GI Samagam 2025 में खिल उठी खेती की दुनिया, जानें GI टैग कैसे बदल रहा किसानों की जिंदगी

GI Samagam 2025 में खिल उठी खेती की दुनिया, जानें GI टैग कैसे बदल रहा किसानों की जिंदगी

दिल्ली के भारत मंडपम में 22 जनवरी को GI Samagam का आयोजन हुआ। इस आयोजन में वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अलावा कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी भी मौजूद रहे। इस दौरान उन्होंने बताया कि किस तरह जीआई टैगिंग से किसानों की दुनिया बदल रही है और उनकी आमदनी बढ़ रही है। उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने जीआई को लेकर भविष्य की योजनाओं के बारे में भी बताया।

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GI Samagam 2025 में खिल उठी खेती की दुनिया, जानें GI टैग कैसे बदल रहा किसानों की जिंदगीGI टैग कैसे बदल रहा किसानों की जिंदगी

डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (DPIIT) और  India Today Group ने 22 जनवरी को किया GI Samagam 2025 का आयोजन. ये आयोजन जीआई टैग प्राप्त भारतीय उत्पादों का एक उत्सव था। दिल्ली के भारत मंडपम में हुआ इस आयोजन में जीआई के क्षेत्र से अलग-अलग रूपों में जुड़ी जानी-मानी हस्तियों ने शिरकत की. इसमें वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने शिरकत की. DPIIT की अतिरिक्त सचिव हिमानी पांडे के साथ ही इस आयोजन में नीति आयोग के पूर्व सीईओ अमिताभ कांत, कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी  जैसी हस्तियां भी मौजूद रहीं. इस आयोजन में जीआई से जुड़े लोगों ने ना सिर्फ जीआई प्रोडक्ट्स पर अपनी राय
रखी बल्कि जीआई से होने वाले फायदों और इस क्षेत्र में आ रही चुनौतियों पर भी बेहद दिलचस्प अंदाज में चर्चा की.

अगले 5 साल में हर जिले तक पहुंचेगी GI की कहानी- पीयूष गोयल

वाणिज्य और उद्योग मंत्री ने जीआई समागम में कहा कि 2030 तक देश के दस हजार से ज्यादा प्रोडक्ट्स को जीआई टैग देने का लक्ष्य रखा गया है. फिलहाल 605 प्रोडक्ट्स को ये टैग मिला हुआ है. गोयल ने कहा कि अगले पांच साल में वह जीआई को देश के हर प्रदेश और हर जिले तक पहुंचाने का लक्ष्य रखते हैं.

जीआई टैगिंग के बाद बदल गई काला नमक चावल की कहानी-देवेश चतुर्वेदी

किसानों को और खेती की दुनिया को जीआई टैगिंग से कितना फायदा है और इसका क्या भविष्य है इसे लेकर कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने काफी अहम बातें बताईं. उन्होंने बताया कि किस तरह जीआई टैगिंग किसानों की आमदनी बढ़ाने में अहम रोल अदा करती है. यही नहीं एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स की जीआई टैगिंग भारत की खाद्य संपदा के अनोखेपन को संरक्षित करने में भी मदद करती है. उन्होंने भारत के 242 जीआई टैग एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स का भी जिक्र किया. ये भी कहा कि ऐसे 100 और प्रोडक्ट्स की जीआई टैगिंग का अभी स्कोप है. उन्होंने बासमती चावल, हल्दी, तुलसी जैसे उदाहरण भी गिनवाए. उन्होंने बताया कि काला नमक चावल को जीआई मिलने के बाद किसानों की आमदनी बढ़ी है ये चावल 30-40 रुपये किलो मिलता था जीआई के बाद 100 रुपये किलो से ज्यादा के दाम पर मिलने लगा. जीआई मिलने के बाद किसी भी प्रोडक्ट को पहचान मिल जाती है और उसके बाद उसकी क्वालिटी में काफी सुधार होता है. इससे किसानों को काफी फायदा होता है.

क्या होती है Gi टैगिंग

Gi टैगिंग का मतलब है, किसी उत्पाद को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication) देना. यह एक तरह से किसी उत्पाद को पहचान देने का तरीका है. जीआई टैग मिलने के बाद, उस उत्पाद को कानूनी सुरक्षा मिलती है. इससे उस उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिष्ठा बढ़ती है. साथ ही, उस क्षेत्र के आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है जहां से वह उत्पाद आता है. 

1999 में बना अधिनियम

संसद ने उत्पाद के रजिस्ट्रीकरण और संरक्षण को लेकर दिसंबर 1999 में अधिनियम पारित किया, जिसे अंग्रेजी में Geographical Indications of Goods (Registration and Protection) Act, 1999 कहा गया. इसे 2003 में लागू किया गया, इसके तहत भारत में पाए जाने वाले प्रॉडक्ट के लिए जी आई टैग देने का सिलसिला शुरू हुआ.

खेती से जुड़े उत्पाद

जैसा कि कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने बतााय कि 242 एग्रीकल्चर प्रोडक्ट्स को जीआई टैग मिला हुआ है. इनमें उत्तराखंड का तेजपात, मालाबार काली मिर्च, कश्मीर केसर, नागपुर संतरा, मध्य प्रदेश का शरबती गेहूं, सुंदरजा आम, अलीबाग सफ़ेद प्याज़ जैसी चीजें शामिल हैं.

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