एमपी की चंबल घाटी भौगोलिक दृष्टि से कौतुहल जगाती रही है, मगर चुनावी समर में भी ग्वालियर और चंबल संभाग का यह इलाका खूब सुर्खियां बटोरता है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा के विजय रथ को सबसे तगड़ा झटका इसी इलाके से ही लगा था. भाजपा का गढ़ रही सूबे की चंबल घाटी के मतदाता पिछले चुनाव में बागी होकर कांग्रेस के साथ हो लिए. नतीजतन इस इलाके की 34 में से महज 7 सीटें ही भाजपा की झोली में आ सकी. चंबल घाटी ने कांग्रेस को 26 सीटें देकर चुनाव में निर्णायक बढ़त दिला दी. यह बात दीगर है कि महज डेढ़ साल बाद इसी इलाके की बगावत ने कांग्रेस को सत्ता से दूर भी धकेल दिया. हालांकिभाजपा ने पिछले चुनावे में हुए नुकसान की भरपाई के लिए अपने तमाम सियासी सूरमाओं को चंबल के चुनावी मैदान में उतार दिया है. इनमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से लेकर एमपी के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित केंद्र और राज्य के तमाम बड़े नेता शामिल हैं.
एमपी के ग्वालियर चंबल संभाग में 8 जिले (मुरैना, भिंड, श्योपुर, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, गुना और अशोकनगर) शामिल हैं. भौगोलिक दृष्टि से इस इलाके का मिजाज एक समान है, लेकिन आधिकारिक तौर पर ग्वालियर और चंबल को दो अलग संभाग का दर्जा दिया गया है.
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इस इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा जाता है. आमतौर पर सिंचाई के लिए पानी और बिजली, गांवों का पिछड़ापन, बेरोजगारी और लचर कानून व्यवस्था ही इस इलाके के प्रमुख चुनावी मुद्दे रहते हैं. इस बार के चुनाव में पिछले चुनाव के बागी विधायकों के खिलाफ ग्रामीण जनता खासी नाराजगी देखने को मिल रही है.
कहते है कि चंबल का पानी ही बागी मिजाज का है. पहले सामाजिक बगावत के फलस्वरूप पनपे डाकुओं ने चंबल घाटी के बीहड़ में अपनी हनक जमाई और बाद में सियासी बगावत ने इस इलाके को सुर्खियों में रखा.
चुनावी सियासत की बात करें तो इस इलाके की जनता ने 2003 से भाजपा को सिर माथे पर बिठाया लेकिन 2018 में चंबल की जनता का मूड ऐसा बागी हुआ कि भाजपा को इस इलाके की 34 में से 27 सीटें गंवानी पड़ी. कांग्रेस को चंबल की 26 सीटों पर जीत मिली.
हालांकि चुनाव के महज 18 महीने के भीतर चंबल की घाटी में बगावत के ऐसे सुर फूटे कि कांग्रेस के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ पार्टी के 28 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम कर कमलनाथ सरकार को अपदस्थ कर दिया. इस बगावत से जनता में उपजा गुस्सा उपचुनाव में ही देखने को मिल गया, जब मंत्री इमरती देवी सहित दो बागी विधायक उपचुनाव हार गए.
एमपी में चंबल की बगावत से बनी भाजपा की सरकार, साढ़े तीन साल सत्ता में रही. भाजपा को अब पूरे प्रदेश में लगभग दो दशक की सरकार विरोधी लहर यानी anti incumbency का सामना करना पउ़ रहा है. इसका असर ग्वालियर चंबल संभाग में भी साफ तौर पर देखा जा सकता है. जनता के इस मूड को भांपते हुए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने जनता के गुस्से को राज्य सरकार के मुखिया शिवराज सिंह चौहान और उनकी टीम तक ही सीमित रहे, इसके लिए किसी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित नहीं किया है. साथ ही भाजपा ने अपने तमाम केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को चुनाव मैदान में उतारकर जनता के बीच अपने जुझारूपन को पेश किया है. भाजपा अब पीएम नरेंद्र मोदी के नाम और भाजपा की डबल इंजन सरकार के काम पर चुनाव लड़ रही है.
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साथ ही भाजपा ने केंद्र की राजनीति में मशगूल अपने कुछ कद्दावर नेताओं को एमपी के विधानसभा चुनाव में उतारा है. इनमें चंबल संभाग की मुरैना लोकसभा सीट से सांसद और केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हैं. तोमर को पार्टी ने मुरैना जिले की दिमनी सीट से प्रत्याशी बनाया है. कांग्रेस ने तोमर के सामने रविंद्र सिंह तोमर को टिकट दिया है.
इस इलाके में शिवराज सरकार के तीन मंत्रियों की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इनमें प्रदेश के कद्दावर नेता और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा दतिया सीट से चुनाव मैदान में है. कांग्रेस ने मिश्रा के सामने पूर्व विधायक राजेंद्र भारती को उतारा है. उम्मीदवारों की पहली सूची में कांग्रेस ने अवधेश नायक को टिकट दिया था, मगर गुरुवार को जारी हुई सूची में पार्टी ने नायक की जगह कांग्रेस के पुराने नेता भारती को उम्मीदवार बनाया. पूर्व विधायक भारती, मिश्रा को दतिया में ही एक बार चुनावी शिकस्त दे चुके हैं.
इसी प्रकार ग्वालियर शहर से विधायक और मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर, ग्वालियर ग्रामीण सीट से विधायक तथा मंत्री भारत सिंह कुशवाह एवं भिंंड से विधायक संजीव कुशवाह को भी कांग्रेस से बगावत का जवाब इस चुनाव में चंबल की जनता को देना पड़ेगा.
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