'लौकी तेरे हजारों रूप' यह किसी शायर की नहीं बल्कि लौकी पुरुष के नाम से मशहूर प्रोफ़ेसर शिवपूजन सिंह (Professor Shivpujan Singh) की पंक्तियां हैं. उन्होंने लौकी के ऊपर एक कविता का भी सृजन किया है तो वही उनके द्वारा लौकी (Lauki) की एक से बढ़कर एक किस्म को विकसित भी किया गया है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय (Acharya Narendra Dev Agricultural University) में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत रहने के दौरान शिवपूजन सिंह ने नरेंद्र शिवानी (Narendra Shivani) नाम से एक ऐसी लौकी की किस्म को विकसित किया जिसकी लंबाई आज देश में सबसे बड़ी होती है. इसके अलावा भी उन्होंने लौकी की 9 अलग-अलग आकार की किस्मों का विकास किया. आज प्रोफेसर शिवपूजन सिंह भले ही सेवानिवृत्त हो गए हैं लेकिन उनका शोध अभी भी जारी है. उन्होंने अपने घर में ही लौकी का एक मंदिर (Gourd temple) बनाया है जिसमें लौकी के अलग-अलग आकार के फल मौजूद है. यहां तक कि इस मंदिर में लौकी से बने हुए हेलमेट, कप, शंख और तुम्भि भी मौजूद है.
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