scorecardresearch
डेटा बोलता है: धीमी पड़ी गेहूं की सरकारी खरीद, नमी और हाजिर भाव ने बिगाड़ा खेल!

डेटा बोलता है: धीमी पड़ी गेहूं की सरकारी खरीद, नमी और हाजिर भाव ने बिगाड़ा खेल!

सरकारी एजेंसियों के जरिये अभी गेहूं की खरीद धीमी पड़ गई है. इसकी दो वजह बताई जा रही है. पहली, गेहूं में नमी की मात्रा अधिक होने से एजेंसियां इसे खरीदने से कतरा रही हैं. दूसरी वजह, किसानों को मंडी की तुलना में गेहूं का भाव खुले बाजारों में अधिक मिल रहा है, इसलिए सरकारी गोदामों में गेहूं कम पहुंच रहा है.

advertisement
Wheat procurement Wheat procurement

देश में गेहूं की सरकारी खरीद कुछ धीमी पड़ी है. यहां सरकारी खरीद का अर्थ है सरकार की एजेंसियों के जरिये खरीदे जाने वाला गेहूं. इस एजेंसी में फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया यानी कि FCI का नाम सबसे प्रमुख है. एफसीआई देश की अलग-अलग मंडियों के जरिये किसानों से गेहूं खरीदती है. फिर यही गेहूं सरकार की अनाज वितरण स्कीमों में इस्तेमाल किया जाता है. इस खरीद में धीमापन आने का सीधा मतलब है कि किसान मंडियों में अपनी उपज कम बेच रहे हैं. इस बात के दो पहलू हैं- पहला, या तो किसान मंडी में जाने से कतरा रहे हैं. दूसरा-अगर जा भी रहे हैं तो एजेंसियां बड़े पैमाने पर गेहूं की खरीद नहीं कर रही हैं. आज हम इसी मुद्दे पर बात करेंगे.

अगर मंडियों में गेहूं का उठान धीमा पड़ा है तो उसके पीछे दो मुख्य वजह बताई जा रही है. एक तो गेहूं में नमी की मात्रा ज्यादा है और दूसरी वजह, गेहूं के हाजिर भाव (स्पॉट प्राइस) में तेजी है. इन दोनों कारणों से अप्रैल महीने में गेहूं के उठान में कमी दर्ज की गई है. उठान में देरी का बड़ा असर सरकारी गोदामों के भरने पर देखा जा सकता है. अगर गेहूं का उठान पर्याप्त नहीं होगा तो गोदामों में गेहूं की मात्रा कम पड़ सकती है. इसके दूरगामी परिणामों में गेहूं की महंगाई और स्कीमों में गेहूं की कमी दर्ज की जा सकती है.

हालांकि सरकार ने पहले ही अनुमान जताया है कि इस साल गेहूं का बंपर उत्पादन होगा. इसे देखते हुए सरकारी एजेंसियां अधिक से अधिक खरीद करने की तैयारी में हैं ताकि गोदामों को भरा जा सके. S&P Global Commodity Insights की एक रिपोर्ट बताती है कि सरकार की योजना मार्केटिंग सीजन 2024-25 (अप्रैल-मार्च) में लगभग 33.5 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है, जो एक साल पहले की 26.2 मिलियन मीट्रिक टन की एक्चुअल खरीद से लगभग 28 फीसद अधिक है.

सरकार ने फसल वर्ष 2023-24 (जुलाई-जून) में भारत का गेहूं उत्पादन 112 मिलियन मीट्रिक टन रहने का अनुमान लगाया है, जो पिछले सीजन में 110.55 मिलियन मीट्रिक टन से थोड़ा अधिक है. हालांकि, 13 एनालिस्टों और व्यापारियों के एसएंडपी ग्लोबल कमोडिटी इनसाइट्स सर्वे में पाया गया कि 2023-24 (इस साल) में भारत में गेहूं की फसल साल-दर-साल थोड़ी कम यानी 107 मिलियन-108 मिलियन मीट्रिक टन रहने की आशंका है. अप्रैल की शुरुआत में सरकारी भंडारों में भारत का गेहूं भंडार 16 साल के निचले स्तर 7.5 मिलियन मीट्रिक टन पर आ गया, जो एक साल पहले 8.4 मिलियन मीट्रिक टन था.

रिपोर्ट बताती है कि सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक तेजी से कम हुआ है, क्योंकि सरकार ने पिछले दो सीजन के दौरान खराब फसल पैदावार के बीच घरेलू सप्लाई बढ़ाने और बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए रिकॉर्ड मात्रा में गेहूं बेचा है. एफसीआई के एक अधिकारी ने कहा, "देश के अलग-अलग हिस्सों में खरीद के लिए आने वाली फसल में नमी की मात्रा अधिक है, इसलिए हम इसे खरीदने में असमर्थ हैं." एफसीआई 12 से 14 परसेंट नमी वाला गेहूं खरीदता है. उत्तर भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक इलाकों में हाल ही में हुई बारिश के कारण फसल में नमी की मात्रा अधिक है. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार, 1 मार्च से 21 अप्रैल के बीच उत्तर-पश्चिम भारत में सामान्य से 98 फीसद अधिक बारिश हुई है.

नमी की अधिक समस्या के अलावा सरकारी खरीद केंद्रों पर आवक धीमी हो गई है, क्योंकि खुले बाजारों में सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से गेहूं की अधिक कीमत है. कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य 22,750 रुपये प्रति मीट्रिक टन (2275 रुपये प्रति क्विंटल) घोषित किया है. हालांकि, व्यापारियों ने कहा कि पिछले कुछ हफ्तों में हाजिर कीमतों (स्पॉट प्राइस) में एमएसपी से अधिक तेजी देखी गई है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के इंदौर में एक प्रमुख स्पॉट मार्केट में 21 अप्रैल को गेहूं 24,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन पर बिका, जो महीने के मुकाबले करीब 7 फीसद अधिक है.

वित्तीय वर्ष 2024-25 में खरीद में गिरावट सरकार के लिए गंभीर चिंता का विषय हो सकती है, क्योंकि इसने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 810 मिलियन (80 करोड़ से अधिक) से अधिक लाभार्थियों को मुफ्त राशन देने की योजना को 1 जनवरी, 2024 से पांच साल के लिए बढ़ा दिया है. हालांकि, अगर सरकार अपने खरीद के लक्ष्य से पीछे रह जाती है, तो उसे घरेलू स्तर पर गेहूं की सप्लाई दुरुस्त करने के लिए गेहूं आयात करना पड़ सकता है या अनाज पर इंपोर्ट ड्यूटी कम करने की जरूरत पड़ सकती है. 

अगर गेहूं का उठान पर्याप्त नहीं रहा तो सरकार गेहूं पर निर्यात प्रतिबंधों को मार्च 2025 तक बढ़ा सकती है. उत्पादन में गिरावट के बीच घरेलू सप्लाई कम होने के बाद भारत ने मई 2022 में गेहूं के निर्यात पर बैन लगा दिया था. वित्तीय वर्ष 2022-23 (अप्रैल-मार्च) में, भारत ने लगभग 10 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं निर्यात करने की योजना बनाई थी, लेकिन लगभग 5 मिलियन मीट्रिक टन का निर्यात किया गया.