पंजाब का माझा और मालवा क्षेत्र धान की खेती के लिए मशहूर है. जब धान की खेती होगी तो पराली जलने की घटनाएं भी होंगी. इसलिए आजकल माझा और मालवा क्षेत्र में आपको पराली का धुआं सामान्य घटना जान पड़ेगी. हालांकि इसमें एक बदलाव देखा जा रहा है. कुछ दिनों पहले तक जब माझा क्षेत्र में धान की कटाई चल रही थी तो पराली का धुआं भी उस क्षेत्र में अधिक था. लेकिन अब कटाई का काम मालवा में अधिक चल रहा है तो धुएं का गुबार भी उस इलाके में अधिक दिखाई दे रहा है.
मालवा क्षेत्र में हर साल खेतों में आग लगने की 80 प्रतिशत से अधिक घटनाएं होती हैं. इस साल धान की खरीद में शुरुआती रुकावटों के कारण इसकी कटाई में देरी देखी गई. यही वजह है कि मालवा में खेतों में आग लगने की घटनाएं कम हैं. मालवा में अभी तक केवल 56 प्रतिशत धान की कटाई हो पाई है और धान मंडियों तक पहुंच पाया है. ताजा आंकड़ों पर गौर करें तो इस क्षेत्र में कुल 125 लाख मीट्रिक टन धान की आवक होनी चाहिए जिसमें से 69.63 LMT धान ही मंडियों में पहुंच पाया है.
पंजाब की सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि माझा में सोमवार को हॉटस्पॉट (पराली जलने वाली जगह) की संख्या 1 अक्टूबर के बराबर ही रही, लेकिन घटनाओं की संख्या में भारी कमी आई. 1 अक्टूबर को मालवा क्षेत्र में पराली जलाने के मामले बहुत कम थे, लेकिन आज की तारीख में सबसे ज्यादा हॉटस्पॉट फिरोजपुर, फतेहगढ़ साहिब, संगरूर और पटियाला में हैं.
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पंजाब में सोमवार को खेतों में आग लगने की 142 घटनाओं में से सबसे ज्यादा घटनाएं संगरूर (19), पटियाला (16), फिरोजपुर और तरनतारन (14-14) में दर्ज की गईं. अगर अन्य क्षेत्र से तुलना करें तो अमृतसर और गुरदासपुर में क्रमशः नौ और सात घटनाएं दर्ज की गईं. इसका मुख्य कारण यह है कि माझा क्षेत्र बासमती बेल्ट है और बासमती की जल्दी पकने वाली किस्मों की कटाई इस महीने की शुरुआत में ही पूरी हो गई थी. यही वह समय था जब माझा क्षेत्र में खेतों में आग लगने की घटनाएं सबसे पहले चरम पर थीं.
हालांकि राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार ने शुरू में पराली के इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन के लिए बड़ी योजनाएं बनाई थीं, लेकिन किसानों का कहना है कि पिछले सप्ताह तक धीमी खरीद के कारण धान की कटाई में देरी हो गई. इस वजह से उनके पास गेहूं की फसल बोने के लिए बहुत कम समय बचेगा. गेहूं की बुवाई 15 नवंबर से पहले पूरी होनी चाहिए, ताकि बीज जम सकें और फसल पकने पर अच्छी उपज दे सकें. किसानों को अभी ये बड़ी चिंता सता रही है.
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गेहूं की बुवाई शुरू होने में अब सिर्फ चार दिन बचे हैं, दूसरी ओर खेतों से धान की फसल और उसके बाद उसकी पराली को भी हटाना है. इसलिए, यह उम्मीद की जा रही है कि आने वाले हफ्तों में आग की घटनाओं की संख्या में इजाफा ही होगा. तमाम सरकारी कोशिशें हो जाएं, लेकिन किसान पराली में आग लगाएंगे क्योंकि उन्हें गेहूं के लिए अपना खेत तैयार करना है और मशीनों की संख्या पर्याप्त नहीं है जिससे उन्हें पराली निपटान में मदद मिले.
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