सरकार श्रमिकों के लिए प्रतिदिन दी जाने वाली न्यूनतम मजदूरी (Minimum Wages) दर को बढ़ाने का फैसला ले सकती है. करीब 7 साल से न्यूनतम मजदूरी दर में बढ़ोत्तरी नहीं की गई है. जबकि, सालाना आधार पर खुदरा महंगाई दर दिसंबर में बढ़कर 5.69 फीसदी पहुंच गई है. बढ़ती महंगाई को देखते हुए सरकार लोकसभा चुनाव से पहले न्यूनतम मजदूरी दर बढ़ाकर देशभर के 50 करोड़ से अधिक मजदूरों को बड़ी राहत दे सकती है.
केंद्र सरकार ने फ्लोर वेज को देखने वाले एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ पैनल की सिफारिशों को मानते हुए आम चुनाव से पहले देश भर में सर्वाधिक न्यूनतम मजदूरी दर तय कर सकती है. साल 2021 में जून 2024 तक के लिए गठित एसपी मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति के जल्द ही अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपने की उम्मीद है. इससे नए फ्लोर वेज को अप्रैल-मई के दौरान होने वाले चुनावों से पहले घोषित किया जा सकता है. कहा जा रहा है कि रिपोर्ट पूरी तरह तैयार हो चुकी है.
देश में लगभग 50 करोड़ श्रमिक हैं और उनमें से 90 फीसदी असंगठित क्षेत्र में हैं. वर्तमान में न्यूनतम मजदूरी यानी फ्लोर वेज 176 रुपये प्रति दिन है. इसे आखिरी बार 2017 में संशोधित किया गया था. बीते लगभग 7 वर्षों में न्यूनतम मजदूरी दर को नहीं बढ़ाया गया है, जबकि महंगाई दर में लगातार बढ़ोत्तरी देखी गई है. ऐसे में जीवन यापन की लागत और मुद्रास्फीति में तेजी को ध्यान में रखते हुए न्यूनतम मजदूर दर में संशोधन की संभावना है.
केंद्र सरकार न्यूनतम मजदूरी में बढ़ोत्तरी करती है तो इसे सभी राज्य सरकारों को भी लागू करना होगा. वेतन संहिता 2019 केंद्र सरकार को न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार देता है. ऐसे में नया न्यूनतम मजदूरी सभी राज्यों में अनिवार्य होगा. हालांकि, केंद्र राज्यों के भौगोलिक आधार पर अलग-अलग मजदूरी दर भी तय कर सकता है. वर्तमान में कुछ राज्यों ने अपना दैनिक वेतन केंद्र सरकार के फ्लोर रेट 176 रुपये प्रति दिन से कम निर्धारित किया है, जबकि कुछ अन्य राज्यों ने इससे अधिक फ्लोर रेट लागू किया है. राज्यों के बीच न्यूनतम मजदूरी में यह अंतर मजदूरों के पलायन का कारण बनता है.
एसपी मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति के गठन से पहले 2019 में एक अन्य समिति ने न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाकर 375 रुपये प्रतिदिन करने का प्रस्ताव दिया था. तब केंद्र सरकार ने इस मजदूरी दर को स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि यह 100 फीसदी अधिक था. न्यूनतम वेतन तय करने में मजदूरों की पोषण आवश्यकताओं और खाने-पीने के अलावा के खर्च को भी ध्यान में रखना प्रमुख बिंदु है. ऐसी संभावना है कि सरकार 300 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से न्यूनतम मजदूरी तय कर सकती है.
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