भारत में लगभग 60 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है. वहीं, इनमें से ज्यादातर किसान वर्षा आधारित कृषि पर निर्भर हैं. ऐसे में कई बार अचानक होने वाली भारी बारिश, सूखा, तूफान या किसी अन्य तरह की प्राकृतिक आपदा की वजह से फसलों के खराब होने का खतरा बना रहता है. किसानों की इन्हीं समस्याओं के मद्देनजर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की शुरुआत की गई है, जो फसल खराब होने की स्थिति में किसानों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है. इसके लिए किसानों को प्रीमियम भी देना पड़ता है. हालांकि, पिछले कुछ सालों में बीमाकर्ता कंपनियों की संख्या में कुछ कमी आ गई थी. वही अब यह संख्या बढ़ सकती है.
दरअसल, बिजनेसलाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि इस साल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, टाटा एआईजी, चोलामंडलम और ओरिएंटल इंश्योरेंस जैसी बीमा कंपनियां भी फसलों का बीमा करने के लिए आगे आई हैं. इन चारों बीमा कंपनियों ने चार साल पहले अव्यवहार्य दावा राशि (inevitable claim amount) का हवाला देते हुए फसल बीमा का बिजनेस छोड़ दिया था. लेकिन अब इन कंपनियों ने वापसी का विकल्प चुना है, क्योंकि पिछले कुछ महीनों में पीएमएफबीवाई में कई कदम उठाए गए हैं. इनमें टेक्नोलॉजी को शामिल करना और फसल बीमा जोखिम को कम करना आदि शामिल है. इसके अलावा, एक नई कंपनी क्षेमा जनरल इंश्योरेंस को भी PMFBY में शामिल किया गया है.
मालूम हो कि साल 2019-20 में (खरीफ और रबी दोनों मौसमों में), इन निजी बीमा कंपनियों ने उन राज्यों में उच्च दावा अनुपात के कारण पीएम फसल बीमा योजना योजना से बाहर होने का फैसला किया था, जहां उन्हें नुकसान हुआ था. हालांकि, ये कंपनियां पिछले चार वर्षों में पैनल में बनी हुई हैं. वहीं श्रीराम जनरल इंश्योरेंस, एक अन्य निजी बीमा कंपनी, जो 2019-20 से फसल बीमा सेगमेंट से हट गई थी और रॉयल सुंदरम, जो 2020 से बोलियों में भाग नहीं ले रही है. इन दोनों कंपनियों ने इस साल भी रुचि नहीं दिखाई है.
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साल 2018-19 में महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में बीमा कंपनियों को प्रीमियम के तौर पर जितना पैसा मिला था. उससे ज्यादा पैसा बीमा कंपनियों को किसानों को देना पड़ा था, जबकि अखिल भारतीय आधार पर दावा अनुपात 75.4 था.
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत, किसान रबी फसलों के लिए बीमा राशि का 1.5 प्रतिशत और खरीफ के लिए 2 प्रतिशत का भुगतान करते हैं, जबकि नकदी फसलों के लिए यह 5 प्रतिशत है. इसके अलावा, किसानों द्वारा भुगतान की जाने वाली राशि से अधिक राशि सरकार द्वारा सब्सिडी के तौर पर दी जाती है, जिसे केंद्र और राज्यों के बीच 50:50 के आधार पर शेयर किया जाता है. अधिकारी के मुताबिक बीमाकर्ताओं की कम भागीदारी से प्रीमियम अधिक होता है और सरकार पर सब्सिडी का बोझ भी बढ़ता है.
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साल 2016 में शुरू हुई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना आज विश्व की सबसे बड़ी फसल बीमा योजना है. हर साल 5.5 करोड़ से अधिक किसान फसल बीमा के लिए रजिस्ट्रेशन करते हैं. इस योजना में कम से कम प्रीमियम पर अधिक से अधिक लाभ का क्लेम किया जाता है. इस योजना से जुड़ने की प्रक्रिया बहुत ही सरल है और कोई भी किसान अपनी फसल का बीमा करा सकता है. वहीं, बारिश, तापमान, पाला, नमी आदि जैसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इस योजना का लाभ मिलता है.
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