उत्तर भारत में इन दिनों तेज गर्मी पढ़ रही है जिसका असर लोगों की दिनचर्या पर पढ़ने लगा है. बढ़ती गर्मी से बचने के लिए टीवी पर आने वाले बड़े-बड़े विज्ञापनों से प्रभावित होकर लोग बड़े ब्रांड के पेय पदार्थ का इस्तेमाल भी करते हैं. वही बलिया से बनारस तक देसी सत्तू की लस्सी ने इन दिनों बड़े ब्रांड के पेय पदार्थों को भी फेल कर दिया है. गर्मी का पारा जैसे- जैसे बढ़ता जा रहा है उसी अनुपात में चना और जौ से बनी हुई लस्सी की डिमांड भी बढ़ने लगी है. लस्सी पीने वाले अब खुलकर कहने लगे हैं कि विदेशी पेय पदार्थों को छोड़ो देसी अपनाओ. सत्तू की लस्सी के अपने फायदे भी हैं जबकि नुकसान तो बिल्कुल नहीं है. इसी वजह से अब बलिया से बनारस के रेलवे स्टेशन से लेकर बस स्टैंड तक सत्तू की लस्सी (sattu lassi) छाई हुई हैं.
सत्तू की बनी हुई लस्सी (sattu lassi) औषधिय गुणों युक्त मानी जाती है. इस लस्सी में चना और जौ को मिलाकर सत्तू बनाया जाता है और फिर इसमें पुदीना, नींबू ,कच्चा आम और हरी धनिया की चटनी का इस्तेमाल होता है. स्वाद बढ़ाने के लिए इसमें काला नमक का प्रयोग किया जाता है. फिर इसमें प्याज, हरी मिर्च और कटे हुए टमाटर को डालकर ग्राहकों को परोसा जाता है. सत्तू की लस्सी का स्वाद बेजोड़ होता है तभी तो इसके पीने वालों की संख्या अब पूर्वांचल में बढ़ती जा रही है. देसी अनाजों से बनी हुई लस्सी की मांग गर्मी में काफी बढ़ चुकी है. लस्सी पीने वाले उमेश मौर्य सरकारी स्कूल में टीचर है. वे बताते हैं कि यह लस्सी केमिकल वाले कोल्ड ड्रिंक से कहीं ज्यादा बेहतर है. इसे पीने से फ़ायदा ही फ़ायदा मिलता है जबकि दूसरे केमिकल युक्त कोल्ड ड्रिंक से नुकसान ही होता है.
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वाराणसी के कचहरी पर 25 सालों से सत्तू की लस्सी की दुकान लगाने वाले बच्चा लाल गुप्ता ने किसान तक को बताया कि वह बनारस में पहले ऐसे दुकानदार है जिसने सत्तू की लस्सी का काम शुरू किया. बाजार में जहां मिलावट की भरमार है जबकि यह लस्सी शुद्ध चना , जौ और मौसम के अनुसार मक्का को मिलाकर तैयार की जाती है. इस लस्सी के आयुर्वेदिक फायदे हैं क्योंकि इसे पीने से गर्मी में जहां लू नहीं लगती है. वही इसके नियमित सेवन से वजन भी कम होता है. पाचन को दुरुस्त रखने में सत्तू की लस्सी बेहतर काम करती है और पेट में गैस और बदहजमी भी ठीक होती है.
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