Kisan Andolan के बीच नई किसान राजनीतिक पार्टी की एंट्री, चढूनी का मास्‍टर 'स्‍ट्रोक' या वजूद बचाने की जंग?

Kisan Andolan के बीच नई किसान राजनीतिक पार्टी की एंट्री, चढूनी का मास्‍टर 'स्‍ट्रोक' या वजूद बचाने की जंग?

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने राजनीतिक पार्टी बनाई है. ये पहली बार नहीं हो रहा है, जब किसान नेताओं और किसान राजनीति को लेकर राजनीतिक पार्टियों का गठन हुआ है.

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Kisan Andolan के बीच नई किसान राजनीतिक पार्टी की एंट्री, चढूनी का मास्‍टर 'स्‍ट्रोक' या वजूद बचाने की जंग? किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने बनाई राजनीतिक पार्टी, लड़ेंगे विधानसभा चुनाव

MSP गारंटी कानून समेत किसानों से जुड़ी कई मांगों को लेकर 13 फरवरी से पंजाब-हरियाणा में किसान आंदोलन जारी है. इस बीच देश में लोकसभा चुनाव भी संपन्‍न हो चुके हैं, जिसमें किसान राजनीति का प्रभावी असर दिखाई दिया है और चुनाव में किसानों की ताकत ने बहुमत का गुणा-गणित ही बिगाड़ दिया है.

लोकसभा चुनाव के बाद देश में एक बार फिर चुनावी बिसात बिछने जा रही है, जिसके तहत हरियाणा, महाराष्‍ट्र और झारखंड में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव प्रस्‍तावित हैं.इस बीच देश में एक नई किसान राजनीतिक पार्टी का उदय हुआ है.

हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंंह चढूनी ने हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले संयुक्‍त संघर्ष पार्टी नाम से नई पार्टी का गठन किया है. अब सवाल ये ही है कि क्‍या किसान आंदोलन के बीच चढूनी का ये मास्‍टर स्‍ट्रोक देश की किसान राजनीति की दिशा बदल देगा. सवाल ये भी है कि क्‍या किसान पॉलिटिक्‍स में वजूद बचाने के लिए गुरनाम सिंह चढूनी ने राजनीतिक दल बनाया है. सवाल ये भी है कि गुरनाम सिंह चढूनी की ये राजनीतिक चाह, क्‍या किसानों की राह आसान बनाएगी. आइए इस पर विस्‍तार से बात करते हैं. 

पहले भी किसान नेताओं ने बनाई हैं राजनीतिक पार्टी 

हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने राजनीतिक पार्टी बनाई है. ये पहली बार नहीं हो रहा है, जब किसान नेताओं और किसान राजनीति को लेकर राजनीतिक पार्टियों का गठन हुआ हो. इसी साल फरवरी में महाराष्‍ट्र के किसान नेता रघुनाथ दादा पाटिल ने किसानों की राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान किया था.

इससे पहले गन्‍ना किसानों की समस्‍याओं के समाधान के लिए किसान नेता सरदार वीएम सिंह ने साल 2017 में राष्‍ट्रीय किसान मजदूर पार्टी नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई थी, जिसका चुनाव चिन्‍ह ट्रैक्‍टर था. उनकी पार्टी ने 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली. हालांकि उनकी पार्टी के हरियाणा प्रदेश अध्‍यक्ष गुरनाम सिंह चढूनी ही थे.

वहीं साल 2016 में किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट ने दलित मजदूर किसान महापंचायत नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई थी, लेकिन उनकी पार्टी ने अभी तक कोई भी चुनाव लड़ा है. हालांंकि उनका दावा है कि उनकी पार्टी का संंगठन अभी भी सक्रिय है.

इससे पहले साल 2013 में मध्‍य प्रदेश में किसानों की पार्टी के तौर पर भारतीय मजूदर प्रजा पार्टी गठित हुई थी. इसके शिल्‍पी भारतीय किसान संघ के पूर्व नेता और मौजूदा किसान आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे शिवकुमार शर्मा उर्फ कक्‍का जी थी. इस पार्टी ने 2013 में मध्‍य प्रदेश विधानसभा में उम्‍मीदवार उतारे थे, लेकिन सफलता नहीं मिली.

अगर बात राष्‍ट्रीय स्‍तर पर किसानों और किसान मुद्दों पर केंद्रित राजनीतिक पार्टी की बात करें तो इसमें सबसे ऊपर नाम भारतीय क्रांति दल का आता है.

साल 1967 में किसान नेता चौधरी चरण सिंह और चौधरी कुंभाराम आर्य ने भारतीय क्रांति दल नाम से एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया था. राजस्‍थान के किसान नेता चौधरी कुंभाराम ने मुख्‍यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया से भूमि सुधार, सहकारिता और पंचायती राज से जुड़ी नीतियों में मतभेद के बाद कांग्रेस से इस्‍तीफा दिया तो वहीं चौधरी चरण सिंह भी कांग्रेस से इस्‍तीफा देकर आए थे. दोनों ने ये पार्टी बनाई थी. इसके बाद भारतीय क्रांति दल ने यूपी में सरकार बनाई और चौधरी चरण सिंंह मुख्‍यमंत्री बने. 1977 में इस पार्टी का जनता दल में विलय कर दिया गया था.

चढूनी, किसान राजनीतिक में वजूद बचाने की जंग लड़ रहे! 

देश में किसान नेताओं और किसान मुद्दों पर केंद्रित राजनीतिक दलों का सशक्‍त इतिहास रहा है. इन सबके बीच किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया है. इसे कई लोग उनकी राजनीतिक महत्‍वकांक्षा से जोड़कर देख रहे हैं तो कई लोग से किसान राजनीति में उनकी वजूद बचाने की लड़ाई के तौर पर देख रहे हैं. अगर इन दो पहलुओं को सीधे चश्‍मे से देखें तो ये सच है कि गुरनाम सिंह चढूनी की राजनीतिक पार्टी उनकी राजनीतिक महत्‍वकांक्षा की सीढ़ी होने के साथ ही देश की किसान राजनीतिक में अपना वजूद बचाने की जंग में उनका हथियार भी है. 

गुरनाम सिंह चढूनी बेशक किसान नेता हैं और हरियाणा में उग्र किसान आंदोलन का चेहरा भी वह रहे हैं, लेकिन वह राजनीतिक भी हैं. 2014 का लाेकसभा चुनाव उनकी पत्‍नी आमआदमी पार्टी के टिकट पर कुरुक्षेत्र से लड़ चुकी हैं. तो वहीं तीन कृषि कानून के खिलाफ सफल किसान आंदोलन चलाने में उनकी भूमिका भी अहम थी, लेकिन राजनीतिक महत्‍वकांक्षाओं की वजह से उन्‍हें किसान आंदोलन का नेतृत्‍व करने वाली कमेटी SKM से बाहर होना पड़ा था. 

वहीं उनकी ये राजनीतिक महत्‍वकांक्षा ही मौजूदा किसान आंदोलन में उनकी भूमिका को सीमित करे हुए हैं. असल में मौजूदा किसान का नेतृत्‍व SKM गैरराजनीतिक कर रहा है, जिसके नेताओं ने स्‍पष्‍ट किया हुआ है कि राजनीतिक महत्‍वकांक्षा रखने वाले नेताओं को वह आंदोलन में शामिल नहीं करेंगे. ऐसे में इस आंदोलन में चढूनी की भूमिका नहीं है. हालांकि उन्‍होंने आंदोलन में शामिल होने के कई प्रयास किए, लेकिन आंदोलनकारी किसान उनकी राजनीतिक महत्‍वकांक्षा के चलते उन्‍हें किसान आंदोलन में शामिल नहीं होने दे रहे हैं. जबकि वह हरियाणा के टाॅप किसान नेताओं में शुमार हैं.

इस किसान आंदोलन में चढूनी की सक्रियता नहीं रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों में किसान आंदोलन का असर व्‍यापक दिखा है, जो चढूनी की किसान राजनीति के वजूद पर भी संकट की तरह है, जिसमें हरियाणा की किसान राजनीतिक में उनका कद घटता हुआ दिख रहा है. ऐसे में गुरनाम सिंह चढूनी ने किसान राजनीतिक पार्टी का ऐलान किया है, जिसे उनकी वजूद बचाने की जंग के तौर पर देखा जा सकता है.

चढूनी की राजनीतिक पार्टी, किसान राजनीतिक की दिशा बदलेगी

गुरनाम सिंह चढूनी की राजनीतिक पार्टी के ऐलान को उनकी वजूद बचाने की जंग-ए-ऐलान के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन चढूनी ने ऐसे समय पर किसान राजनीतिक पार्टी का गठन किया है, जब देश में किसान राजनीतिक अपने पीक पर है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण लोकसभा चुनाव में हरियाणा, राजस्‍थान और महाराष्‍ट्र में बीजेपी को हुआ नुकसान है. अब हरियाणा में विधानसभा चुनाव में चढूनी अपनी पार्टी के जरिए छाप छोड़ने में सफल रहते हैं तो देश में राष्‍ट्रीय स्‍तर पर किसान पार्टी के गठन को लेकर विचार मंथन होना लाजिमी है. हालांकि इन सबके बीच सरदार वीएम सिंह अपनी पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव 2027 में रिलांच कराने की संंभावनाएं टटोल रहे हैं.

क्‍या किसानों की दशा बदलेगी

गुरनाम सिंह चढूनी का ये प्रयास क्‍या किसानों की दशा बदलेगा. इस सवाल का जवाब हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणामों में ही छिपा है. अगर इस चुनाव में उन्‍हें सफलता मिलती हैं तो ये किसान संंगठनों के साथ ही अन्‍य राजनीतिक दलों और सरकारों के लिए भी एक बड़ा मैसेज होगा. ऐसे में किसान राजनीति अपने पीक पर होगी. मुख्‍य धारा के राजनीतिक दलों को मजबूरी में ही किसानों के मुद्दों को आगे करना होगा. तो वहीं सरकारों को भी किसान समस्‍याओं का तत्‍काल समाधान खोजना होगा. क्‍योंकि किसान एक सशक्‍त वोट बैंक के साथ ही राजनीतिक ताकत के तौर पर रेखांकित होंगे. 


 

 

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