बनारसी पान के बाद अब बनारस की मशहूर ठंडई, लाल पेड़ा, तिरंगा बर्फी , चिरई गांव का करौंदा ,लाल भरवा मिर्च समेत उत्तर प्रदेश के 36 उत्पादों को जीआई टैग मिलने जा रहा है. चेन्नई स्थित की रजिस्ट्री कार्यालय में इसकी जल्द सुनवाई होने वाली है. इन उत्पादों को जीआई टैग मिलने से इनकी पहचान विदेश तक फैल जाएगी. उत्तर प्रदेश के 36 उत्पादों में से बनारस के सात, अलीगढ़ के ब्रास के बने स्टैचू, मथुरा की कंठी माला और सांझी आर्ट भी शामिल है. जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत ने बताया की अक्टूबर में इन उत्पादों को लेकर सुनवाई होने वाली है. जीआई में शामिल होते ही इन उत्पादों को वैश्विक बाजार मिलने लगेगा और इससे रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे.
उत्तर प्रदेश का वाराणसी जिला बनारसी साड़ी, वाराणसी पान और लंगड़ा आम के लिए ही नहीं जाना जाता है बल्कि यहां कई ऐसे उत्पाद है जिनकी पहचान पूरे देश में फैली हुई है. बनारस की जरदोजी ,गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के खिलौने, ग्लास बीड्स , साफ्ट स्टोन जाली वर्क, हैंड ब्लाक प्रिंट, वुड कार्विंग समेत मिर्जापुर के पीतल के बर्तन, हस्त निर्मित दरी, भदोही की कालीन और आजमगढ़ के निजामाबाद की ब्लैक पॉटरी , गाजीपुर का वॉल हैंगिंग, चुनार का बलुआ पत्थर व ग्लेज पाटरी , गोरखपुर के टेराकोटा क्राफ्ट को जीआई टैग पहले मिल चुका है.
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बनारस की ठंडई पूरे विश्व में मशहूर है. यहां आने वाले पर्यटक बनारस के लाल पेड़ा, तिरंगा बर्फी और ठंडई का स्वाद जरूर चखते हैं. इसलिए अब इन उत्पादों को जीआई टैग मिलने जा रहा है. जीआई टैग मिलने के बाद बनारस के ये उत्पाद पूरे विश्व में मशहूर हो जाएंगे जिससे इनको वैश्विक बाजार भी मिलने लगेगा. बनारस का मशहूर पान को जीआई टैग मिलने के बाद 22 उत्पादों का दावा किया गया है. उत्तर प्रदेश के इन उत्पादों को बनाने में कारीगर सहित 20 लाख लोग जुड़े हुए हैं. इन उत्पादों का सालाना कारोबार 25500 करोड़ का आंका गया है.
जीआई का मतलब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक संकेत होता है . जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के अनुसार जीआई टैग एक प्रतीक है जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उसके मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है. यह उत्पाद की विशेषता बतलाता है और यह भी बताता है कि यह उत्पादन किस जगह बना है या इसका उत्पादन कहां होता है. टैग मिलने से उत्पादों को कानूनी संरक्षण मिलता है. बाजार में उस नाम से दूसरा उत्पाद नहीं लाया जा सकता है. देश के साथ विदेशों में भी बाजार आसानी से मिल जाता है.
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