रेशम की खेती भारत में धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है. विश्व का करीब 95 प्रतिशत रेशम एशिया में पैदा होता है. यहां का मौसम इसके अनुकूल है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार विश्व के करीब 40 देश इसका उत्पादन करते हैं, लेकिन सबसे अधिक उत्पादन चीन में होता है. भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर है. आईए आज इसकी खेती के बारे में जानते हैं. खेती अगर पारंपरिक तौर तरीकों से अलग हटकर आधुनिक तरीके से की जाए तो वो फायदे का सौदा साबित हो सकती है. आज के दौर में ऐसे कई उद्योग हैं जिन्हें कृषि के साथ बढ़ रहे हैं. इस लिस्ट में रेशम उद्योग भी शामिल है. यह एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें आप रेशम के कीड़ों द्वारा रेशम का उत्पादन कर अच्छी कमाई कर सकते हैं.
महाराष्ट्र में किसान अब बड़े पैमाने रेशम की खेती की ओर रुख कर रहे हैं. वो इससे अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं. रेशम उत्पादन के मामले में भारत चीन के बाद दूसरे स्थान पर है. यहां हर किस्म का रेशम पैदा होता है. भारत में 60 लाख से भी अधिक लोग अलग-अलग तरह के रेशम कीट पालन में लगे हुए हैं.
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रेशम की खेती तीन प्रकार से होती है- मलबेरी खेती, टसर खेती व एरी खेती. रेशम प्रोटीन से बना रेशा है. सबसे अच्छा रेशम शहतूत, अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा से बनाया जाता है. फैशन के इस दौर में रेशम से निर्मित वस्त्रों का चलन काफी तेजी से बढ़ रहा है, जिसके कारण मार्केट में इसकी मांग निरंतर बढ़ती जा रही है.ऐसे में यह व्यवसाय किसानों के आय के लिए एक बेहतर विकल्प है. किसान रेशम की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं. इसकी अच्छी किस्मों का चयन और सही तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा कमा सकते हैं
सेरीकल्चर रेशम के कीड़ों को पालने और उनसे रेशम निकालने की प्रक्रिया है. घरेलू रेशमकीट के कैटरपिलर (जिन्हें 'बॉम्बिक्स मोरी' भी कहा जाता है) रेशम उत्पादन में सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली रेशमकीट प्रजातियाँ हैं. 'जंगली रेशम' के उत्पादन के लिए अन्य प्रकार के रेशमकीटों (जैसे एरी, मुगा और तसर) की भी खेती की जाती है. खास बात यह है, कि इस उद्योग को बहुत ही कम लागत में लगाया जा सकता है और आप यह कार्य कृषि कार्यों और अन्य घरेलू कार्यों के साथ बड़ी आसानी से कर सकते है.रेशम उत्पादन के मामले में विश्व में चीन के बाद भारत दूसरे स्थान पर आता है.
शहतूती रेशम ,गैर शहतूती रेशम,एरी या अरंडी रेशम,मूंगा रेशम,ओक तसर रेशम,तसर (कोसा) रेशम ये रेशम की अच्छी किस्में हैं जो रेशम कीट के विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होती हैं.
शहतूत के पौधों को लगानें के लिए ऐसी भूमि होनी चाहिए, जो उसरीली न हो. इसके साथ ही सिंचाई की व्यवस्था के अलावा पानी का ठहराव न हो मुख्यत बलुई-दोमट भूमि शहतूत वृक्षारोपण के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है परन्तु वहां उचित जल निकासी की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए.
शहतूत के पौधों को खेत में क्यारियों में लगाएं. क्यारियों के बीच की दूरी को देखकर खेत में लगाएं, और पत्तियों को ध्यान से दबाएं, ताकि हवा से सुखने से बचा जा सके. पौधों को लगाने के बाद, खाद और उर्वरक का उपयोग करें. एक एकड़ खेत में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन का प्रयोग करें. सितंबर और अक्टूबर के बीच गैपफिलिग़ करें.
भारत में मुख्य रूप से शहतूत पर कीटों द्वारा रेशम उत्पादन पश्चिम बंगाल,कर्नाटक,महाराष्ट्र,जम्मू और कश्मीर, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में किया जाता है, जबकि शहतूत के पेड़ों के अलावा अन्य पेड़ो पर रेशम कीट पालन द्वारा रेशम उत्पादन छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और झारखंड आदि में होता है.
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