Millets farming: क्या मोटे अनाज फिर से भुलाए जा रहे हैं! क्यों किसान नहीं कर रहे हैं बुवाई

Millets farming: क्या मोटे अनाज फिर से भुलाए जा रहे हैं! क्यों किसान नहीं कर रहे हैं बुवाई

भारत सरकार देश में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. वहीं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां से निपटने और पोषित अनाज उपलब्‍ध कराने के लिए दुनिया के बीच मोटे अनाजों की प्रासंगिकता बढ़ी है तो आखिर क्‍यों देश के किसान मोटे अनाजों की खेती से दूरी बना रहे हैं.

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Millets farming: क्या मोटे अनाज फिर से भुलाए जा रहे हैं! क्यों किसान नहीं कर रहे हैं बुवाईमोटे अनाज क्‍या फिर से भूलाए जा रहे हैं

भारत सरकार ने साल 2019 को मिलेट्स वर्ष के तौर पर मनाया था. इसके बाद भारत सरकार के प्रयासों से ही साल 2023 को संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ ने इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के तौर पर मनाया गया था, जिसमें दुनिया के कई देशों में मिलेट्स यानी मोटे अनाजों की एंट्री हुई है और मोटे अनाजों से बने पकवान दुनिया की थाली का हिस्‍सा बने. मोटे अनाजों को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए भारत सरकार की ये पहल दुनिया भर में लोकप्रिय हुई. जिसके बाद से माना जा रहा था कि अब भारत के पारंपरिक अनाजों में शुमार मोटे अनाजों की वापसी हो जाएगी, लेकिन मौजूदा हालात फिर से मोटे अनाजों को भूलाए जाने की तरफ इशारा कर रहे हैं.

इसका कारण ये है कि किसानों ने मोटे अनाजाें की खेती से अभी भी दूरी बनाई हुई है. आज की बात इसी पर...समझेंगे कि भारत सरकार देश में मोटे अनाजाें की वापसी के लिए क्‍या काम कर रही है. साथ ही जानेंगे कि क्‍या कारण है कि मोटे अनाजों की बुवाई से किसानों ने दूरी बनाई हुई है. 

मोटे अनाजाें की खेती को बढ़ावा देने के लिए योजना

भारत सरकार मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. मसलन, ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय कृषि व किसान कल्‍याण मंत्रालय ने साल 2018-19 से देश के 14 राज्यों में शामिल 212 जिलों में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत पोषक अनाज (मिलेट्स) पर एक उप-मिशन लागू किया हुआ है.

इस साल बुवाई के क्‍या हाल

इस साल अभी तक आंकड़ों में तो मोटे अनाजों का रकबा पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ रहा है, लेकिन इन आंकड़ों को बारिक नजर से देखें तो इस साल मोटे अनाजों की बुवाई पिछले साल की तुलना में पिछड़ रही है. केंद्रीय कृषि व किसान कल्‍याण मंत्रालय की तरफ से 26 जुलाई को उपलब्‍ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस साल ज्‍वार की बुवाई 12.10 लाख हेक्‍टेयर में हुई है, जो पिछले साल 10.58 थी. इसी तरह इस साल बाजरे की बुवाई 56.46 लाख हेक्‍टेयर में हुई है, जो पिछले साल 60 लाख हेक्‍टेयर से अधिक थी. इस साल रागी की बुवाई 2.63 लाख हेक्‍टेयर में हुई, जो पिछले साल 2.48 लाख हेक्‍टेयर में हुई थी. हालांकि मक्‍के की बुवाई का रकबा 79 लाख हेक्‍टेयर है, जो पिछले साल से 10 लाख हेक्‍टेयर अधिक है.

कुल जमा देखें तो पिछले साल की तुलना में इस साल मक्‍के और ज्‍वार का रकबा बढ़ा है तो वहीं बाजरे का रकबा कम हुआ है, जबकि रागी समेत अन्‍य मोटे अनाजों की बुवाई में मामूली बढ़त हुई है. ये हालात तब हैं, जब बीते साल ही इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स मनाया गया था और दुनिया के कई देशाें में मोटे अनाजों की एंट्री हुई थी. माना जा रहा था कि इस पहल के बाद मोटे अनाजों का क्षेत्रफल बढ़ेगा. ऐसे में मोटे अनाजों की बुवाई का ये हाल कई सवाल खड़े करता है.

मोटे अनाजाें से किसान क्‍यों बना रहे हैं दूरी

भारत सरकार देश में मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है. वहीं जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां से निपटने और पोषित अनाज उपलब्‍ध कराने के लिए दुनिया के बीच मोटे अनाजों की प्रासंगिकता बढ़ी है तो आखिर क्‍यों देश के किसान मोटे अनाजों की खेती से दूरी बना रहे हैं. इसके कारणों की पड़ताल की जाए तो मुख्‍य तौर पर दो कारण समझ आते हैं. आइए उन पर विस्‍तार से बात करते हैं.

सरकारी खरीद का तंत्र नहीं 

मोटे अनाजों की खेती किसानों को लुभा क्‍यों नहीं रही है. इसका मुख्‍य कारण ये है कि किसानों के लिए मोटे अनाज नकदी फसल नहीं बन पा रहे हैं. बेशक केंद्र सरकार ने मोटे अनाजाें का MSP घोषित किया हुआ है और इसमें बढ़ोतरी भी होती है, लेकिन देश के अंदर मोटे अनाजों की खरीद का कोई तंत्र नहींं बन पाया है. उदाहरण के तौर पर समझे तो राजस्‍थान बाजरे का सबसे बड़ा उत्‍पादक है, लेकिन राजस्‍थान सरकार ही बाजरे की सरकारी खरीद में फिसड्डी साबित हुई है. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मोटे अनाजों की बीते साल कुछ खरीदी की थी, लेकिन किसानों के बीच मोटे अनाजों की खेती को लाेकप्रिय बनाने के लिए उसके दामों की सुनिश्‍चिता का इरादा सरकार को रखना होगा. इसके लिए MSP पर सरकारी खरीद का तंत्र बनाना होगा.

आहार संस्‍कृति का हिस्‍सा और बाजार

किसानों के बीच मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकारों काे अपने स्‍तर पर सांस्‍कृतिक  और आहार से जुड़े प्रयास भी करने होंगे. जिसके तहत मोटे अनाजों को आहार संस्‍कृति का हिस्‍सा फिर से बनाना होगा. इसके लिए कुछ राज्‍य सरकारें प्रयास कर रही है, जिसके तहत वह पीडीएस में मोटे अनाजाें को बंंटवा रही है. जरूरी है कि लंबे समय तक ऐसे प्रयासों को निरंतर रखा जाए. इससे मोटे अनाजों के गुणों काे देखते हुए इनकी मांग में बढ़ोतरी होगी. तो वहीं ये मांग मोटे अनाजों का एक घरेलू बाजार विकसित करेगी. नतीजतन किसानों को मोटे अनाजों का खुला बाजार उपलब्‍ध होगा.

 

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