करके प्रकट करती है. इससे इतर मतदान का बहिष्कार करना भी सत्ता प्रतिष्ठानों के विरुद्ध जनता के गुस्से को जताने का एक तरीका है. एमपी के मुरैना जिले में बड़ापुरा गांव के लोगों ने गांव में एक दशक से बंद पड़े स्कूल को शुरू करने की मांग पर सरकार द्वारा ध्यान न दिए जाने के विरोध में मतदान करने से परहेज किया. चुनाव कर्मियों ने गांव वालों को वोट डालने के लिए खूब मनाया, लेकिन ग्रामीणों ने 'स्कूल नहीं तो वोट नहीं' के नारे लगाकर मतदान से दूरी बनाए रखी. गांव वालों का कहना है कि प्राइमरी स्कूल के मासूम बच्चों को दूसरे गांव में जाकर पढ़ाई करनी पड़ रही है. गांव वालों के रोष में गांव के सरपंच ने भी शामिल होकर मतदान करने से इंकार कर दिया.
प्राप्त जानकारी के अनुसार मुरैना जिले के बानमोर की महाटोली ग्राम पंचायत के अंतर्गत बड़ापुरा गांव में भी मतदान केंद्र बनाया गया था. इस गांव में बूथ क्रमांक 301 पर बड़ापुरा गांव के 734 मतदाताओं को मतदान करना था. सुबह 7 बजे मतदान शुरू होने के कई घंटे बाद भी जब गांव वाले वोट डालने नहीं आए तो निर्वाचन कर्मियों ने गांव वालों को वोट डालने के लिए बुलाया. इस पर गांव के सरपंच शिवचरण कुशवाह ने बताया कि गांव का प्राइमरी स्कूल 10 साल से बंद पड़ा है. इसे शुरू कराने की मांग लगातार की जा रही है, लेकिन विधायक से लेकर सरकार तक, किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया.
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मतदान के सामूहिक बहिष्कार का ऐसा ही रोचक मामला छिंदवाड़ा में भी सामने आया. इसमें गांव वालों ने अपने पसंदीदा नेता को कांग्रेस द्वारा टिकट नहीं देने के विरोध में मतदान नहीं किया. चुनाव आयोग की ओर से बताया गया कि छिंदवाड़ा जिले में चौरई विधानसभा क्षेत्र के शाहपुरा गांव में किसी मतदाता ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल नहीं किया.
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प्राप्त जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के स्थानीय नेता बंटी पटेल को पार्टी से टिकट नहीं मिलने से उनके पैतृक गांव शाहपुरा में नाराजगी थी. हालांकि पटेल बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे, इसके बावजूद उनके अपने ही गांव के लोगों ने मतदान का बहिष्कार कर दिया.
दोपहर बाद 2:30 बजे तक गांव में मतदान नहीं होने की जानकारी मिलने पर जिला मुख्यालय से अधिकारियों की टीम भेजी गई. अधिकारियों ने गांव वालों को बहुत समझाया, लेकिन वे नहीं माने. ज्ञात हो कि इस गांव में पिछले चुनाव में 99 प्रतिशत मतदान हुआ था, लेकिन इस बार मत प्रतिशत शून्य रहा.
इसी प्रकार करैरा विधानसभा क्षेत्र के केरुवा गांव में भी नहर से सिंचाई का पानी देने की मांग शासन द्वारा पूरी नहीं होने के विरोध में गांव वालों ने मतदान का बहिष्कार किया.
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