महाराष्ट्र के पुणे में गुलाब की खेती बड़े पैमाने पर होती है. यहां कई गांवों में किसान गुलाब की खेती पर पूरी तरह से आश्रित हैं. इसी में एक गांव है वादजी जो सोलापुर से दो घंटे की दूरी पर स्थित है. इस गांव का लगभग 350 परिवार आज गुलाब की खेती से अपनी आजीविका चला रहा है. इस गांव के किसान पौ फटने से पहले उठ जाते हैं और गुलाब के खेतों में चले जाते हैं. सुबह होने से पहले फूल की तुड़ाई की जाती है और सोलापुर मंडी में भेज दिया जाता है. इस मंडी में किलो के हिसाब से गुलाब की बिक्री होती है. हालत ये है कि इलाके में बादजी गांव को रोज विलेज का दर्जा मिल गया है. यह पूरा इलाका गुलाब की खेती के लिए मशहूर हो रहा है.
कुंभार जो कि बायोटेक्नोलॉजी में पोस्ट ग्रैजुएट हैं और खंडोबा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी के चेयरमैन हैं, उनकी कंपनी से 480 किसान जुड़े हैं, वे 'टाइम्स ऑफ इंडिया' से कहते हैं, हमारे इलाके में 100 एकड़ से अधिक खेत में गुलाब की खेती होती है. हर एक एकड़ में प्रतिदिन 30 किलो गुलाब का फूल निकलता है और हर साल 8-10 टन फूल मिलता है. हर किसान के पास एक एकड़ खेत है जिससे उसे सालाना 5-6 लाख रुपये की कमाई हो जाती है. इस गांव का हर किसान लखपति है.
वादजी गांव में देसी किस्म के गुलाबों की खेती होती है. यही वजह है कि मुंबई बाजार में इन फूलों का अच्छा दाम मिलता है. मॉनसून के दौरान गुलाब की अच्छी उपज मिलती है, लेकिन दाम कम होता है. अब किसान वैसी किस्मों पर ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं जिससे गुलाब का माला तैयार हो सके और गुलाब जल बनाया जा सके. इससे किसानों की कमाई बढ़ने की अधिक संभावना रहेगी.
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उपयुक्त मौसम और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से महाराष्ट्र में गुलाब की खेती का दायरा लगातार बढ़ रहा है. देश में महाराष्ट्र का नाम गुलाब की खेती में सबसे आगे चल रहा है. पुणे, मुंबई, नासिक, सोलापुर और औरंगाबाद-सतारा के कुछ इलाके गुलाब की खेती में बड़ा नाम कर रहे हैं. गुलाब उगाने वाले किसान रविंद्र भिड़े ने बताया कि पूरी दुनिया में गुलाब की 50,000 वैरायटी है जिसमें 10-15,000 किस्मों की खेती भारत में होती है. उसमें से 2,000 वैरायटी पुणे में उगाई जा रही है.
भिड़े ने कहा, "पुणे की जलवायु इतनी अच्छी है कि मई में भी गुलाब के पौधे लगाए जा सकते हैं. औसतन, पुणे में 5-6 इंच बड़े गुलाब आसानी से मिल जाते हैं. ठंडी जलवायु में फूल बड़े हो जाते हैं. हालांकि, शहरीकरण के कारण, पुणे और मुंबई में किसानों की संख्या पहले की तुलना में कम हो गई है." पुणे रोज सोसाइटी के वर्तमान में 1,500 से अधिक सदस्य हैं.
सोलापुर के रहने वाले अविनाश बछुवार कहते हैं, कोरोना महामारी के दौरान गुलाब उगाना शुरू किया और अब उनके घर में 30-40 किस्में उग रही हैं. उन्होंने कुछ गुलाब प्रतियोगिताएं भी जीती हैं. उन्होंने कहा, "गुलाब उगाना मुश्किल नहीं है. फूल के लिए सूरज की रोशनी बहुत जरूरी है और खादों और औषधीय स्प्रे का सही मिश्रण पौधे को स्वस्थ रख सकता है."
इस वैलेंटाइन डे पर पुणे के मावल क्षेत्र ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, दुबई और कतर जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों के साथ-साथ स्थानीय बाजारों में लगभग 2 करोड़ डच गुलाब के निर्यात किए. वैलेंटाइन डे के दौरान आमतौर पर टॉप सीक्रेट (लाल) और रिवाइवल (गुलाबी) जैसी किस्में लोकप्रिय होती हैं. डच गुलाब की अन्य किस्में जैसे कि व्हाइट एवलांच, पीच एवलांच, स्वीट एवलांच और रॉकस्टार ऑरेंज भी मावल में 1,200 पॉलीहाउस में उगाई जाती हैं. हर पॉलीहाउस का आकार लगभग एक एकड़ है.
पुणे के मावल क्षेत्र के पवननगर के येलसे गांव में मुकुंद ठाकर ने 2005 में एक चौथाई एकड़ जमीन पर गुलाब की खेती शुरू की थी. अब वे 52 एकड़ जमीन पर डच गुलाब की खेती करते हैं. ठाकर, जो साई रोजेज का अपना ब्रांड भी चलाते हैं, ने 'Times Of India' से कहा, "मैंने दूसरे किसानों और रिश्तेदारों को भी गुलाब की खेती में शामिल होने के लिए राजी किया, क्योंकि डच गुलाब के अलग-अलग रंगों की मांग थी.
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वे कहते हैं, हमने पॉलीहाउस लगाने के लिए बैंकों से लोन लिया. एक पॉलीहाउस लगाने में 70 लाख रुपये का खर्च आता है." गुलाब उगाने वाले इन किसानों का कारोबार तेजी से आगे बढ़ा है. ठाकर ने इलाके के 411 किसानों का एक समूह पवना फूल उत्पादक संघ भी बनाया है. एक एकड़ जमीन से हर दिन करीब 2,000 डच गुलाब तोड़े जा सकते हैं और ये औसतन 7-8 रुपये प्रति डंठल बिकते हैं.
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