क्रिकेट में छक्के की कीमत सबसे ज्यादा होती है. मसलन, जो भी बल्लेबाज क्रिकेट पिच पर धुंआधार बैटिंग करते हुए छक्के की बरसात करने का हुनर रखता है, वह क्रिकेट प्रेमियों के दिल में आसानी से जगह बन लेता है. बात खेती यानी किसानी पिच की जाए तो नकदी फसलों किसानों को अधिक प्रभावित करती हैं, लेकिन बीते कुछ सालों से मक्के की खेती किसानों को प्रभावित कर रही है.
मसलन, खेती की पिच पर मक्का ब्राउंडी बाहर छक्का लगाने की तैयारी करता हुआ दिखाई दे रहा है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या मक्का किसानों के लिए पीला साेना बन सकता है. मक्के की खेती किसानों के लिए कितनी फायदेमंद है. इसी कड़ी में आज बात करेंगे मक्के के बढ़ते दायरे और मक्के की खेती से किसानाें को होने वाले संंभावित फायदे के बारे में...
भारत में मक्के की खेती पारंपरिक तौर पर होती है. मसलन, मक्का भारत की पुरातन फसल है. पंजाब में मक्के की रोटी और सरसों का साग वाला स्वैग इसका एक बड़ा उदाहरण है. मक्के की खेती के गुणा-गणित की बात करें तो दुनिया के देशों में मक्का उत्पादन में भारत का नंवर 7वां है, जिसकी कुल विश्व उत्पादन में हिस्सेदारी 2 फीसदी है. अगर बात करें तो मौजूदा समय में भारत का प्रति वर्ष मक्का उत्पादन 30 एमटी से अधिक है.
मक्के की मांग देश-दुनिया में तेजी से बढ़ रही है. बीते कुछ दशकों तक मक्का खाद्यान्न का मुख्य हिस्सा था, लेकिन गेहूं-चावल के आहार संस्कृति का हिस्सा बनने के बाद आम आदमी की थाली से मक्के की दूरी बढ़ती गई, लेकिन बीते कुछ सालों में आम आदमी की खुराक में सुधार के साथ ही मक्के की मांग में तेजी आई है, जिसमें प्रमुख तौर पर सबसे अधिक मक्के की मांग पोल्ट्री सेक्टर में बनी हुई है. इसके साथ ही पशुचारा, स्टार्च, एक्सपोर्ट और प्रोसेस्ड फूड में मक्के की मांग ने नए मुकाम पाएं हैं.
मक्के की मांग की इस हिस्सेदारी को लेकर भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट कहती है कि मौजूदा समय में कुल उत्पादित मक्के में से 47 फीसदी मक्का पोल्ट्री फीड में इस्तेमाल होता है, जबकि 14 फीसदी स्टार्च, 13-13 फीसदी मानव और पशुआहार यानी भोजन और पशुचारा में प्रयोग होता है, जबकि 7 फीसदी मक्का प्रोसेस्ड फूड और 6 फीसदी मक्का एक्सपोर्ट के तौर पर प्रयाेग होता है.
मौजूदा वक्त में मक्का किसानों के लिए पीला सोना बनने की कोशिश करता हुए दिख रहा है, लेकिन माना जा रहा है कि इथेनॉल क्रांति मक्के को पीला सोना बनाने की गांरटी है. असल में देश के अंदर इथेनॉल को पेट्राल-डीजल का विकल्प माना जा रहा है. इसको लेकर सरकार काम भी कर रही है. इसी कड़ी में पेट्राल में इथेनॉल की समिश्रण किया जा रहा है. जिसके तहत मौजूदा वक्त में 20 फीसदी इथेनॉल का समिश्रण पेट्राल में करने का लक्ष्य पूरा कर लिया गया है, जबकि 80 फीसदी समिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
वहीं कई फसलों से इथेनॉल बनाए जाने की योजना है, जिसके तहत मौजूदा वक्त में गन्ने, टूटे चावल से इथेनॉल बनाया जा रहा है. ऐसे में मक्के से बढ़े स्तर पर इथेनॉल बनाने की योजना प्रस्तावित है, जो मक्के के भाग्य बदल सकता है.
बेशक, मक्के से अभी इथेनॉल बनाने की प्रक्रिया शुरुआती चरण पर है, लेकिन बाकी अन्य सेक्टरों में मक्के की भरपूर मांग बनी हुई है. मसलन, मौजूदा वक्त में बाजार के अंदर मक्के के दाम MSP से अधिक चल रहे हैं. सरकार ने मक्के की MSP 2090 रुपये क्विंटल निर्धारित की हुई है, इसके इतर देश के कई बाजारों में MSP के दाम 2200 से 2300 रुपये क्विंटल तक चल रहे हैं.
खेती की पिच पर मक्के के अंंदर शानदार छक्का मारने की काबिलियत को नीति निर्माता समझ गए हैं, जिसके बाद से मक्के की खेती का दायरा बढ़ाने के प्रयास भी केंद्र सरकार की तरफ से शुरू हो गए हैं. इसी कड़ी में केंद्र सरकार MSP गारंटी पर मक्के की खरीद की योजना केंद्र सरकार बना रही है. बीते दिनों आंदोलनकारी किसानों को केंद्र सरकार ने 5 फसलों को 5 साल खरीदने की गारंटी दी थी, जिसमें मक्का भी शामिल था. ऐसे में मक्के की महिमा को समझा जा सकता है.
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