कृषि गतिविधियों में तेजी लाने के लिए देशभर में 630 से ज्यादा कृषि विज्ञान केंद्र स्थापित हैं, लेकिन इन केंद्रों पर बड़ी संख्या में पद खाली हैं. इस वजह से किसानों को फसल पैदावार समेत कृषि कार्यों के लिए सही और समुचित जानकारी समय पर नहीं मिल पा रही है. ऐसे में इन खाली को पदों भरने के लिए केंद्र सरकार नोटिफिकेशन जारी करने वाली है. नोटिफिकेशन में एग्जाम डेट, अभ्यर्थियों की शैक्षिक योग्यता, उम्र सीमा आदि की जानकारी साझा की जाएगी.
कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) भारत में कृषि विस्तार केंद्र के रूप में जाने जाते हैं. देशभर में इनकी संख्या 630 से ज्यादा है, जबकि देश के प्रत्येक जिलों में केवीके को स्थापित करने का लक्ष्य है. कृषि विज्ञान केंद्र स्थानीय कृषि विश्वविद्यालय के साथ जुड़े होते हैं और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के जरिए संचालित किए जाते हैं. केवीके कृषि अनुसंधान और किसानों के बीच अंतिम कड़ी के रूप में काम करते हैं. ये कृषि अनुसंधान नतीजों को स्थानीय संगठनों में लागू करने में मदद करते हैं.
केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने बीते दिनों लोकसभा में एक लिखित जवाब में बताया कि देश में कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) राज्य सरकार, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, सरकारी संगठनों और आईसीएआर के प्रशासनिक नियंत्रण में खोले जाते हैं. वर्तमान में देशभर में कुल केवीके की संख्या 638 है. उन्होंने कहा कि इन केवीके में 3,499 पद खाली हैं.
केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि केवीके में रिक्तियों को भरना संबंधित मेजबान संगठन की जिम्मेदारी है. उन्होंने कहा कि इन संगठनों के साथ आईसीएआर नियमित रूप से उनके साथ काम करता है. अनुमान है कि केवीके में रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र सरकार जनवरी में नोटिफिकेशन जारी कर सकती है. क्योंकि, सरकार कृषि गतिविधियों में तेजी और विस्तार पर फोकस कर रही है. नोटिफिकेशन में एग्जाम डेट, अभ्यर्थियों की शैक्षिक योग्यता, उम्र सीमा आदि की जानकारी साझा की जाएगी.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार सर्वाधिक कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) के खाली पद उत्तर प्रदेश में हैं. यूपी में कुल 437 पद केवीके में खाली हैं. जबकि, राजस्थान में खाली पदों की संख्या 351, मध्य प्रदेश में रिक्त पद 350 हैं. जबकि, बिहार में 230 खाली पद हैं और झारखंड 206 जगहें खाली हैं.
ये भी पढ़ें -
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today